नई दिल्ली। बेंगलुरु के दो भाइयों ने अपने माता-पिता के प्रति जो सम्मान और प्रेम दिखाया, वह मिसाल बन गया है। उनका पुश्तैनी मकान हर साल बारिश के मौसम में जलभराव का शिकार हो जाता था। बेटों ने मकान को तोड़कर नया बनाने का विचार किया, लेकिन जब माँ को इस बारे में पता चला, तो उनकी आँखों से आँसू छलक पड़े। उनके लिए यह मकान सिर्फ चार दीवारों का ढांचा नहीं, बल्कि बीते वर्षों की अनगिनत यादों से जुड़ा एक एहसास था। माँ की भावनाओं को ठेस न पहुंचे, इसके लिए दोनों बेटों ने एक ऐसा अनोखा तरीका निकाला जो न सिर्फ भावनात्मक था बल्कि तकनीकी रूप से भी चौंकाने वाला था। उन्होंने अपने पूरे घर को 100 फीट तक खिसकाने का फैसला किया और इसे पूरा करने के लिए आधुनिक तकनीक का सहारा लिया। इस प्रक्रिया पर कुल 15 लाख रुपये खर्च होने का अनुमान है।
बेंगलुरु में पहली बार हो रहा है मकान शिफ्टिंग का काम
दोनों भाइयों ने टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में कहा कि माता-पिता की मेहनत और संघर्ष को वे कभी नहीं भूल सकते। इसलिए उन्होंने इस मकान को गिराने के बजाय इसे ज्यों का त्यों दूसरी जगह शिफ्ट करने का फैसला किया। 1,600 वर्ग फीट में फैले इस मकान को 100 फीट दूर स्थित परिवार की ही एक अन्य जमीन पर स्थानांतरित किया जा रहा है। बुधवार को शुरू हुआ यह काम करीब 25 दिनों में पूरा होगा। बेंगलुरु में इस तरह का यह पहला मामला बताया जा रहा है, जहां किसी मकान को पूरी तरह से खिसकाया जा रहा है।
बारिश के दौरान जलभराव से होती थी परेशानी
भाइयों का कहना है कि हर साल भारी बारिश के कारण थुबराहल्ली झील का पानी ओवरफ्लो हो जाता था, जिससे उनका मकान जलभराव की चपेट में आ जाता था। सीवरेज कनेक्शन भी खराब था, जिससे समस्या और बढ़ जाती थी। बड़े भाई देवराज ने बताया कि उनके पास 100 मीटर दूर 10 गुंठा (10,890 वर्ग फुट) जमीन है। पहले मकान को तोड़कर नया घर बनाने का विचार था, लेकिन माँ की भावनाओं को देखते हुए उन्होंने घर को ही नई जगह ले जाने का फैसला किया। इस प्रक्रिया में 10 लाख रुपये मकान स्थानांतरण पर और 5 लाख रुपये मरम्मत व पुनर्निर्माण में खर्च होंगे।
माँ के लिए यह सिर्फ मकान नहीं, यादों की विरासत थी
70 वर्षीय शांतम्मा ने बताया कि उनके पति और परिवार ने पूरी जिंदगी इस जमीन पर बिताई थी। उनके बच्चे यहीं बड़े हुए और यहीं उनका बचपन बीता। जब परिवार की आर्थिक स्थिति सुधरी, तो 2002 में इस मकान का निर्माण करवाया गया। यह उनके पति येलप्पा का सपना था, जिसे उन्होंने अपनी मेहनत की कमाई से पूरा किया था। दो साल बाद उनके पति का निधन हो गया, और तब से यह मकान उनके लिए एक यादगार धरोहर बन गया। जब बेटों ने इसे तोड़ने की बात कही, तो वह खुद को संभाल नहीं सकीं। उनके लिए यह महज एक इमारत नहीं, बल्कि उनके जीवन के सबसे सुनहरे दिनों की निशानी थी।
तकनीक के सहारे सावधानीपूर्वक हो रही है शिफ्टिंग
मकान शिफ्टिंग का जिम्मा श्री राम बिल्डिंग लिफ्टिंग (अथम राम एंड संस) कंपनी को सौंपा गया है। कंपनी के विशेषज्ञों ने बताया कि यह काम बिना किसी खिड़की, दरवाजे या संपत्ति को नुकसान पहुँचाए सावधानीपूर्वक किया जा रहा है। इस प्रक्रिया में करीब 200 लोहे के जैक, 125 लोहे के रोलर और सात मुख्य जैक का उपयोग किया जा रहा है। अब तक मकान को 15 फीट तक खिसकाया जा चुका है, और जल्द ही यह पूरी प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। यह अनूठी तकनीक अब तक उत्तर भारत और विदेशों में इस्तेमाल की जाती रही है, लेकिन बेंगलुरु में पहली बार किसी परिवार ने इसे अपनाया है।
इस अनोखी पहल से यह साबित होता है कि आधुनिक तकनीक और भावनात्मक जुड़ाव को संतुलित किया जाए, तो मुश्किल से मुश्किल समस्या का हल निकाला जा सकता है। दोनों भाइयों की सोच और माँ के प्रति उनका समर्पण समाज के लिए एक प्रेरणा बन सकता है।