सिंधु जल संधि: भारत-पाकिस्तान के बीच ऐतिहासिक जल समझौताभारत और पाकिस्तान के बीच जब 1947 में बँटवारा हुआ, तब सिंधु नदी प्रणाली का बड़ा हिस्सा भारत में रह गया, लेकिन उसका जल प्रवाह पाकिस्तान की ओर था।भारत के पास सिंधु नदी प्रणाली का स्रोत था, लेकिन पाकिस्तान का अस्तित्व पूरी तरह से इसी पानी पर निर्भर था। इससे पाकिस्तान को डर था कि भारत भविष्य में पानी रोक सकता है और पाकिस्तान की कृषि अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचा सकता है।
इस समस्या को हल करने के लिए दोनों देशों के बीच बातचीत शुरू हुई।उस समय “अंतरराष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक” यानि विश्व बैंक ने इस विवाद को सुलझाने में मध्यस्थता की भूमिका निभाई। जिस में दोनों देशों के बीच कई वर्षों की बातचीत के बाद, 19 सितंबर 1960 को एक ऐतिहासिक समझौता हुआ — जिसे आज हम “सिंधु जल संधि” के नाम से जानते हैं।उस समय भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने इस संधि पर कराची में दस्तखत किए थे।
संधि के प्रमुख प्रावधान:
- नदियों का बँटवारा:
- पूर्वी नदियाँ जैसे रावी, व्यास, सतलुज का नियंत्रण और पानी का पूरा अधिकार भारत को मिला।
- पश्चिमी नदियाँ जैसे सिंधु, झेलम, चिनाब का अधिकांश पानी पाकिस्तान को दिया गया। भारत को केवल सीमित उपयोग की अनुमति दी गई (जैसे सिंचाई, घरेलू उपयोग और गैर-भंडारणीय जलविद्युत परियोजनाएँ)।
- वित्तीय सहायता:
- भारत ने पाकिस्तान को पूर्वी नदियों से कटने वाली उसकी नहरों को फिर से बनाने के लिए लगभग 8 करोड़ डॉलर (उस समय के हिसाब से) की आर्थिक सहायता दी।
- जल उपयोग के नियम:
- भारत पश्चिमी नदियों पर बिना पानी के प्रवाह को रोके छोटे-छोटे बाँध (run-of-the-river hydro projects) बना सकता है।
- बड़े भंडारण बाँधों के निर्माण पर सख्त तकनीकी नियम लगाए गए हैं।
- निगरानी और समाधान प्रक्रिया:
- एक स्थायी सिंधु आयोग (Permanent Indus Commission) का गठन किया गया, जिसमें दोनों देशों के एक-एक आयुक्त होते हैं।
- यदि कोई विवाद होता है, तो पहले दोनों देश आपसी बातचीत से हल करने की कोशिश करते हैं।
- अगर समस्या हल न हो, तो उसे विश्व बैंक के तहत अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण के पास ले जाया जा सकता है।
सिंधु जल संधि की विशेषताएँ:
- युद्ध के बावजूद प्रभावी: 1965, 1971 के युद्ध और 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान भी यह संधि लागू रही।
- विश्व की सबसे सफल जल संधि: इतने लंबे समय तक टिके रहना इसे एक ऐतिहासिक उदाहरण बनाता है।
- पारदर्शिता: दोनों देश हर साल अपने-अपने जल प्रबंधन पर रिपोर्ट साझा करते हैं और निरीक्षण दल भेजते हैं।
समय-समय पर विवाद :
- भारत की परियोजनाएँ जैसे बगलीहार बाँध (Baglihar Dam) और किशनगंगा हाइड्रो प्रोजेक्ट को लेकर पाकिस्तान ने आपत्ति जताई थी।
- पाकिस्तान का आरोप रहा कि भारत पानी के प्रवाह को रोककर पश्चिमी नदियों पर दबाव बना सकता है, जबकि भारत का कहना है कि वह संधि की शर्तों के भीतर रहकर ही परियोजनाएँ बना रहा है।
हालिया घटनाक्रम :
- 2016 में उरी हमले के बाद भारत में यह बहस छिड़ गई थी कि सिंधु जल संधि को तोड़ा जाए।
- 2023 में भारत ने औपचारिक रूप से सिंधु जल संधि के कुछ प्रावधानों की पुन: समीक्षा की मांग की थी, यह कहते हुए कि संधि को आधुनिक समय के हालात के अनुसार अद्यतन किया जाना चाहिए।
सिंधु जल संधि का महत्व:
- क्षेत्रीय शांति का प्रतीक: दो दुश्मन देशों के बीच एक मजबूत और सफल संधि।
- पानी के संकट को रोकना: इससे दोनों देशों में जल संकट और जल युद्ध जैसी स्थिति नहीं बनी।
- विश्व के लिए उदाहरण: अंतरराष्ट्रीय जल विवादों को सुलझाने का एक बेहतरीन मॉडल माना जाता है।
पाकिस्तान ने हाल ही में यह चेतावनी दी है कि यदि भारत ने सिंधु जल संधि के संदर्भ में कोई एकतरफा कदम उठाया, तो पाकिस्तान शिमला एग्रीमेंट को तोड़ सकता है,जो 1972 में दोनों देशो के बीच हुआ था।





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