
पिछले 10 सालों में प्रधानमंत्री मोदी के 8 बड़े फैसले, आज दूसरे एपिसोड में बांग्लादेश को 10 हजार एकड़ ज्यादा जमीन देने की कहानी…
16वीं सदी की बात है। कूचबिहार के महाराजा नर नारायण और रंगपुर के फौजदार शतरंज खेलते थे। शतरंज की बाजी में दोनों अपने-अपने गांवों को दांव पर लगाते थे। यानी हर बाजी में कोई न कोई एक गांव जरूर जीतता था। इस तरह कूचबिहार के राजा ने रंगपुर के 111 गांव और रंगपुर के राजा ने कूचबिहार के 51 गांव जीत लिए। बाद में इन गांवों पर शासन को लेकर दोनों रियासतों के बीच जंग भी हुई।
1713 में इन गांवों को लेकर दोनों रियासतों में समझौता हुआ। समझौते के तहत रंगपुर के 111 गांवों पर कूचबिहार का राज और कूचबिहार के 51 गांवों पर रंगपुर का शासन हो गया। सालों तक यह समझौता लागू रहा। 1947 में भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ। रंगपुर पाकिस्तान का हिस्सा बना और कूचबिहार भारत का, पर इन गांवों को लेकर कोई फैसला नहीं लिया गया।
कूचबिहार के 111 गांव, जो रंगपुर में थे, वो पाकिस्तान में फंस गए और रंगपुर के 51 गांव भारत में रह गए। यानी भारत में पाकिस्तान के गांव और पाकिस्तान में भारत के गांव। किसी भी देश ने इन गांवों में रहने वालों को नागरिकता नहीं दी। 162 गांवों के करीब 50 हजार लोग बिना देश के हो गए।
(बांग्लादेश की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर ए एन एम आरिफुर रहमान ने रिसर्चगेट डॉट नेट में इस किस्से का जिक्र किया है)
भारत के चार प्रधानमंत्रियों ने कोशिश की, 68 साल लग गए समझौते में
1958 में पहली बार भारत और पाकिस्तान के बीच इन गांवों लेकर पंडित जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तानी PM फिरोज खान नून के बीच समझौते की पहल हुई, लेकिन बात नहीं बनी। 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद पूर्व PM इंदिरा गांधी से लेकर मनमोहन सिंह तक, दोनों देशों के बीच समझौते को लेकर कई बार कोशिशें हुईं, लेकिन BJP और TMC के विरोध के चलते सदन से बिल पास नहीं हो सका।
आखिरकार 2015 में PM नरेंद्र मोदी ने उसी समझौते पर दस्तखत कर दिए, जिसका विरोध BJP और RSS हमेशा से करते रहे थे। BJP का कहना था कि हम बांग्लादेश को ज्यादा जमीन नहीं देंगे। समझौते के बाद बांग्लादेश को करीब 10 हजार एकड़ जमीन ज्यादा मिली। भारत ने 51 गांवों के बदले बांग्लादेश को 111 गांव दिए।