आज़ादी के पञ्च वर्ष भी नही पुरे नही हुए लेकिन 1950 में ही विंध्य प्रदेश को तोडऩे का भीषण षड्यंत्र रचा गया।इस मुद्दे पर 28 दिसम्बर 1950 के दिन डॉ. लोहिया ने रीवा की एक जनसभा में विन्ध्य को बचाने के लिए प्राणों के अंत तक संघर्ष करने का ऐलान किया। उनके बंबई लौटते ही विन्ध्यवासियों ने अपने विशाल जनसमूह के साथ सड़कों पर उतर आये । 2 जनवरी 1950 के दिन तत्कालीन निरंकुश प्रशासन ने दिल्ली के निर्देश पर हर हाल में आंदोलन को दमन करने की ठानी गयी जिसके कारणपुलिस के लाठीचार्ज से सैकड़ों के हाथ पांव तोडऩे के बाद कलेक्टर ने फायरिंग के आदेश दिए। इस में अजीज, गंगा और चिंताली तीन युवा शहीद हो गए। गोली लगने से दर्जनों घायल हुए और बाद में अपंगता की जिंदगी जी। इस घटना को समाजवादी नेताओं ने विश्व की क्रूरतम घटनाओं में से एक कहा। समाजवादी पार्टी ने बंबई से एक वक्तव्य देश के लिए जारी किया। हम यहां वह बुलेटिन और उसका मुद्रित रूप प्रस्तुत कर रहे हैं। यह बुलेटिन तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष शिवानंदजी की आर्काइव में सुरक्षित है।
बुलेटिन का मुद्रण
“विन्ध्य प्रदेश की समस्या पर समाजवादी नेताओं का वक्तव्य”
बंबई 4 जनवरी 1950,
साथी जयप्रकाश नारायण प्रधानमंत्री समाजवादी पार्टी, साथी अशोक मेहता प्रधानमंत्री हिन्द मजदूर सभा और साथी राममनोहर लोहिया सभापति हिन्द किसान पंचायत ने निम्न वक्तव्य दिया है।
..कम से कम जहाँ तक टेलीफोन और तार का संबंध है, सरकार ने रीवा पर पर्दा डाल दिया है। अंतिम खबर 2 जनवरी के दोपहर की है, जिसमें 4 मरे 25 से अधिक घायल और 250 गिरफ्तार बताए गए हैं। 2 जनवरी की रात को इलाहाबाद से टेलीफोन में बताया गया की गिरफ्तारियां और मरने वालों की संख्या बढ़ गई और विन्ध्य के बहुत से हिस्सों में मार्शल ला के हालात हैं। यह स्पष्ट है कि रोमांचकारी घटनाएं घट रही हैं।विन्ध्यप्रदेश का प्रश्न साधारण है। उस हिस्से में पार्लियामेंट के लिए कोई चुनाव नहीं हुए। करीब दो साल से भारत सरकार और कांग्रेस की तानाशाही चल रही है। उन्होंने प्रांत का निर्माण किया और मिनिस्ट्री नामजद की। इन नामजद लोगों को उन्होंने अलग किया और फिर इन्हीं में से कुछ को भारतीय पार्लियामेंट में प्रतिनिधित्व करने के लिए नामजद किया। और अब इस प्रांत के विलियन और विभाजन के निर्णय पर पहुंचे हैं।
यदि दिल्ली के लोगों का पिछला इतिहास बेशर्मी के साथ भ्रष्टाचार और अयोग्यता का रहा है तो भारत सरकार की विन्ध्य के पड़ोसी सरकारों के साथ हाल ही की बैठकें हद दर्जे की गुटबंदी का परिचय देती हैं। जैसे कि जनता बिक्री की सामग्री हो, जिसके लिए पड़ोसी लड़ रहे हों। दो सालों से बराबर सोशलिस्ट पार्टी और किसान पंचायत ने बार बार यह कहा है कि शताब्दियों से इकट्ठे हुए कूड़े की एक मात्र दवा बालिग मताधिकार के अनुसार चुनाव हैं। विन्ध्य के तोड़े जाने के अभी के प्रश्न पर भी चुनाव की माँग की गई जिससे कि प्रांत की जनता के प्रतिनिधि उसके भविष्य का निर्णय कर सकें। किंतु परिस्थिति गिरती ही गई और स्वतंत्र भारत की सरकार ने पुरानी रियासतों की जनता के साथ वैसे ही तानाशाही का बर्ताव किया है जैसा कि अंगे्रज सरकार किया करती थी और अब एक विस्फोट हो गया। हमें यह याद रखना चाहिए कि किसान पंचायत और समाजवादी पार्टी ने पहले भी किसानों की बेदखली के खिलाफ मोर्चा लिया था जिसमें बहुत सी गिरफ्तारियां और निर्वासन भी हुए थे किंतु सफलता अंत में उन्हीं की रही।
प्रजातंत्र और तानाशाही का यह साधारण प्रश्न जो कि इतनी नृशंसता के साथ विन्ध्य में उठाया गया है पुरानी रियासतों की तमाम जनता पर बराबर असर रखता है। मध्यप्रांत, उड़ीसा और बांबे की धारा सभाओं में एक बहुत ही भद्दे तरीक़े से विलीन रियासतों की जनता के प्रतिनिधि नामजद किए गए हैं। एक नामजद मिनिस्ट्री राजस्थान में काम चला रही है जिसने कि सुआना के हत्याकांड में एक शांत जन समूह से 20 जानें भेंट ली।
विन्ध्य की समस्या हमारे सामने एक महान देशव्यापक प्रश्न उपस्थित करती है। भारत आज एक बहुत बड़ा गरीबों का घर है जिसमें गरीबी और निराशा से कुचले हुए अरमानों वाले निवासियों से दासता या मृत्यु के बीच चुनाव करने के लिए कहा जाता है। कृषि और व्यापार की समस्याओं को हल करने में अपनी हार न मानते हुए सरकार जनता को गोलियों का भोजन दे रही है। राष्ट्र की नींव मजबूत करने के बहाने वे गरीबी की नींव मजबूत कर रहे हैं।
भारत की जनता जो दो वर्ष पहले एक विदेशी शासन को फेकने की शक्ति रखती थी निकट भविष्य में अवश्य उसी ताकत को प्राप्त करेगी। विन्ध्य कृषि और व्यापार की समस्याओं को सुलझाते हुए अपनी जनता की तकलीफों को दूर करना चाहता है। जब तक कि सरकार रीवा हत्याकांड के प्रति जिम्मेदार अधिकारियों को मुअत्तिल नहीं करती, एक कानूनी जाँच नहीं बैठाती, क्रूर शासन का अंत और चुनाव का निर्णय नहीं करती, विन्ध्य की आग शांत नहीं हो सकती, वह अवश्य फैलेगी।
“सारे संसार के समक्ष विन्ध्य की समस्या एक महान प्रश्न उपस्थित करती है कि या तो वह अपनी दीन-हीन दशा में संतोष किए बैठा रहे या उसको सुधारने के लिए हिंसात्मक जनक्रांति का सहारा ले”।
लोगों को इस पर ध्यान देना चाहिए कि शांतिमय परिवर्तन के तीसरे मार्ग का अनुसरण करने की ही वजह से यह विन्ध्य रक्तरंजित है।हम 15 जनवरी को तमाम भारतवर्ष में विन्ध्यदिवस मनाने का आवाहन करते हैं जिसमें कि जुलूस निकाले जांय, सभाएं की जांय तथा विन्ध्य के आंदोलन और पीड़ितों के लिए धन इकट्ठा किया जाय। राममनोहर लोहिया जिन्होंने 28 दिसम्बर को रीवा म्युनिसिपल कमेटी के द्वारा संचालित एक महती सभा में विन्ध्य की समस्या पर प्रकाश डाला था 6 जनवरी की बांबे मेल से रीवा के लिए रवाना हो रहे हैं।”
ज्वलंत साभार : जयराम शुक्ल की कलम से