ग्वालियर में माफी औकाफ के मंदिरों की जमीनों को लेकर सरकारी दफ्तरों से लेकर कोर्ट तक झंझट सामने आ रहे हैं। ताजा मामला फालका बाजार स्थित रामजानकी मंदिर पर दावा करने वाले जिस कालोनाइजर और शासन के बीच जिला कोर्ट में प्रकरण चल रहा है
- शासकीय अधिवक्ता विजय शर्मा की कार्यप्रणाली पर खड़े किए सवाल
- शासकीय अधिवक्ता मिनी शर्मा का कलेक्टर को पत्र
- जिला सरकार के अधिकारी क्या निगरानी कर रहे हैं, कोर्ट केस को लेकर कोई सावधानी नहीं है
ग्वालियर में माफी औकाफ के मंदिरों की जमीनों को लेकर सरकारी दफ्तरों से लेकर कोर्ट तक झंझट सामने आ रहे हैं। ताजा मामला फालका बाजार स्थित रामजानकी मंदिर पर दावा करने वाले जिस कालोनाइजर और शासन के बीच जिला कोर्ट में प्रकरण चल रहा है उस मामले में शासकीय अधिवक्ता ने मीडिएशन की अनुमति दे डाली। अब इसी हैरानी भरे मामले को लेकर अतिरिक्त शासकीय अधिवक्ता मिनी शर्मा ने जिला कलेक्टर अक्षय कुमार सिंह को पत्र लिखा है जिसमें शासकीय अधिवक्ता विजय शर्मा की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं और कालोनाइजर को लाभ देने के लिए माफी की जमीन होने के मामले में मीडिएशन की अनुमति कैसे दे दी। इस मामले में शासकीय अधिवक्ता के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की मांग की गई है।
यहां ग्वालियर में माफी की जमीनों पर बड़ी बंदरबांट सामने आ रही है। पहले संभागीय माफी अधिकारी की ओर से 11 धर्मस्थलों की जांच की गई, जिसमें निजी लोगों के नाम दर्ज मिले और अब फालका बाजार रामजानकी मंदिर की जमीन को लेकर राजीनामा की सहमति देने का मामला सामने आया। जिला सरकार के अधिकारी क्या निगरानी कर रहे हैं, कोर्ट केस को लेकर कोई सावधानी नहीं है, यह खुद जिम्मेदारों पर सवाल है।
प्रकरण क्रं आरसीएसए 251-2018 मप्र शासन बनाम कार्तिक कालोनाइजर में शासन के माफी औकाफ की बेशकीमती व्यावसायिक भूमि फालका बाजार के मुख्य मार्ग पर स्थित है। इस प्रकरण में शासन द्वारा अवैधानिक रूप से की गई रजिस्ट्रियों को निरस्त कराने का दावा प्रस्तुत किया गया है, जिसमें शासकीय अधिवक्ता विजय शर्मा द्वारा 14 जून 2022 को कोर्ट के समक्ष सुलह की संभावनाएं तलाशी गईं और मध्यस्थता के माध्यम से प्रकरण में राजीनामा करने के लिए शासन की बेशकीमती भूमि के लिए शासकीय अधिवक्ता ने अपनी स्वीकृति बिना किसी वरिष्ठ अधिकारी व प्रकरण के प्रभारी अधिकारी की अनुमति के बिना दी गई। कालोनाइजर को लाभ देने के मकसद से यह सहमति दी गई। यह प्रकरण 2018 से लंबित है और यह सहमति गैर कानूनी दी गई है। उक्त प्रकरण में मध्यस्थता के लिए शासकीय अधिवक्ता की स्वीकृति के पूर्व भी शासन साक्ष्य के लिए लंबित था और मध्यस्थता की कार्रवाई के बाद 29 सितंबर 2022 से 9 मई 2023 तक वादी-शासन साक्ष्य के लिए नियत था, लेकिन शासकीय अधिवक्ता ने पूरे कार्यकाल में कोई जानकारी प्रभारी अधिकारी तक को नहीं दी।