Friday, January 31, 2025

क्यों नहीं दी जाती नागा साधुओं को मुखाग्नि, पहले ही कर चुके होते है पिंडदान, जानिए नागा साधुओं की रहस्य्मयी जीवन

महाकुंभ 2025 में प्रयागराज में आस्था का संगम देखने को मिल रहा है। करोड़ों श्रद्धालु संगम में डुबकी लगा रहे हैं, वहीं नागा साधु भी अपनी परंपराओं का निर्वाह करते हुए अमृत स्नान में भाग ले रहे हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि नागा साधु अपने जीवनकाल में ही अपना पिंडदान और अंतिम संस्कार कर लेते हैं? उनके अंतिम संस्कार की प्रक्रिया आम लोगों से बिलकुल अलग होती है। नागा साधुओं को भू-समाधि या जल-समाधि दी जाती है। यह वीडियो इसी रहस्यमयी परंपरा का खुलासा करेगा।

आज हम आपको ले चलेंगे उस आध्यात्मिक और रहस्यमयी परंपरा के सफर पर, जो नागा साधुओं के जीवन और मृत्यु से जुड़ी हुई है। महाकुंभ 2025 का उल्लास अपने चरम पर है, लेकिन नागा साधुओं के अंतिम संस्कार की प्रक्रिया ने हमेशा से ही लोगों को अचरज में डाला है। तो चलिए, जानते हैं इस अनसुनी कहानी को विस्तार से।

प्रयागराज में महाकुंभ 2025 का आयोजन जारी है। करोड़ों श्रद्धालु संगम में आस्था की डुबकी लगा रहे हैं। मंगलवार को अखाड़ों ने अमृत स्नान किया, जिसमें नागा साधु भी शामिल हुए। नागा साधुओं की रहस्यमयी परंपराएं हमेशा से जिज्ञासा का विषय रही हैं। इनमें से सबसे अनोखी परंपरा है — अपने जीवनकाल में ही खुद का पिंडदान और अंतिम संस्कार करना।

जूना अखाड़ा के कोतवाल अखंडानंद महाराज बताते हैं कि नागा साधुओं का अंतिम संस्कार आम लोगों जैसा नहीं होता। उनका कहना है कि नागा साधु अपने जीवन को पहले ही परमात्मा को समर्पित कर चुके होते हैं। इसीलिए उनकी चिता को अग्नि नहीं दी जाती। उनके लिए भू-समाधि या जल-समाधि का प्रावधान है। नागा साधु पहले ही अपने जीवन का त्याग कर चुके होते हैं। इसलिए उनके शरीर को अग्नि देना अनुचित माना जाता है। भू-समाधि या जल-समाधि ही उनके मोक्ष का मार्ग है।”

भू-समाधि की प्रक्रिया में नागा साधु के शरीर को सिद्ध योग मुद्रा में बिठाया जाता है। भगवा वस्त्र और भस्म से उनका श्रृंगार किया जाता है, जो उनकी साधना और त्याग का प्रतीक है। उनके मुंह में गंगाजल और तुलसी पत्तियां रखी जाती हैं। मंत्रोच्चारण के बाद समाधि स्थल पर सनातनी निशान लगाया जाता है, ताकि उस स्थान की पवित्रता बनी रहे।

नागा साधु जीते जी ही अपने तन-मन को भगवान को समर्पित कर देते हैं। इसलिए उनके शव का अग्नि संस्कार नहीं होता।” पहले के समय में नागा साधुओं को जल-समाधि दी जाती थी, लेकिन प्रदूषण की समस्या को ध्यान में रखते हुए अब उन्हें भू-समाधि दी जाती है। यह विधि उन्हें जीवन-मरण के चक्र से मुक्त कर मोक्ष प्रदान करती है।

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