6 अगस्त 1945 की सुबह। मारियाना द्वीप से उड़ान भरकर अमेरिकी बमवर्षक विमान ‘एलोना गे’ जापान के शहर हिरोशिमा के ऊपर पहुंच चुका था। ठीक सवा आठ बजे इस विमान से दुनिया का पहला परमाणु बम गिरा दिया गया। 43 सेकेंड हवा में रहने के बाद ‘लिटिल बॉय’ फट गया।
मशरूम के शेप में एक बड़ा आग का गोला उठा और आस-पास का तापमान 3000 से 4000 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया। विस्फोट से इतनी तेज हवा चली कि 10 सेकेंड में ही ये ब्लास्ट पूरे हिरोशिमा में फैल गया। 70,000 लोग चंद मिनटों में मारे गए, इनमें से कई लोग तो जहां थे वहीं भाप बन गए।
हिरोशिमा पर बम गिराए जाने की खबर मिलते ही ओपेनहाइमर के चेहरे पर खुशी के भाव दिखाई दिए। उस समय वह कमरे में अपनी पत्नी के साथ बैठे थे। हालांकि अगले ही महीने जब उनकी मुलाकात राष्ट्रपति हैरी एस. ट्रूमैन से हुई तो उन्होंने कहा कि मेरे हाथ खून से रंगे हुए हैं।
परमाणु बम गिराए जाने के बाद हिरोशिमा की तबाही की कहानी आपने पहले भी पढ़ी-सुनी होगी। आज इस स्टोरी में हम बताएंगे परमाणु बनाने वाले साइंटिस्ट ओपेनहाइमर की पूरी कहानी….
ओपेनहाइमर के अमीर मां-बाप को लगता था कि जीनियस है उनका बेटा
1904 में रॉबर्ट ओपेनहाइमर का जन्म अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में हुआ। उनके यहूदी पिता कपड़ों का बिजनेस करते थे। अमीर पिता का बेटा होने के बावजूद ओपेनहाइमर बचपन से ही सामान्य स्वभाव के थे। इस वक्त जर्मनी में यहूदियों पर हिटलर का अत्याचार जारी था। लिहाजा कई बड़े यहूदी साइंटिस्ट, इंजीनियर और डॉक्टर जर्मनी से भागकर अमेरिका जा रहे थे। यह सब देखकर ओपेनहाइमर का पॉलिटिक्स में इंट्रेस्ट बढ़ने लगा।
महज 9 साल की उम्र से वह अलग-अलग भाषाओं के साहित्य पढ़ने लगे। एक रोज जब ओपेनहाइमर के भाई ने उसके कम दोस्त होने की वजह पूछी तो उन्होंने कहा कि- आई नीड फिजिक्स मोर दैन फ्रेंड्स।
इन्हीं वजहों से इस उम्र में भी आम बच्चों की तरह शरारत करने और खेलने की बजाय वह किसी न किसी चीज के बारे में सोचते रहते थे। अकेलेपन में खोए रहने की वजह से कई बच्चे उन्हें चिढ़ाते भी थे, लेकिन उनकी मां और पिता को पता था कि उनका बेटा जीनियस है।
एक इंटरव्यू में ओपेनहाइमर ने कहा था- मुझ पर माता-पिता के इसी भरोसे ने मेरे अंदर अहंकार पैदा कर दिया। मुझे पता है कि बचपन में मेरे करीब आने वाले कई लोग ऐसे रहे होंगे, जिन्हें मेरे इस अहंकार से चोट पहुंची होगी।
1921 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट होने के बाद यूनिवर्सिटी ऑफ गोटिंजन से उन्होंने पीएचडी की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद वह यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में पढ़ाने लगे।
32 साल की उम्र में 22 साल की जीन टेटलॉक से हुआ प्यार
32 साल की उम्र में ओपेनहाइमर की मुलाकात स्टेनफोर्ड मेडिकल स्कूल की एक स्टूडेंट जीन टेटलॉक से हुई। 22 साल की जीन कम्युनिस्ट पार्टी की मेंबर थीं। वहीं, ओपेनहाइमर का झुकाव भी लेफ्ट विचारधारा की ओर था। टेटलॉक पेशे से मनोचिकित्सक और डॉक्टर भी थीं। एक तरह की विचारधारा की वजह से 1932 में दोनों पहली बार कम्युनिस्ट पार्टी के एक कार्यक्रम में मिले।
ओपेनहाइमर फिल्म के इस सीन में बाएं जीन टेटलॉक (एक्ट्रेस फ्लोरेंस प्यू) और जे रॉबर्ट ओपेनहाइमर (सिलियन मर्फी) दाएं नजर आ रहे हैं।
इसके बाद जल्द ही उनके बीच गहरी दोस्ती हो गई। धीरे-धीरे ये दोस्ती प्यार में बदल गई। हालांकि लेफ्ट विचारधारा से प्रभावित होने के बावजूद ओपेनहाइमर ने कभी भी कम्युनिस्ट पार्टी जॉइन नहीं की। जबकि उनके करीबी दोस्त, भाई फ्रैंक ओपेनहाइमर और भविष्य में होने वाली उनकी पत्नी कैथरीन किट्टी कम्युनिस्ट पार्टी के मेंबर रहे थे।
ओपेनहाइमर ने गर्लफ्रेंड जीन टेटलॉक के सामने शादी का प्रस्ताव भी रखा था, लेकिन उन्होंने शादी करने से इनकार कर दिया। इसके बाद 1939 में टेटलॉक ने ओपेनहाइमर से अलग होने का फैसला किया।
रिलेशनशिप टूटने के एक साल बाद ही 1 नवंबर 1940 को ओपेनहाइमर ने साइंटिस्ट कैथरीन ‘किटी’ हैरिसन से शादी कर ली। कैथरीन से शादी होने के बाद भी टेटलॉक से मिलने के लिए ओपेनहाइमर अक्सर सैन फ्रांसिस्को शहर जाते रहते थे। यहां एक हॉस्पिटल में टेटलॉक एक साइकेट्रिस्ट का काम करती थीं।
1943 में ओपेनहाइमर और टेटलॉक के बीच आखिरी बार मुलाकात हुई थी। इस मुलाकात के बाद से ही वह डिप्रेशन में रहने लगी थीं। ओपेनहाइमर से मिलने के करीब 7 महीने बाद 4 जनवरी 1944 को टेटलॉक ने सुसाइड कर लिया। उनकी मौत के बाद तरह-तरह की बातें होने लगीं।
कुछ लोगों का ये भी कहना था कि ओपेनहाइमर के करीब होने की वजह से अमेरिकी जांच एजेंसी FBI टेटलॉक का पीछा कर रही थी। एजेंसी ही उनके मौत की वजह भी बनी। हालांकि अब तक इस बारे में ऐसा कुछ भी पता नहीं चल पाया है।
तीसरे पति को तलाक देकर कैथरीन ने ओपेनहाइमर से की शादी
1940 में ओपेनहाइमर से शादी करने से पहले कैथरीन ने अपने तीसरे पति को तलाक दे दिया था। अपनी शादी के अगले साल 1941 में कैथरीन ने एक बच्चे को जन्म दिया। तीन साल बाद 1944 में ओपेनहाइमर और कैथरीन को बेटी हुई।
कैथरीन पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ में बेहद मैच्योर महिला थीं। यही वजह थी कि अब ओपेनहाइमर को घर के साथ-साथ परमाणु बम बनाने के प्रोजेक्ट में भी अपनी पत्नी का साथ मिल रहा था।
दरअसल, कैथरीन भी ओपेनहाइमर के साथ परमाणु बम बनाने वाले प्रोजेक्ट का हिस्सा बन गई थीं। यहां कैथरीन परमाणु ब्लास्ट होने के बाद उससे निकलने वाले रेडिएशन और उसके खतरों के बारे में रिसर्च करती थीं।
कैथरीन अपने पति ओपेनहाइमर के साथ आखिरी वक्त तक रहीं। हालांकि इस बीच ओपेनहाइमर के टेटलॉक और दूसरी महिलाओं के साथ संबंध होने की बात भी कई बार फैली, लेकिन इसके बावजूद कैथरीन इन्हें नजरअंदाज कर अपने पति के साथ मजबूती से खड़ी रहीं। 1954 में ओपेनहाइमर से जब अमेरिकी एटॉमिक एनर्जी कमीशन में पूछताछ शुरू हुई तो उस वक्त भी कैथरीन ने उनका पूरा साथ दिया।
अपनी पत्नी कैथरीन और बच्चों के साथ साइंटिस्ट ओपेनहाइमर। (Source: @NYT)
1942 में शुरू हुआ परमाणु बम बनाने के लिए ‘मैनहट्टन प्रोजेक्ट’
1939 में सेकेंड वर्ल्ड वॉर के शुरू होते ही परमाणु हथियारों के खतरे को लेकर चर्चा तेज हो गई। यह वह समय था, जब अमेरिका समेत हर देश परमाणु बम बनाने की दौड़ में आगे निकलना चाहता था। इसी समय महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन ने अमेरिकी सरकार को परमाणु बम बनाने के लिए एक चिट्ठी लिखी।
इस चिट्ठी से अलर्ट होने के बाद अमेरिकी सरकार ने जल्द से जल्द इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने का फैसला लिया। 1942 में अमेरिका ने इस पूरे प्रोजेक्ट का जिम्मा अमेरिका के टॉप साइंटिस्ट के कंधे पर डाल गया। इस प्रोजेक्ट को शुरू करने के लिए मैनहट्टन जिले को चुना गया था। इसी वजह से इस पूरे प्लान का नाम ‘मैनहट्टन प्रोजेक्ट’ रखा गया था।
इस प्रोजेक्ट के लिए जो टीम बनी, उसमें साइंटिफिक डायरेक्टर के तौर पर रॉबर्ट ओपेनहाइमर का नाम शामिल किया गया था। 1943 में मैक्सिको के लॉस एलामोस के सुनसान इलाके में नेशनल लेबोरेटरी बनाने का फैसला किया गया। शुरुआत में कई साइंटिस्ट्स ने वहां जाने से इनकार कर दिया, लेकिन जल्द ही लेबोरेटरी बनकर तैयार हो गई।
इस प्रोजेक्ट से जुड़े सभी साइंटिस्ट यहां जुटे और काम शुरू हो गया। लॉस एलामोस के अलावा शिकागो समेत अमेरिका के कई दूसरे शहरों में भी गुप्त प्रयोगशालाएं बनाई गईं।
अगले तीन साल तक ओपेनहाइमर और दूसरे साइंटिस्ट परिवार समेत लॉस एलामोस में बने लेबोरेटरी कैंपस में ही रहे। वहां दिन-रात मिशन को पूरा करने के लिए काम चलता रहा। आखिरकार इस प्रोजेक्ट के शुरू होने के महज तीन साल बाद ही अमेरिकी वैज्ञानिकों ने पहला परमाणु बम का सफल परीक्षण किया। ओपेनहाइमर ने कवि जॉन डॉन की एक कविता के नाम पर इस परीक्षण का नाम ‘ट्रिनिटी’ रखा था।
6 अगस्त 1945 को परमाणु बमबारी के बाद हिरोशिमा में मशरूम के आकार में धुएं का गुबार उठा था। ये उसी समय की तस्वीर है। (Source: @NYT)
ओपेनहाइमर की उम्मीद से 50 गुना ज्यादा ताकतवर था यह धमाका
16 जुलाई 1945 की सुबह 5 बजकर 30 मिनट पर दुनिया के पहले परमाणु बम का परीक्षण होना था। सुबह होने वाले परीक्षण के चिंता की वजह से अमेरिकी साइंटिस्ट जूलियस रॉबर्ट ओपेनहाइमर रातभर सो नहीं पाए। वह जैसे ही बिस्तर पर सोने की कोशिश करते, उन्हें बेचैनी होने लगती थी। बार-बार आ रही खांसी से परेशान होकर वो सिगरेट का कश लगाते हुए बैठकर कुछ सोचने लगते थे।
सुबह के 5 बजे ओपेनहाइमर पूरी तरह से नर्वस दिख रहे थे। जब काउंटडाउन शुरू हुआ तो वह बमुश्किल सांस ले पा रहे थे। फाइव, फोर, थ्री, टू, वन…जीरो और फिर परमाणु बम के स्विच पर उंगली प्रेस होते ही अमेरिका के ‘जोर्नाडा डेल मुएर्टो’ रेगिस्तान में जबरदस्त धमाका हुआ। इस धमाके की वजह से सूरज की चमक फीकी पड़ गई।
चारों ओर धुएं का गुबार नजर आने लगा। इस तरह दुनिया में पहले परमाणु बम का सफल परीक्षण हुआ। ओपेनहाइमर को उम्मीद था कि उन्होंने जो बम बनाया है, उससे 0.3 किलो टन टीनएटी का धमाका होगा, लेकिन जब धमाका हुआ तो यह उम्मीद से 50 गुना ज्यादा खतरनाक था।
रिपोर्ट के मुताबिक इससे 15 से 20 हजार किलो टन टीएनटी का धमाका हुआ। इस धमाके से इतनी गर्मी निकली कि वहां मौजूद स्टील के टावर गलने लगे। उस रेगिस्तान में उठी धुएं की गुबार 12 किलोमीटर की ऊंचाई तक गई।
साथ ही इसका शॉक वेब करीब 160 किलोमीटर दूर तक महसूस किया गया। ये सब कुछ देखकर इसे बनाने वाले साइंटिस्ट ओपेनहाइमर इतने हैरान हो गए कि उस वक्त उनके मुंह से भगवद् गीता की एक पंक्ति निकली- ‘अब मैं दुनिया को खत्म करने वाली मौत बन गया हूं।’
दरअसल, 1929 में ओपेनहाइमर जब अपने देश अमेरिका लौटे तो वह साहित्य और दर्शन की किताबें पढ़ने लगे थे। इसी समय उन्होंने भगवद् गीता भी पढ़ी थी। ओपेनहाइमर गीता पढ़कर काफी प्रभावित हुए थे। वह मानते थे कि इस किताब से उन्हें दार्शनिक सोच की बुनियाद मिली थी। वह जब भी उलझन में होते थे तो इससे उन्हें शांति मिलती थी।
उन्होंने एक बार कहा था कि परमाणु बम बनाते समय नतीजों को सोचकर जब वह डर जाते थे तो उनकी उलझन गीता से कम हो जाती थी। गीता में लिखी इस बात ने उन्हें काफी प्रोत्साहित किया कि- ‘कर्म किए जाओ फल की चिंता मत करो।’
ओपेनहाइमर का मानना था कि साहित्य और दर्शन के बिना सब कुछ अधूरा है। इसी वजह से चीफ साइंटिस्ट होने की वजह से ओपेनहाइमर ने अपनी टीम में सिर्फ वैज्ञानिकों को ही नहीं बल्कि साहित्यकार, पेंटर और दार्शनिक को भी हायर किया था।
तस्वीर में देखा जा सकता है कि परमाणु हमले के बाद 9 अगस्त को हिरोशिमा के एक मेडिकल टेंट में मरीजों का इलाज किया जा रहा है। (Source: @NYT)
जब अमेरिकी राष्ट्रपति से बोले ओपेनहाइमर- मेरे हाथ खून से रंगे हैं
पहले परमाणु बम के सफल परीक्षण के तीन सप्ताह बाद ही अमेरिका ने जापान पर दो परमाणु हमले किए। 6 अगस्त और 9 अगस्त 1945 को हिरोशिमा और नागासाकी नाम की दो जगहों पर हुए इस हमले में करीब 2 लाख लोगों की मौत हुई थी।
इसके बाद अक्टूबर 1945 में अमेरिकी राष्ट्रपति के बुलावे पर ओपेनहाइमर उनसे मिलने राष्ट्रपति भवन गए। यहां ओपेनहाइमर ने उनसे कहा- मैं ऐसा महसूस कर रहा हूं कि मेरे हाथ खून से रंगे हुए हैं। अमेरिकी प्रेसिडेंट को ओपेनहाइमर की बात पसंद नहीं आई और उन्हें दफ्तर से बाहर निकाल दिया गया। इसके साथ ही राष्ट्रपति ने कहा था- मुझे बच्चों की तरह रोने वाले इस इंसान से दोबारा नहीं मिलाना।
अमेरिका के परमाणु परीक्षण के बाद से ही बाकी देशों में भी परमाणु बम बनाने की होड़ शुरू हो गई थी। 1949 में रूस ने भी एटम बम का सफल परीक्षण किया। जवाब में अमेरिका ने हाइड्रोजन बम बनाने का फैसला किया, जो हिरोशिमा पर गिराए गए बम से हजार गुना ज्यादा ताकतवर था।
ओपेनहाइमर लगातार अमेरिकी सरकार के कदम का पुरजोर विरोध करते रहे, लेकिन 1952 में अमेरिका ने हाइड्रोजन बम की टेस्टिंग कर डाली। इसके बाद ओपेनहाइमर को सरकार के खिलाफ जाने की सजा मिली। 1954 में उन पर सोवियत रूस का जासूस होने का आरोप लगा।
अमेरिकी सरकार ने उन्हें सिक्योरिटी क्लियरेंस अप्रूवल देने से मना कर दिया। उन्हें देश के टॉप साइंटिस्ट की लिस्ट से ब्लैकलिस्ट कर दिया गया। ओपेनहाइमर की बाकी की जिंदगी देशद्रोही और गद्दार के लांछन के साथ बीती।
उन पर यह आरोप लंबे समय तक कम्युनिस्ट पार्टी के लोगों से जुड़ाव होने की वजह से भी लगा था। ऐसे में अमेरिकी एजेंसी को शक था कि उनके जरिए इस प्रोजेक्ट से जुड़ी निजी जानकारी रूस समेत कम्युनिस्ट देशों तक पहुंच रही है। इस आरोप पर एटॉमिक एनर्जी कमीशन ने उनसे कई दिनों तक पूछताछ भी की थी।
18 फरवरी 1967 को प्रिंसटन स्थित घर में गले के कैंसर से ओपेनहाइमर की मौत हो गई। मृत्यु से ठीक पहले 1966 में उन्हें एटॉमिक एनर्जी कमीशन का सर्वोच्च सम्मान एनरिको फर्मी अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। राष्ट्रपति लिंडन बी. जॉनसन ने उन्हें इस अवॉर्ड से सम्मानित किया था। आखिरकार ओपेनहाइमर के निधन के 55 साल बाद 2022 में अमेरिकी सरकार ने उनकी वफादारी पर मुहर लगाते हुए उनका सिक्योरिटी क्लियरेंस बहाल किया।