बडौदा की एक महारानी थीं, जिनका नाम था सीता देवी. उनकी अजब प्रेम की कहानी भी बहुत गजब थी. हैदराबाद रियासत के पास किसी तालुकेदार से उनकी शादी हुई. दो बच्चे हो गए. वह चंचल स्वाभाव की थीं. रेसकोर्स में उनकी आंखें बडौदा के महाराजा से लड़ीं. सीतादेवी शोख थीं ओर हसीन भी. महाराजा तो उनके प्यार में पागल ही हो गए. महाराजा खुद एक शादी कर चुका था. दोनों शादी के लिए बेकरार हो गए. सीतादेवी के पति ने दोटूक कह दिया कि तलाक का तो सवाल ही नहीं उठता. तब महारानी हिंदू से मुस्लिम बन गईं. इस तरह उन्हें आसानी से खुद ब खुद तलाक मिल गया. जानिए क्या थी ये प्रेम कहानी और कैसे धर्म बदलकर महारानी ने पहले पति को छोड़ा.
आजादी से पहले देश ही नहीं बल्कि यूरोप में आकर्षक महिलाओं में शुमार की जाती थीं. पार्टियों की वो शान होती थीं. मोनाको में शानदार किलेनुमा बंगले में आशियाना था. जेवरात ऐसे कि आंखें चौंधिया जाएं. पहली शादी के बाद जब उन्हें महाराजा बड़ौदा से प्यार हुआ तो तहलका मच गया. उन्होंने मुस्लिम धर्म अपनाकर पति से तलाक लिया. फिर हिंदू बनकर महाराजा से शादी रचाई. महाराजा बड़ौदा से शादी के बाद मोनाको में रहने के दौरान महारानी सीता देवी लगातार पेरिस आती जाती रहती थीं और वहां की हाईसोसायटी की जान थीं.
सीता देवी का जन्म मद्रास में हुआ था. उनके पिता छोटी तेलुगु रियासत पीतमपुर के राजा थे. पिता का नाम था राव वेंकट कुमार महीपति सूर्या राउ. सीता देवी बेइंतहा सुंदर थीं. तीखे नाक-नक्श. उनकी शादी वाययुर के जमींदार एमआर अप्पाराव बहादुर से हुई. उनके तीन बच्चे हुए. सीता देवी हाई सर्किल और रजवाड़ों की पार्टियों में उठती-बैठती थीं. हैदराबाद निजाम की बहू प्रिंसेस निलोफर की खास सहेली थीं. सीता देवी सुंदरता और स्टाइल के कारण सहज लोगों का ध्यान खींचती थीं. जो देखता मोहित हुए बगैर नहीं रह पाता.
1943 में उनकी मुलाकात मद्रास हार्स रेस कोर्स में बड़ौदा के राजा प्रताप सिंह गायकवाड़ से हुई. प्रताप सिंह की रईसी के चर्चे देश ही नहीं विदेशों में तक थे. प्रताप जब सीता देवी से मिले तो उन्हें दिल दे बैठे.
शादी के बाद महारानी सीता देवी और बड़ौदा के महाराजा प्रताप सिंह गायकवाड़
सीता तीन बच्चों की मां थीं और प्रताप चार बच्चों के पिता
दोनों ना केवल विवाहित थे, बाल-बच्चेदार भी. प्रताप सिंह गायकवाड़ चार बच्चों के पिता थे. गायकवाड़ इस कदर उन पर दिल दे बैठे कि हर हाल में उन्हें अपनी दूसरी रानी बनाने के लिए उतावले हो उठे. खुद सीता देवी भी इस प्यार में आगे बढ़ चुकीं थीं. दोनों ने शादी करने का फैसला किया.
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सीता के पति ने कहा किसी हाल में तलाक नहीं दूंगा
ये इतना आसान नहीं था. सीता के पति अप्पाराव तो तलाक की बात सुनते ही आपे से बाहर हो गए. दो-टूक कहा, किसी हाल में तलाक नहीं देंगे. अलग होने की बात तो दूर है. अप्पाराव ने प्रताव गायकवाड़ को अपनी बीवी से दूर रहने की चेतावनी भी दी.
तब महारानी ने मुस्लिम धर्म स्वीकार कर तलाक लिया
ना तो सीता देवी मानने वाली थीं और ना प्रताप पीछे पैर खींचने वाले थे. महाराजा प्रताप गायकवाड़ की कानूनी टीम ने हल तलाशा. सीता देवी से मुस्लिम धर्म अपनाने के लिए कहा गया. सीता देवी ने वैसा ही किया. तब भी अप्पाराव ने तलाक से मना कर दिया. उन्होंने कहा, वो सब समझ रहे हैं कि वो क्यों मुसलमान बनी हैं.
दूसरी शादी के तीन साल बाद महारानी सीता देवी ने मोनाको में किलेनुमा बंगला खरीदा. वहां वो लग्जरी और तड़क-भड़क भरी लाइफ जीने लगीं.
तब सीता देवी ने एक तलाकनामा तैयार कराया, चूंकि वो मुस्लिम हैं, लिहाजा गैर मुस्लिम पति के साथ नहीं रह सकतीं. इस्लाम के अनुसार उन्हें अलग होने की अनुमति दी जाए. अदालत से अनुमति मिल गई.
प्रताप की शादी में भी फंसा कानूनी पेच
अब सीता देवी आजाद थीं लेकिन प्रताप गायकवाड़ के सामने नई समस्या आ गई. अंग्रेज सरकार ने कानूनी पेच फंसा दिया. बड़ौदा में कानून था कि पहली पत्नी के जिंदा रहते या बगैर तलाक कोई दूसरी शादी नहीं कर सकता है. काफी मशक्कत के बाद अंग्रेज सरकार ने राजा को इस बिना पर शादी की मंजूरी दी कि महाराजा होने के नाते उन्हें कानून से छूट दी जा रही है. शर्त ये भी कि महाराजा प्रताप गायकवाड़ के बाद बड़ौदा राजघराने का उत्तराधिकारी पहली पत्नी का बेटा होगा.
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सीता देवी फिर हिंदू बनीं और दूसरी शादी की
सीता देवी जो मुसलमान बन चुकी थीं. उन्होंने फिर आर्य समाजी तरीके से धर्म बदला. हिंदू बनीं. तीनों बच्चों को पूर्व पति के पास छोड़कर महाराज बड़ौदा से शादी रचाई. शादी के दौरान दुनिया दूसरे विश्व युद्ध में उलझी थी. जब 1946 में वर्ल्ड वार खत्म हुआ तो महाराजा बड़ौदा दूसरी बीवी को लेकर यूरोप टूर पर निकले. मंशा ये भी थी कि भारत में रहने में अनिच्छुक सीता देवी को यूरोप में ही कोई शानदार घर खरीदकर दिया जाए.
महारानी की शादी गजब घुमावों से भरी रही. उनका पहला पति अपने इलाके का रसूखदार जमींदार था. वो जब तलाक देने के लिए तैयार नहीं हुआ तो महारानी ने मुस्लिम धर्म स्वीकार करके कानूनी तौर पर तलाक लिया. वो अपनी तीन बच्चों को भी छोड़ आईं. फिर बड़ौदा के महाराजा से उन्हें एक बेटा हुआ.
मोनाको में बस गईं महारानी
यूरोप के कई देश घूमने के बाद महारानी सीता देवी को मोनाको पसंद आया. प्रताप गायकवाड़ ने वहां रानी के लिए आलीशान किलेनुमा बंगला खरीदा. महाराजा ने बड़ौदा से काफी बेशकीमती सामान और जेवरात सीता देवी के पास वहां भेजे. इस बीच महारानी सीता देवी को प्रताप से एक बेटा हुआ.
मोनाको में महारानी सीतादेवी का स्वागत मोनाको के महाराजा और महारानी ने किया. सीता देवी का मोनाको में रहना उनके लिए गर्व की बात थी. महारानी की इमेज धीरे धीरे पूरे यूरोप में दिल खोलकर पैसा खर्च करने वाली और आलीशान जिंदगी जीने वाली महारानी की बन गई.
यूरोप की फैशन सिंबल बन गईं महारानी
1947 में जब भारत आजाद हुआ तो बड़ौदा का विलय भारतीय संघ में हो गया. भारत सरकार ने पाया कि बड़ौदा का खजाना खाली है. बेशकीमती सामान गायब हैं. उन्हें मोनाको भेजा जा चुका है. महारानी सीता देवी ने उसे लौटाने से मना कर दिया. इन सभी का मालिकाना हक उनके नाम किया जा चुका था. उन्होंने पेरिस की डिजाइनर फर्म वान क्लीफ को ये सारे पुराने जेवरात दिए. उन्हें आधुनिक डिजाइन में ढालने को कहा. हालांकि इस काम में बहुत से रत्न गायब हो गए.
महारानी यूरोप में अपनी शाहखर्ची और तड़क-भड़क भरी लाइफ स्टाइल के लिए हमेशा चर्चा में रहती थीं. उन्हें यूरोप में फैशनबल महिलाओं में गिना जाता था.
महारानी ने जल्द ही यूरोप में खास पहचान बना ली. वो वहां की हाई-सोसाइटी में उठने-बैठने लगीं. उनका अपना रुतबा था. तब सीता देवी की संपत्ति करीब 300 मिलियन डॉलर यानी करीब 2200 करोड़ रुपये की आंकी गई. महाराजा प्रताप गायकवाड़ साल में कई बार वहां आते-जाते रहते थे. महारानी कभी यूरोप में होतीं तो कभी अमेरिका में. वो घूमती रहती थीं.
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ये भी है सीता देवी का एक किस्सा
एक किस्सा है कि एक बार महारानी अमेरिका में थीं. वहां से उन्हें पति से फोन पर बात करने में दिक्कत आ रही थी. तो उन्होंने लंदन आकर बात करने का फैसला किया. वो फ्लाइट से लंदन आईं. पति से बात की. फिर वापस छुट्टियां मनाने अमेरिका उड़ गईं.
शादी के 13 साल बाद ही तलाक
बाद के सालों में महारानी के पास दौलत की कमी होने लगी. महाराजा प्रताप गायकवाड़ का खजाना खत्म होने लगा था. महारानी से मतभेद भी होने लगे थे. इसका नतीजा 1956 में तलाक के रूप में सामने आया. इससे भी महारानी को कुछ और दौलत मिली. लेकिन महारानी की शाहखर्ची जारी थी. महारानी कर्ज में लदने लगीं. उन्होंने महंगे जेवरात बेचने शुरू किये. बाद में महारानी सीता देवी के इकलौते बेटे की 1985 में ड्रग और ज्यादा शराब से मौत हो गई. रानी इस गम को झेल नहीं पाईं. एक साल बाद पेरिस में वह भी 69 साल की उम्र में चल बसीं.
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