दिल्ली हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि अवैध संबंध का झूठा आरोप निश्चित रूप से क्रूरता है, जो कि प्रतिबंबित करता है कि पति-पत्नी के रिश्तों में भरोसा और निष्ठा खत्म हो चुकी है जिसके बिना वैवाहिक संबंध जारी नहीं रह सकते.
उच्च न्यायालय ने इसी के साथ एक व्यक्ति को पत्नी के ‘‘ घोर मानसिक उत्पीड़न’’करने के आधार पर परिवार अदालत के दिए गए तलाक के फैसले को बरकरार रखा. कोर्ट ने यह भी कहा कि जीवनसाथी के साथ रहने से इनकार भी घोर क्रूरता के समान है.
दिल्ली हाई कोर्ट ने क्या कहा?
फैसले में कहा गया कि महिला ऐसा कोई सबूत देने में असफल रही जिससे साबित हो कि पुरुष का कभी अवैध संबंध था. साथ ही कहा कि ‘‘यह वैवाहिक संबंध को खत्म करने वाली अंतिम चोट के समान है.’’
कोर्ट ने कहा, ‘‘जब अवैध संबंध होने का कोई सबूत नहीं हो और लापरवाही से आधारहीन आरोप लगाए जाएं तो यह गंभीर मामला है, यह मानसिक क्रूरता का कारण हो सकता है. तलाक का आधार प्रदान करता है.’’जज सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने ये बात बोली.
अदालत ने परिवार अदालत के तलाक की मंजूरी देने के फैसले के खिलाफ महिला की ओर से दाखिल अपील को खारिज करते हुए कहा कि निचली अदालत के फैसले में सटीक कारण बताए गए हैं और यह ठोस आधार पर है, ऐसे में उसमें हस्तक्षेप का कोई कारण नहीं है.
मामला क्या है?
झारखंड में इस व्यक्ति और महिला की 2009 में शादी हुई थी और 2010 में उनकी बेटी पैदा हुई. व्यक्ति ने परिवार अदालत में तलाक की अर्जी दी और आरोप लगाया कि पत्नी छोटे-छोटे मुद्दे पर लड़ती है. उसने यह भी आरोप लगाया कि पत्नी ने उसे और उसके माता-पिता को जहर देने की कोशिश की और खुद भी आत्महत्या का प्रयास किया.
उसने आरोप लगाया कि महिला बिना किसी को बताए लंबे समय के लिए मायके चली जाती है और कई बार शारीरिक संबंध बनाने से मना कर देती है. पुरुष ने यह भी आरोप लगाया था कि पत्नी उस पर दूसरी महिला से संबंध होने का झूठा आरोप लगाती है