महाकुंभ में ग्लैमरस साध्वी हर्षा रिछारिया का विवादों से घिरना एक बड़ी खबर बन गया है। स्वामी आनंद स्वरूप जी महाराज ने उनके महाकुंभ में शामिल होने और सनातन धर्म की दीक्षा पर तीखी टिप्पणी की है। हर्षा लगातार सफाई देते हुए रो रही हैं और महाकुंभ छोड़कर जाने का फैसला किया है।
मशहूर मॉडल और एक्ट्रेस हर्षा रिछारिया, जिन्होंने हाल ही में सनातन धर्म की दीक्षा ली थी, अब महाकुंभ छोड़कर जा रही हैं। उनके आंसुओं और बयानों के बीच एक गहरी बहस छिड़ गई है—क्या धर्म और ग्लैमर का मेल सनातन परंपराओं के खिलाफ है?
महाकुंभ का हर पल आस्था और अध्यात्म का संगम होता है, लेकिन इस बार विवादों की लहर भी बह रही है। ग्लैमरस साध्वी के रूप में प्रसिद्ध हर्षा रिछारिया, जिन्होंने हाल ही में मंत्र दीक्षा ली, आलोचनाओं के केंद्र में हैं। शांभवी पीठाधीश्वर और काली सेना के प्रमुख स्वामी आनंद स्वरूप जी महाराज ने हर्षा की उपस्थिति पर सवाल उठाते हुए कहा, “महाकुंभ में चेहरे की सुंदरता नहीं, बल्कि हृदय की सुंदरता महत्वपूर्ण है। ग्लैमर और बाजारू प्रचार के लिए पवित्र कुंभ का उपयोग नहीं होना चाहिए।”
स्वामी आनंद स्वरूप जी महाराज ने न केवल हर्षा बल्कि विदेशी महिला लॉरेन पॉवेल पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि लॉरेन जैसी विदेशी महिलाओं का शुद्धिकरण किए बिना दीक्षा देना धर्म का अपमान है। महाराज का कहना है कि इस तरह की घटनाएं सनातन परंपराओं को कमजोर करती हैं और कुंभ को ‘मार्केटिंग इवेंट’ में बदल देती हैं। उनके बयान ने धर्माचार्यों और साधु-संतों के बीच सख्त कदम उठाने की मांग तेज कर दी है।
दूसरी ओर, हर्षा रिछारिया, जो एंकरिंग और मॉडलिंग की दुनिया से धर्म की ओर आई हैं, आहत हैं और बार-बार सफाई दे रही हैं। उन्होंने कहा, “मैंने सिर्फ मंत्र दीक्षा ली है। मैं सनातन धर्म को अपनाकर क्या गलत कर रही हूं?” हर्षा ने आरोप लगाया कि उन्हें कुंभ में शामिल होने से रोका जा रहा है और एक बंद कमरे में रहने पर मजबूर किया गया है। उन्होंने रोते हुए कहा, “आनंद स्वरूप जी महाराज को इस अन्याय का पाप लगेगा।”
हर्षा के समर्थन और विरोध में मतों का ध्रुवीकरण हो गया है। इससे पहले ज्योतिर्मठ पीठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने भी हर्षा पर सवाल उठाए थे। उनका कहना था कि, “जिसने यह तय नहीं किया है कि उसे संन्यास लेना है या विवाह करना है, उसे संतों के शाही रथ पर बैठाना गलत है। श्रद्धालु के रूप में शामिल होना उचित होता, पर भगवा वस्त्रों में शाही रथ पर बैठाना परंपरा के विपरीत है।”