मैहर। बंसीपुर बीड जंगल में वन कर्मियों की लापरवाही से नील गायों की हो रही है मौतें नील गायों की हालत देखकर लगता है लोगों के बताने का अनुसार बाद मर्ज बताया गया अर्थात उनको सही समय से उपचार न मिलने के कारण हो रही मौतें हैं अब तक लगभग 80 से 90 नील गायों की मौतें हो चुकी हैं जिसमें से 35 नील गायों की डेड बॉडी का दाह संस्कार किया गया इसके बाद जंगल में कोई कर्मचारी नहीं और नील गायों की बॉडी जंगल में कई जगह सूख रही है और सूखी हुई पड़ी हुई है। जंगल से शाम को नीलगाय तड़पते हुए गांव के नजदीक आ जाते है और गांव में घुसकर दम तोड़ देते हैं। इसके बाद फिर से लोगों ने अधिकारियों को फोन करके बताया गया फिर भी नील गायों का इलाज सही समय से नहीं किया गया।मैहर से कुछ दूर बंसीपुर बीड जंगल लगा है। वहा जंगली जानवरों की मौत हो रही है।लेकिन कार्रवाई नहीं हो रही है।जानवरों मतलब नील गायों की मौत बाद मर्ज से हो रही है। जब इस घटना की जानकारी अफसरों को दी गई तो वे भरोसा नहीं किए। समय पर कोई वनकर्मी नहीं पहुंचा और समय पर इलाज नहीं मिलने से उनकी मौत हो रही है।
न तो नीलगाय की बॉडी खोजते और ना ही दाह संस्कार करते और ना ही इलाज करते बंसीपुर बीड जंगल में वन कर्मी के नाम पर एक लोकल चौकीदार को रखा गया है। वह बेचारा मरे हुए नील गायों की डेथ बॉडी को जलाने के लिए ग्रामीणों से लकड़ियां ले लेकर उनका दाह संस्कार करता है। और जिम्मेदार अधिकारी नील गायों के दाह संस्कार का पैसा भी खा जाते हैं। और ग्रामीण लोग कब तक लकड़िया देते रहेंगे जो पूरे जंगल में मरे हुए नीलगाय पड़े मिलते हैं।
एक वन कर्मी बनकर में आए उन्हें जानकारी दी गई तो उनके कुछ करने के पहले ही उनकी हार्ट अटैक से मौत हो गई अब तक कोई वन कर्मी बंसीपुर बीड जंगल में पदस्थ नहीं।
बड़े अफसर भी नहीं देते ध्यान
बता दें कि अभ्यारण में जंगली जानवरों का मौत और पेड़ाें की कटाई लंबे समय से इसलिए हो रही है क्योंकि लाखों खर्च कर बनाए गए दफ्तर और आवास में न तो वनकर्मी रहते हैं और न ही वनपाल ही। रेंजर का भी मुख्यालय में पता नहीं रहता। सभी अधिकारी और कर्मचारी मैहर में रहते हैं। जबकि इन्हें मुख्यालय में रहने का निर्देश कई बार दिया जा चुका है।