— टीकेएन प्राइम संपादकीय टीम की कलम से
21 अप्रैल 2025 | नई दिल्ली:
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक बार फिर विदेशी धरती पर भारत के लोकतंत्र पर सवाल उठाए हैं। अमेरिका के ब्राउन यूनिवर्सिटी में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में मतदाता सूची में कथित गड़बड़ियों को लेकर भारतीय चुनाव प्रणाली पर गंभीर आरोप लगाए।
लेकिन सवाल ये है — क्या देश के आंतरिक मामलों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाना सही है? क्या यह भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करने का प्रयास नहीं है?
🇮🇳 एक देशभक्त की दृष्टि से — भारत सर्वोपरि
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। इसमें कमियाँ हो सकती हैं, लेकिन यही हमारी संप्रभुता, विविधता और ताक़त का आधार है। अगर सुधार की ज़रूरत है, तो वह भारत के भीतर होनी चाहिए — संसद, न्यायपालिका और जनआंदोलनों के ज़रिये।
जब एक वरिष्ठ नेता विदेशी मंच से यह कहता है कि भारत में चुनावों की प्रक्रिया “गंभीर समस्या” है, तो यह कई स्तरों पर नुकसानदायक होता है:
यह भारत की वैश्विक छवि को आघात पहुंचाता है।
विदेशी लोग, जिनका भारत के लोकतंत्र से कोई लेना-देना नहीं है, गलत धारणाएं बना लेते हैं।
भारत के युवाओं, विशेषकर विदेशों में रहने वाले भारतीय मूल के छात्रों में अपनी ही मातृभूमि के प्रति अविश्वास पैदा होता है।
🌐 देश के मुद्दे, विदेशी मंच — यह आदत ख़तरनाक है
राहुल गांधी का यह पहला ऐसा बयान नहीं है। इससे पहले भी लंदन, अमेरिका जैसे मंचों पर वे भारत की सरकार और संस्थाओं को लेकर सवाल उठाते रहे हैं। क्या यह केवल आलोचना है, या फिर भारत की छवि को वैश्विक मंच पर कमज़ोर करना?
लोकतंत्र में आलोचना ज़रूरी है — लेकिन मंच और मंशा दोनों का महत्व होता है।
🧠 विदेश में पल रहे भारतीय युवाओं को क्या संदेश दे रहे हैं राहुल?
आज हज़ारों भारतीय छात्र अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य देशों में पढ़ाई कर रहे हैं। वे भारत के भविष्य के ब्रांड एंबेसडर हैं। लेकिन जब देश के नेता ही भारत की छवि को धूमिल करते हैं, तो वही युवा अपने देश के बारे में गलत छवि लेकर बड़े होते हैं।
क्या हम एक ऐसी पीढ़ी तैयार करना चाहते हैं जो भारत को भ्रष्ट, अस्थिर और अविश्वसनीय मानती हो?
🗣 आलोचना देशभक्ति है — लेकिन सीमाओं के भीतर
सरकार की नीतियों पर सवाल उठाना देशद्रोह नहीं होता। पर विदेश जाकर भारत के चुनाव आयोग, संविधान और व्यवस्था को संदिग्ध बताना देश को चोट पहुंचाने के समान है।
एक सच्चा नेता अपने देश की आलोचना अपने देश में करता है, उसे सुधारने की दिशा में जनता को साथ लेकर चलता है — ना कि विदेशी दर्शकों के सामने तालियाँ बटोरने की कोशिश करता है।
✍ राहुल गांधी के लिए एक विनम्र संदेश
राहुल गांधी जैसे नेता को चाहिए कि वह समझें:
अगर वे सच में संविधान की रक्षा करना चाहते हैं, तो उसे भारत में खड़े रहकर करें।
मतदाता में विश्वास जगाएँ, न कि विदेशी मीडिया में अविश्वास बोएँ।
विपक्ष की भूमिका निभाएँ, पर विदेशों में जाकर भारत की प्रतिष्ठा को न गिराएँ।
भारत को बाहरी सराहना की ज़रूरत नहीं है — उसे ऐसे नेताओं की ज़रूरत है जो अपने देश की गरिमा को समझें और उसे मजबूती दें।
भारत को तोड़ने की नहीं, जोड़ने की ज़रूरत है — और ये ज़िम्मेदारी नेताओं से शुरू होती है।






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