27 मार्च 2028 की सुबह, जब शिप्रा किनारे पहली आरती की गूंज गूंजेगी और लाखों श्रद्धालु पुण्य स्नान को उमड़ पड़ेंगे — क्या तब तक सरकार की तैयारियां पूरी होंगी? क्या सिंहस्थ का सपना, जो 14 करोड़ श्रद्धालुओं की आस्था से जुड़ा है, महज सरकारी कागजों में सिमटकर रह जाएगा? 35 महीने शेष हैं लेकिन ज़मीनी हालात खतरनाक रूप से कमजोर हैं। जब पूरा देश महाकाल की नगरी उज्जैन की ओर रुख करेगा, तब क्या उन्हें अव्यवस्थाओं की त्रासदी का सामना करना पड़ेगा? इन सवालों के जवाब भविष्य के गर्भ में छिपे हैं, लेकिन संकेत अभी से चिंता में डालने वाले हैं।
सिंहस्थ 2028 की तैयारियों को भव्य और व्यवस्थित बनाने के लिए 11 विभागों ने मिलकर 15751 करोड़ रुपये के 102 कार्यों का ब्लूप्रिंट तैयार किया है। इसमें से 75 काम, जिनकी लागत 5133 करोड़ रुपये है, इस साल ही सिंहस्थ मद से शुरू करने की अनुशंसा संभागीय समिति ने कर दी है। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से राज्य सरकार ने अपने बजट में सिंहस्थ के लिए मात्र 2000 करोड़ रुपये ही आवंटित किए हैं। सवाल उठता है – क्या भविष्य में बजट बढ़ेगा या फिर योजनाओं की बलि चढ़ेगी? क्या सरकार इस बार सिंहस्थ को लेकर गंभीर है या फिर इसे भी चुनावी घोषणा की तरह देखा जा रहा है?
सिंहस्थ का सबसे बड़ा और जटिल पहलू है – भीड़ प्रबंधन और शुद्ध जल में स्नान की व्यवस्था। इसके लिए आंतरिक सड़कों का चौड़ीकरण, पुलों का दोहरीकरण और घाटों का विस्तार अनिवार्य है। लेकिन प्रशासन इन तीनों बुनियादी जरूरतों पर अभी तक फिसड्डी साबित हुआ है। ट्रैफिक नियंत्रण के लिए प्रस्तावित रोप-वे, फ्रीगंज का समानांतर रेलवे ओवरब्रिज जैसी योजनाएं सक्षम स्वीकृति के बावजूद अधर में लटकी हैं। यानी, जिन परियोजनाओं को अभी तक धरातल पर होना चाहिए था, वे फाइलों में धूल फांक रही हैं।
सिंहस्थ मेला अधिकारी आशीष सिंह के अनुसार, इस बार सिंहस्थ दो महीने तक चलेगा — 27 मार्च से 27 मई 2028 तक। इस दौरान तीन अमृत स्नान होंगे (9 अप्रैल, 19 अप्रैल, 8 मई) और सात पर्व स्नान होंगे। पिछली बार सिंहस्थ महज एक महीने का था, लेकिन इस बार दोगुनी अवधि को देखते हुए तैयारी भी दोगुनी चाहिए थी। लेकिन हकीकत ये है कि साल भर में सिंहस्थ मद से केवल दो कार्य ही धरातल पर शुरू हो पाए हैं। ये आंकड़ा केवल प्रशासनिक लापरवाही का नहीं, बल्कि श्रद्धालुओं की आस्था से खिलवाड़ का संकेत देता है।
अब जब महाकुंभ के आयोजन में केवल 35 महीने शेष हैं और करोड़ों लोगों के जुटने की संभावना है, तब क्या प्रशासन आखिरी समय में ‘तोड़ो और जोड़ो’ की नीति अपनाएगा? विभागीय स्तर पर अधिकांश प्रोजेक्ट्स या तो सक्षम स्वीकृति की प्रतीक्षा में हैं या फिर ठेकेदारों के चयन में उलझे हैं। ये सीधे-सीधे अफसरशाही की ढिलाई और सिस्टम की विफलता को उजागर करता है। अगर यही स्थिति रही तो 2028 का सिंहस्थ न केवल आस्था की परीक्षा बनेगा, बल्कि सरकार और प्रशासन की कार्यक्षमता पर भी बड़ा सवाल खड़ा करेगा। क्या मध्यप्रदेश की महाकुंभ में व्यवस्था भी महा हो पाएगी, या फिर यह आयोजन एक ‘कागजी कुंभ’ बनकर रह जाएगा?






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