खेती किसानी नाडेप ईंट का बना लगभग 5 फीट चौड़ा 7-8 फीट लम्बा एवं 4 फीट ऊंचा एक कूड़ादान होता है। इसमें समस्त बटोरन सकेलन घर का गलनशील कूड़ा कचरा पेड़ों की पत्तियां घास, जानवरो का अधखाया पुआल आदि सभी चीजें डाली जाती हैं। बाद में उस नाडेप के ऊपर तक पूरा भर जाने पर भरे हुए कूड़े कचरे को फाबड़े से बराबर करके पानी से सीच कुछ समय के लिए हल्की मिट्टी से ढक दिया जाता है।
उसके पश्चात एकाध माह में इससे बढ़िया भुरभुरी खाद बन कर तैयार हो जाती है जिसे नाडेप खाद कहा जाता है। टैंकनुमा बने इस कूड़ेदान के बनाने की भी एक तकनीक होती है। उसमें चारों ओर एक एक फीट की ऊंचाई य अगल बगल के फासले पर कुछ छिद्र बनाए जाते हैं जिससे नाडेप के अन्दर हवा प्रवेश करती रहे। बस यही नाडेप कहलाता है और इसके अन्दर बिना कुछ प्रयास बनकर तैयार होने वाली खाद को नाडेप खाद नाम से जाना जाता है।
बन जाने पर इस खाद को धान गेहूं के खेतों य सब्जियों में डाल कर उपयोग किया जा सकता है। इसे खेत के पास बनाना अच्छा रहता है। क्योकि खेत के आस पास लगे पौधों की झड़ी हुई पत्तियां, निराई में निकले खरपतवार सभी की खाद बन सकती है। आवश्यकता नुसार इसे ओर लम्बा भी बनाया जा सकता है पर चौड़ाई ऊँचाई वही रहती है।
लेखक: पद्मश्री बाबूलाल दाहिया, संपादक: अनुपम अनूप