
क्या कोई कानून देश में धार्मिक सौहार्द बिगाड़ सकता है? क्या एक संशोधन समाज के सबसे संवेदनशील तबके को सड़क पर उतार सकता है? 5 अप्रैल को राष्ट्रपति की मुहर लगते ही वक्फ संशोधन कानून देशभर में लागू हो गया—लेकिन इसके साथ ही शुरू हुआ एक संघर्ष, जो अब न सिर्फ सड़कों तक सीमित है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट की चौखट तक जा पहुंचा है। मुर्शिदाबाद की हिंसा इसकी पहली झलक भर थी, असली आग तो अब पूरे देश में सुलग रही है।
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में मंगलवार को प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच जो टकराव हुआ, वह केवल एक हिंसक भीड़ की प्रतिक्रिया नहीं थी—बल्कि एक गहरी सामाजिक बेचैनी का प्रतिबिंब था। विरोध कर रहे मुस्लिम संगठनों का कहना है कि यह कानून वक्फ संपत्तियों की स्वायत्तता पर चोट है। पुलिस ने रोकने की कोशिश की, लेकिन हालात काबू से बाहर हो गए। पत्थरबाज़ी, आगजनी, लाठीचार्ज और आंसू गैस—सब कुछ हुआ, और पीछे छूट गए घायल पुलिसकर्मी और जली हुई गाड़ियाँ।

विरोध केवल सड़कों तक सीमित नहीं रहा। जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में वक्फ कानून को लेकर दो दिन तक जोरदार हंगामा हुआ। नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) और बीजेपी विधायकों के बीच नारेबाज़ी, धक्का-मुक्की और बिल की प्रतियाँ फाड़ने तक नौबत आ गई। इस विधेयक को राज्यसभा में 128 के समर्थन और 95 के विरोध के साथ पास किया गया, जबकि लोकसभा में आधी रात को हुए मतदान में 288 सांसद समर्थन में थे और 232 ने विरोध किया। साफ है—यह कानून केवल कानूनी दस्तावेज नहीं, बल्कि राजनीति का केंद्र बन चुका है।
अब तक सुप्रीम कोर्ट में इस कानून के खिलाफ 12 याचिकाएं दाखिल की जा चुकी हैं। जमीयत उलेमा-ए-हिंद, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसी संस्थाएं इसे संविधान की आत्मा के खिलाफ बता रही हैं। AIMPLB ने 11 अप्रैल से देशभर में विरोध की घोषणा की है। वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से अर्जेंट हियरिंग की अपील की, जिस पर CJI संजीव खन्ना ने भरोसा दिलाया कि पत्रों व मेल्स को देखकर सुनवाई तय की जाएगी। यह एक संवैधानिक चुनौती है, जो न्यायपालिका की कसौटी पर है।

सरकार का कहना है कि यह कानून वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग, पक्षपात और अतिक्रमण को रोकने के लिए लाया गया है। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने बिल पर चर्चा के दौरान यह दावा किया। पर सवाल यह है—क्या यह कदम सुधार की दिशा में है या धार्मिक संस्थाओं के अधिकारों में हस्तक्षेप? इस सवाल पर न तो ग़ुलाम बनकर सरकार की जयकार करनी चाहिए, और न ही अंधविरोध करना चाहिए। The Khabardar News मानता है कि अगर सरकार पारदर्शिता लाना चाहती है तो उसे हर समुदाय को भरोसे में लेना ही होगा।
मणिपुर से लेकर कश्मीर और कोलकाता तक—इस कानून की प्रतिक्रिया भिन्न-भिन्न है, परंतु पीड़ा एक जैसी। Manipur में BJP अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष के घर पर हमला यह दिखाता है कि राजनीति और धर्म के बीच की रेखाएं अब और धुंधली होती जा रही हैं। यह कानून देश को नई दिशा देगा या सामाजिक ताने-बाने को कमजोर करेगा—यह वक्त और न्यायपालिका तय करेगी।





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