Monday, April 29, 2024

History: विश्व की सबसे बड़ी तोप, जो इतिहास में चली एक बार और बना दिया तालाब

एक ऐसी तोप जिसके बारे में सुनते ही दुश्मन कांप जाते थे। इस तोप के लिए 1720 में जयपुर स्थित आमेर के पास जयगढ़ किले में विशेष कारखाना स्थापित किया गया। परीक्षण के लिए जब इससे गोला दागा गया, तो वह 30 किलोमीटर दूर ‘चाकसू’ नामक कस्बे में जाकर गिरा। जहां गिरा वहां एक तालाब बन गया। अब तक उसमें पानी भरा है और लोगों के काम आ रहा है। बस ये बात दूर-दूर तक फैल गई और दुश्मन इस तोप से डरने लगे। किले के नाम के आधार पर ही इस तोप का नामकरण किया गया।

आमेर महल के पास स्थित जयगढ़ के किले में यह तोप स्थित है। इसे ‘एशिया की सबसे बड़ी तोप’ के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि सवाई जयसिंह द्वितीय ने अपनी रियासत की सुरक्षा और उसके विस्तार के लिए कई कदम उठाए। जयगढ़ का किला और वहां स्थापित जयबाण तोप उनकी इस रणनीति का हिस्सा थी।

इस तोप का निर्माण 1720 के आसपास कराया गया था। अरावली की पहाड़ी पर स्थित जयगढ़ किले के डूंगरी दरवाजे पर स्थित जयबाण तोप के बारे में माना जाता है कि यह एशिया की सबसे बड़ी और वजनदार तोप है। इस तोप की नली से लेकर अंतिम छोर की लंबाई 31 फीट 3 इंच है। तोप की नली का व्यास क़रीब 11 इंच है। इसका वजन 50 टन से अधिक होने का अनुमान है।

जयबाण तोप का इस्तेमाल आज तक किसी युद्ध में नहीं हुआ और न ही इसे कभी यहां से हिलाया गया। परीक्षण के लिए इस तोप का गोला तैयार करने में 100 किलो गन पाउडर यानी बारूद की जरूरत पड़ी थी।

इस तोप को बनाने के लिए जयगढ़ में ही कारखाना बनाया गया। इसकी नाल भी यहीं पर विशेष तौर से बनाए सांचे में ढाली गई थी। लोहे को गलाने के लिए भट्टी भी यहां बनाई गई। इसके प्रमाण जयगढ़ किले में आज भी मौजूद है। इस कारखाने में और भी तोपों का निर्माण हुआ। विजयदशमी के दिन इस तोप की विशेष पूजा की जाती है।

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