अमेरिका में पढ़ाई कर रहे चार अंतरराष्ट्रीय छात्रों ने अमेरिकी सरकार की नीतियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। भारत के छात्र चिन्मय देवरे, चीन के दो छात्र जियांगयुन बु और क्यूई यांग, और नेपाल के योगेश जोशी ने मिशिगन राज्य की एक संघीय अदालत में मुकदमा दायर किया है। इन छात्रों का आरोप है कि उनके F-1 स्टूडेंट वीजा को अचानक और बिना किसी पूर्व सूचना या ठोस कारण के रद्द कर दिया गया। छात्रों ने बताया कि SEVIS (Student and Exchange Visitor Information System) में उनका वीजा स्टेटस गलत तरीके से समाप्त किया गया, जिससे उनकी शिक्षा और भविष्य पर संकट खड़ा हो गया है।
छात्रों का दावा है कि उन्होंने किसी भी प्रकार का कानून नहीं तोड़ा और न ही किसी तरह की राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा लिया। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अगर कुछ छात्रों को कभी हल्के-फुल्के ट्रैफिक चालान मिले भी हों, तो उन्हें वीजा रद्द करने का आधार नहीं माना जा सकता। उनका कहना है कि न तो उन्हें कोई कानूनी नोटिस दिया गया, न ही इस निर्णय का कोई स्पष्टीकरण मिला। ऐसे में उनके पास अदालत का रुख करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा। छात्रों ने अमेरिका में पढ़ाई का सपना लेकर आए थे, लेकिन अब उनके सामने निर्वासन और शिक्षा के बीच का संकट खड़ा हो गया है।
इस मामले में छात्रों की कानूनी सहायता कर रही संस्था ACLU (अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन मिशिगन) ने इसे गैरकानूनी करार दिया है। ACLU की वकील रामिस वदूद ने कहा कि सरकार की ऐसी कठोर और गलत नीतियों से न केवल छात्रों का करियर खतरे में पड़ रहा है, बल्कि इससे अमेरिका की उच्च शिक्षा प्रणाली की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठ रहे हैं। उन्होंने चेताया कि यदि ऐसे मामले बढ़ते रहे, तो भविष्य में अंतरराष्ट्रीय छात्र अमेरिका आने से हिचक सकते हैं, जिससे अमेरिका की वैश्विक शैक्षणिक छवि को गहरा नुकसान हो सकता है।
इस घटना ने एक बार फिर ट्रंप प्रशासन की आव्रजन नीतियों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। हाल के वर्षों में हजारों अंतरराष्ट्रीय छात्रों को बिना पूर्व सूचना के वीजा रद्द होने, या देश से निष्कासन के नोटिस मिलने जैसी घटनाओं का सामना करना पड़ा है। सिर्फ मिशिगन ही नहीं, बल्कि न्यू हैम्पशायर, इंडियाना और कैलिफोर्निया जैसे राज्यों में भी इसी तरह के मामले सामने आए हैं। इससे छात्रों के बीच भय का माहौल बन गया है, और कई छात्र अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ने को मजबूर हो सकते हैं। यह मामला अमेरिका की आव्रजन नीतियों और शिक्षा व्यवस्था के बीच एक बड़ी बहस को जन्म दे रहा है।






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