कल्पना कीजिए — एक मासूम सा 6 महीने का बच्चा, जिसकी हंसी घर का कोना-कोना रौशन कर रही थी, अचानक उसकी सांसें थमने लगीं, चेहरा नीला पड़ गया और आंखें… जैसे कुछ कहना चाह रही हों। परिवार में अफरा-तफरी मच गई। किसी को समझ नहीं आ रहा था कि इतनी छोटी सी जान को आखिर हुआ क्या है? खंडवा जिले के चारखेड़ा गांव में शुक्रवार की यह दोपहर एक सामान्य दिन जैसी ही थी — जब तक की एक अनहोनी ने सबका दिल दहला नहीं दिया। खेलते-खेलते उस मासूम ने जो निगल लिया, वो सिर्फ एक LED बल्ब नहीं था, बल्कि वो थी मौत की दस्तक, जिसे खुद डॉक्टरों ने समय रहते दरवाजे से लौटा दिया।
गंभीर हालत में मासूम फैजान को लेकर उसके परिजन खंडवा के शासकीय मेडिकल कॉलेज पहुंचे। सीने में दर्द, सांस लेने में तकलीफ और चेहरा नीला पड़ चुका था। त्वरित जांच में सामने आया कि बच्चे की सांस नली में कुछ फंसा हुआ है। एक्स-रे रिपोर्ट ने सभी को चौंका दिया — फैजान की सांस नली में एक झालर से निकला छोटा LED बल्ब फंसा था! स्थिति इतनी गंभीर थी कि अगर कुछ मिनट की भी देरी होती, तो बच्चा दम तोड़ सकता था। इस आपात स्थिति में डॉक्टर सारिका बघेल, डॉ. गरिमा अग्रवाल, डॉ. प्रियंका बोरदिया और ईएनटी विशेषज्ञ डॉ. सुनील बाजोलिया तथा डॉ. सुमित तुरंत एक्शन में आए। टीम ने न केवल सीपीआर दिया, बल्कि सूझबूझ के साथ सुरक्षित तरीके से नन्हे गले से LED बल्ब को बाहर निकाल लिया। यह न केवल चिकित्सा का कमाल था, बल्कि मानवीय संवेदनाओं की भी मिसाल थी।
यह घटना सिर्फ एक मेडिकल केस नहीं, बल्कि हर अभिभावक के लिए चेतावनी है। अक्सर हम बच्चों को रोता देखकर या उन्हें बहलाने के लिए उनके आसपास चमकदार चीजें रख देते हैं — खिलौनों में, झालरों में, सजावट की वस्तुओं में। लेकिन यह चूक जानलेवा साबित हो सकती है। LED बल्ब जैसी छोटी सी चीज भी बच्चों के लिए गंभीर खतरा बन सकती है। खंडवा मेडिकल कॉलेज की टीम ने जो किया, वह सराहनीय तो है ही, परंतु हमें यह भी सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम बच्चों की सुरक्षा को लेकर उतने सजग हैं जितना होना चाहिए?





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