Home देश दोनों हाथ से एक साथ लिखते हैं ये 100 बच्चे:लोग ‘थ्री ईडियट्स’ के प्रोफेसर सहस्त्रबुद्धे कहते हैं; मिलिए MP के इन बच्चों से

दोनों हाथ से एक साथ लिखते हैं ये 100 बच्चे:लोग ‘थ्री ईडियट्स’ के प्रोफेसर सहस्त्रबुद्धे कहते हैं; मिलिए MP के इन बच्चों से

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MP गजब है, तो यहां के बच्चे भी गजब हैं। उम्र छोटी है, लेकिन नॉलेज के मामले में बड़ों को मात दे दें। आज बाल दिवस पर हम आपके लिए ऐसे ही बच्चों की कहानी लेकर आए हैं, जिन्हें पढ़कर आप भी यही कहेंगे कि छोटा पैकेट, बड़ा धमाका।

सिंगरौली के एक स्कूल में पढ़ने वाले 100 बच्चे एक साथ दोनों हाथों से लिखने में माहिर हैं। रीवा जिले के ‘दो लिटिल गूगल बॉय’ की देश-दुनिया में चर्चा हो रही है। सिर्फ 2 साल की उम्र में दोनों ने मेमोरी पावर से यह उपलब्धि हासिल की है। पहले बच्चे का नाम यशस्वी मिश्रा तो दूसरे का अविराज तिवारी है। यशस्वी मिश्रा विश्व के सभी 195 देशों के झंडे पहचान लेता है, तो अविराज तिवारी कई देशों के अलावा भारत के सभी राज्यों के नक्शे देखकर उनकी पहचान कर लेता है। इसी वजह से अविराज का नाम वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज हुआ है। बालाघाट की 11 साल की आस्था की मेमोरी पावर भी गजब की है।

पहली कहानी सिंगरौली से…
सिंगरौली जिले के छोटे से गांव बुधेला में रहने वाले 100 बच्चे दोनों हाथ से एक साथ लिखने में माहिर हैं। ये सभी बच्चे वीणा वादिनी पब्लिक स्कूल में पढ़ते हैं। ये दोनों हाथों से एक साथ कलम चलाते हैं, वो भी पूरी रफ्तार के साथ। इन्हें क्लास में किसी भी होमवर्क को करने में सामान्य बच्चों के मुकाबले आधा समय लगता है। इन्हें हिंदी, संस्कृत, इंग्लिश, उर्दू और स्पैनिश भाषा का ज्ञान है।

इन्हें कोई ‘थ्री इडियट्स’ फिल्म का ‘प्रोफेसर वीरू सहस्त्रबुद्धे’ तो कोई हैरी पॉटर वाला जादूगर ‘वॉल्ट मोर’ कहता है। बच्चों को यह हुनर उनके स्कूल में सिखाया जाता है। गांव के वीरंगद शर्मा ने बताया कि जबलपुर में सेना का प्रशिक्षण ले रहे थे। सेना के लिए तैयारी के समय देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के बारे में बताया गया कि वे दोनों हाथ से लिखते थे। इस पर उनकी जिज्ञासा बढ़ी, तो कुछ अलग करने के लिए गांव में 1999 में यह स्कूल शुरू किया।

1999 से संचालित वीणा वादिनी पब्लिक स्कूल में अब तक 17 बैच में ऐसे 480 बच्चे पासआउट हो चुके हैं, जो दोनों हाथ से लिखते हैं। 50 से ज्यादा स्टूडेंट्स सिविल सर्विसेज, आर्म्ड फोर्स, पैरामिलिट्री फोर्स सहित विभिन्न सरकारी नौकरियों में हैं। एक बच्चे को तैयार होने में चार से 5 साल लगते हैं।

सिंगरौली के वीणा वादिनी पब्लिक स्कूल के छात्र-छात्राएं एक साथ दोनों हाथों से लिखते हुए। इन्हें हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी, उर्दू और स्पैनिश भाषा का ज्ञान है। इन्हें कोई 'थ्री इडियट्स' फिल्म का 'प्रोफेसर वीरू सहस्त्रबुद्धे' तो कोई हैरी पॉटर वाला जादूगर 'वॉल्ट मोर' बुलाता है।

सिंगरौली के वीणा वादिनी पब्लिक स्कूल के छात्र-छात्राएं एक साथ दोनों हाथों से लिखते हुए। इन्हें हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी, उर्दू और स्पैनिश भाषा का ज्ञान है। इन्हें कोई ‘थ्री इडियट्स’ फिल्म का ‘प्रोफेसर वीरू सहस्त्रबुद्धे’ तो कोई हैरी पॉटर वाला जादूगर ‘वॉल्ट मोर’ बुलाता है।

दोनों हाथों से एक साथ लिखने वाले बच्चों को इंटरनेशनल बुक ऑफ रिकॉर्ड की ओर से प्रमाण पत्र दिया गया है।

  • वीणा वादिनी पब्लिक स्कूल में 1st से 8वीं तक 145 बच्चे पढ़ते हैं।
  • इनमें से 100 बच्चे दोनों हाथ से लिख लेते हैं।
  • 1 बच्चा 11 घंटे में 24 हजार शब्द लिख लेता है।
  • पढ़ाई के साथ रोज डेढ़ घंटे ध्यान और योग की शिक्षा दी जाती है।
  • बच्चे उर्दू में 1 से 100 तक की गिनती 45 सेकेंड में, रोमन गिनती 1 मिनट में, देवनागरी लिपि में 1 मिनट में लिख लेते हैं।
  • दो भाषाओं के 250 शब्दों का अनुवाद भी 1 मिनट में कर देते हैं।
  • 17 तक का पहाड़ा भी 1 मिनट में लिख लेते हैं।
  • 75 बच्चे ऐसे हैं, जो एक हाथ से 2 का पहाड़ा लिखते हैं, तो दूसरे से तीन का।
  • चार और पांच का पहाड़ा भी एक साथ दोनों हाथ से लिख लेते हैं।

रीवा के ‘दो लिटिल गूगल बॉय’ इन दिनों चर्चा में हैं। महज 2 साल की उम्र में ही दोनों का दिमाग कम्प्यूटर से भी तेज चलता है। पहले बच्चे का नाम यशस्वी मिश्रा तो दूसरे का अविराज तिवारी है। यशस्वी दुनिया के सभी 195 देशों के झंडे तुरंत पहचान लेता है। इसके लिए उसे 3 पुरस्कार मिल चुके हैं। इनमें लंदन की संस्था का वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड, हार्वर्ड वर्ल्ड रिकॉर्ड और इंटरनेशनल बुक ऑफ रिकाॅर्ड शामिल हैं। वहीं, अविराज कई देशों का नक्शा पहचान सकता है। हाल ही में वर्ल्ड बुक ऑफ रिकार्ड में नाम दर्ज हुआ है। वे भारत के नक्शे को देखकर राज्य और उसकी राजधानी का नाम चंद सेकेंड में बता देता है।

तीन रिकाॅर्ड अपने नाम करने वाला रीवा का गूगल बॉय यशस्वी मिश्रा। यशस्वी वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड, हार्वर्ड वर्ल्ड रिकॉर्ड और इंटरनेशनल बुक ऑफ रिकाॅर्ड से सम्मानित हो चुके हैं।

यशस्वी मिश्रा की खासियत जान लीजिए
3 रिकॉर्ड मिलने के बाद यशस्वी इन दिनों विज्ञान, भौतिकी, गणित, रसायन शास्त्र, इतिहास, भूगोल और सामान्य ज्ञान से जुड़ी नॉलेज अपडेट कर रहे हैं। यशस्वी इन सभी विषयों से जुड़े नाम, चित्र और वस्तुओं से जुड़े 1000 से ज्यादा फ्लैश कार्ड चंद सेकेंड में पहचान लेते हैं। यशस्वी के पिता संजय मिश्रा मूलत: रीवा के गुढ़ तहसील अंतर्गत अमिलिहा गांव के रहने वाले हैं। वे फिलहाल लखनऊ में रहकर एक विज्ञापन कंपनी में जॉब कर रहे हैं। उनके दो बेटे हैं। बड़ा बेटा 5 साल का व छोटा बेटा यशस्वी 23 महीने का है। यशस्वी का जन्म 25 दिसंबर 2020 को हुआ।

यशस्वी को हार्वर्ड वर्ल्ड रिकाॅर्ड की ओर से दिया गया प्रमाण पत्र।

अविराज तिवारी की खासियत भी जान लीजिए
अविराज की मेमोरी इतनी तेज है कि जिसे भी एक बार देख लेते हैं, उसे कभी नहीं भूलता। 6 महीने पहले माता-पिता ने उनकी प्रतिभा को पहचानते हुए कुछ वीडियो गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड वालों को भी भेजे। वीडियो देखने के बाद संस्था ने कहा कि 13 साल के बाद बच्चों को रिकॉर्ड देते हैं। अविराज इंडियन एयरफोर्स के सभी विमानों को देखते ही उसके नाम बता देते हैं।

भारत के सभी राज्यों का नक्शा पहचाने के लिए 4 नवंबर को वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड लंदन की ओर से प्रमाण पत्र ​जारी किया गया है। अविराज के पिता रामकृष्ण तिवारी मूलत: रीवा के मनगवां तहसील अंतर्गत तिवनी गांव के रहने वाले हैं। पिता इंडियन एयरफोर्स में ऑफिसर हैं। वे परिवार सहित पंजाब राज्य के पठानकोट में रहते हैं। अविराज उनका इकलौता बेटा है। अविराज का जन्म 1 मार्च 2020 को हुआ।

रीवा का गूगल बॉय अविराज तिवारी। अविराज इंडियन एयरफोर्स के सभी विमानों को देखते ही उसके नाम बता देते हैं। पिता इंडियन एयरफोर्स में ऑफिसर हैं।

वर्ल्ड बुक ऑफ रिकार्ड की ओर से अविराज को एप्रिसिएशन लेटर दिया गया है। अविराज को ये प्रमाण पत्र भारत के सभी राज्यों का नक्शा पहचाने के लिए 4 नवंबर को दिया गया।

तीसरी कहानी बालाघाट की दिव्यांग गूगल गर्ल की…
बालाघाट की 11 साल की आस्था दोनों आंखों से दिव्यांग है। कभी स्कूल नहीं गई, लेकिन आस्था में एक खासियत है- याद रखने की। वो जहां भी सफर करती है, रास्ते में आने वाले शहर या स्टेशन की जानकारी अपने पेरेंट्स से पूछती रहती है। फिर दोबारा यात्रा करने पर वो क्रमश: स्टेशन के नाम बता देती है। चाहे कोई स्टेशन हो या कोई तारीख। आस्था से किसी भी बीते या आने वाले किसी भी साल की कोई तारीख पूछी जा सकती है। वो तुरंत ही इसका जवाब दे देती है। बच्ची की मां ज्योति डहरवाल ने बताया कि बेटी जन्म से ही दिव्यांग है। गर्भधारण के 5 महीने बाद ही उसका जन्म हो गया था।

बालाघाट की दिव्यांग गूगल गर्ल दोनों आंखों से दिव्यांग हैं, लेकिन जहां भी सफर करती हैं, वहां के रास्ते में आने वाले सभी स्टेशन व शहरों के नाम बता देती हैं।

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