कल्पना कीजिए एक ऐसे देश की… जो दूर कहीं पश्चिम में बसा है, पर जिसकी संसद में आज भारत के करोड़ों लोगों के अस्तित्व से जुड़ा एक मुद्दा गूंज रहा है। जी हां, हम बात कर रहे हैं अमेरिका के जॉर्जिया राज्य की। जहाँ एक ऐसा विधेयक (Bill) पेश किया गया है जो किसी भी भारतीय के दिल को छू लेगा — हिंदू फोबिया के खिलाफ सख्त कानूनी कदम। अब सवाल उठता है: क्या अमेरिका की जमीन पर बसे हिंदुओं को न्याय मिलेगा? क्या यह कानून केवल एक कागज़ी दस्तावेज़ बनकर रह जाएगा या एक बदलाव की शुरुआत होगी? और सबसे अहम बात — क्या भारत सरकार इस पहल से कुछ सीख लेगी?
जॉर्जिया असेंबली में पेश किया गया यह विधेयक सिर्फ एक कागज़ी औपचारिकता नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक कदम है। अगर यह पास हो गया और कानून बना, तो राज्य की दंड संहिता में संशोधन होगा, जिससे ‘हिंदू फोबिया’ और ‘हिंदू विरोधी भेदभाव’ को कानूनी मान्यता मिलेगी। इसका मतलब है—कानून प्रवर्तन एजेंसियां अब ऐसे मामलों में ना सिर्फ कार्रवाई कर सकेंगी, बल्कि अपराधियों को अदालत के कटघरे में भी ला सकेंगी। इससे पहले, जॉर्जिया असेंबली एक प्रस्ताव पास कर चुकी है जिसमें हिंदू धर्म को दुनिया का सबसे प्राचीन और सहिष्णु धर्म बताया गया था। यह विधेयक उसी सोच को एक कदम आगे ले जाता है।
अब बात करते हैं कि आखिर ‘हिंदू फोबिया’ होता क्या है? इस शब्द का इस्तेमाल उन विचारों और कृत्यों के लिए किया जाता है जो हिंदुओं के प्रति घृणा, पूर्वाग्रह या अपमानजनक सोच को दर्शाते हैं। इसमें नस्लीय टिप्पणियाँ, सामाजिक बहिष्कार, धार्मिक प्रतीकों का अपमान, और शारीरिक हमले तक शामिल हो सकते हैं। इस विधेयक में साफ लिखा है कि हिंदुओं के खिलाफ किसी भी प्रकार का शत्रुतापूर्ण व्यवहार, अपमानजनक दृष्टिकोण, या भेदभाव अब अपराध की श्रेणी में आएगा। यानी ये कोई भावनात्मक या नैतिक अपील नहीं, बल्कि अब एक ‘कानूनी हकीकत’ बनने जा रही है।
अमेरिका में इस समय लगभग 25 लाख (2.5 मिलियन) हिंदू रहते हैं, जिनमें से करीब 40,000 जॉर्जिया राज्य में ही बसते हैं। इन प्रवासी भारतीयों ने वर्षों की मेहनत से वहां अपनी पहचान बनाई है—चाहे वो चिकित्सा क्षेत्र हो, टेक्नोलॉजी, शिक्षा या कारोबार। लेकिन बीते कुछ सालों में, खासकर कोविड काल के बाद, नस्लीय और धार्मिक हमलों में तेजी देखी गई है। कई हिंदू परिवारों को अपमानजनक टिप्पणियों और हिंसा का सामना करना पड़ा है। इस विधेयक के ज़रिए जॉर्जिया की सरकार ये संदेश दे रही है कि अब सहनशीलता की परीक्षा नहीं होगी—अब न्याय होगा।
जहाँ एक तरफ अमेरिका का एक राज्य हिंदू विरोधी नफरत के खिलाफ सख्त कदम उठा रहा है, वहीं सवाल उठता है कि भारत जैसे बहुधार्मिक देश में अल्पसंख्यक समुदायों को लेकर ऐसी संवेदनशीलता क्यों नहीं दिखाई जाती? क्या भारत भी इस प्रकार के कानूनों के ज़रिए अपने नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा कर सकता है?