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MP Politics: बुंदेलखंड में राजनैतिक संग्राम, भाजपा का एक ओर अभेद्य किला दमोह लोकसभा क्षेत्र: 35 साल से कांग्रेस ने नहीं देखी जीत

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MP Politics: बुंदेलखंड में राजनैतिक संग्राम, भाजपा का एक ओर अभेद्य किला दमोह लोकसभा क्षेत्र: 35 साल से कांग्रेस ने नहीं देखी जीत

बुंदेलखंड में राजनैतिक संग्राम, भाजपा का एक ओर अभेद्य किला दमोह लोकसभा क्षेत्र: 35 साल से कांग्रेस ने नहीं देखी जीत
मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड की दमोह लोकसभा सीट एक अहम सीट है, जहां जातिगत समीकरण के मुताबिक उम्मीदवार तो चुने जाते हैं लेकिन पिछले 35 साल से सिर्फ भाजपा को ही लगातार जीत मिल रही है। केंद्र और राज्य की राजनीति में अलग ही वर्चस्व रहा है। रामकृष्ण कुसमरिया लंबे वक्त तक इस सीट के चेहरे रहे हैं, जिसके बाद फिलहाल प्रह्लाद पटेल ने उनकी जगह इस सीट पर अपनी धाक बनाई हुई है। दमोह से ही जयंत मलैया का नाम राज्य की राजनीति में बहुत आगे आता है। ऐसे ही और भी बड़े नेता हैं जो इस क्षेत्र से भाजपा के परचम को फहराते रहे हैं। इस क्षेत्र में कई दर्शनीय स्थल और धार्मिक स्थान भी हैं, जहां हजारों श्रद्धालु और सैलानी हर साल जाते रहते हैं। दमोह लोकसभा की बात की जाए तो यहां बांदकपुर में जागेश्वर धाम मंदिर है जिसकी मान्यता पूरे इलाके में फैली हुई है। यह भगवान शिव का अति प्रचीन मंदिर है जहां की कई मान्यताएं हैं। मंदिर की प्रतिष्ठा लगभग पूरे बुंदेलखंड में फैली हुई है। हर साल यहां विशेष अवसरों पर भव्य मेले का आयोजन भी किया जाता है। बांदकपुर के अलावा यहां जैन श्रद्धालुओं का विशेष तीर्थ है जिसका नाम है ।कुंडलपुर.. दमोह से करीब 35 किलोमीटर दूर स्थित कुंडलपुर में कई पहाड़ियां बनी हुई हैं जिनमें एक के बाद एक 65 भव्य जैन मंदिरों का निर्माण किया गया है। यह बहुत ही पवित्र तीर्थ स्थल है जहां हजारों की संख्या में जैन श्रद्धालु पहुंचते हैं।
अगर दमोह के इतिहास की बात की जाए तो इस क्षेत्र में लंबे वक्त तक पाटलिपुत्र के समुद्रगुप्त, चंद्रगुप्त और स्कंद गुप्त का शासन रहा है। दमोह का नाम यहां की रानी दमयंती के नाम पर पड़ा है। रानी दमयंती के नाम पर यहां एक म्यूजियम है जो कि विशेष दर्शनीय स्थलों में गिना जाता है। यह एक वक्त मराठा गवर्नर की सीट भी था. यहां के प्रसिद्ध राजाओं में जोरावर सिंह लोधी रहे हैं जो कि बुंदेला विद्रोह की क्रांति में शामिल रहे। इन्होंने अंग्रेजों से सीधे तौर पर टक्कर ली थी. 1857 के वक्त जब अंग्रेजों ने पूरे देश पर अपना एकाधिकार जमाया था, उस वक्त दमोह आजाद था। सशर्त संधि के बाद ही दमोह अंग्रेजी हुकूमत के अंतर्गत आया था। इतना ही नहीं दमोह का इतिहास तो पाषाण युग का भी रहा है। यहां की गुफाओं में पाषाण युग के कई चित्र और औजार मिलते हैं। जिन्हें आज भी सहेज कर रखा गया है।
दमोह और यहां की राजनीति
दमोह लोकसभा का गठन 1962 में किया गया था। इस लोकसभा सीट में भी 8 विधानसभाओं को शामिल किया गया था. इन विधानसभाओं में देवरी, रहली, बंडा, मलहरा, पथरिया, दमोह, जबेरा और हटा को शामिल किया गया है. इसमें सागर की तीन, छतरपुर की एक और दमोह जिले की 4 विधानसभाओं को शामिल किया गया है। इन विधानसभाओं में से सिर्फ एक को छोड़कर सभी पर फिलहाल बीजेपी का कब्जा है। वहीं अगर लोकसभा की बात की जाए तो यहां 1989 से लेकर अभी तक सिर्फ बीजेपी ने ही जीत का स्वाद चखा है। बाहरी लोगों के लिए प्रसिद्ध इस लोकसभा सीट पर वाराह गिरी शंकर गिरी भी चुनाव लड़ चुके हैं। 1991 से लेकर 1999 तक इस सीट से रामकृष्ण कुसमरिया ने लगातार जीत दर्ज की है, 2014 से लेकर 2019 तक यहां से प्रह्लाद पटेल राजनीति की बागडोर संभाले हुए हैं।
पिछले चुनाव में क्या रहा ?
2019 के लोकसभा चुनाव की बात की जाए तो यहां से बीजेपी ने प्रह्लाद पटेल को चुनावी मैदान में उतारा था। वहीं कांग्रेस ने प्रताप सिंह लोधी को टिकट दिया था। इस चुनाव में बीजेपी के प्रह्लाद सिंह पटेल को करीब 7 लाख वोट मिले थे जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी रहे प्रताप लोधी को साढ़े तीन लाख वोट से ही संतोष करना पड़ा था। तीसरे नंबर पर यहां से बीएसपी पार्टी रही जिसके उम्मदीवार जित्तू खरे बादल को 45 हजार वोट मिले थे। इस चुनाव में प्रह्लाद पटेल ने प्रताप सिंह को करीब साढ़े तीन लाख वोटों से हराया था।

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