ID देखने के बाद मारी गई गोली…! यह कोई फिल्म की स्क्रिप्ट नहीं, बल्कि जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए हालिया आतंकी हमले की भयावह सच्चाई है। देश के कोने-कोने से जब लोग इस बर्बरता पर गमगीन और आक्रोशित हैं, तभी सामने आया है एक ऐसा बयान, जो सियासत और समाज दोनों को चीरकर रख देता है। कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी के पति और व्यवसायी रॉबर्ट वाड्रा ने इस हमले के पीछे जो तर्क दिए हैं, वो सिर्फ राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि मौजूदा सामाजिक हालात की गहराई तक झांकते हैं। उन्होंने कहा, “आतंकियों ने ID देखकर गोली चलाई क्योंकि उन्हें लगता है कि भारत में मुसलमानों को दबाया जा रहा है।” इस बयान ने सरकार की नीतियों, धार्मिक विभाजन और अल्पसंख्यकों के डर को एक साथ बहस के केंद्र में ला खड़ा किया है।
रॉबर्ट वाड्रा ने न्यूज़ एजेंसी ANI से बात करते हुए सबसे पहले पहलगाम हमले में मारे गए 28 लोगों के प्रति अपनी संवेदनाएं प्रकट कीं, लेकिन इसके बाद जो कहा, उसने विवादों की चिंगारी भड़का दी। वाड्रा ने कहा कि भारत में अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों को लेकर जो माहौल बन रहा है, वह न केवल असुरक्षा की भावना पैदा कर रहा है बल्कि पड़ोसी देशों को यह सोचने पर मजबूर कर रहा है कि यहां भेदभाव हो रहा है। उन्होंने मस्जिदों के सर्वे, नमाज़ पर रोक, औरंगज़ेब-बाबर की बहस, और त्योहारों पर दोहरी नीतियों को आतंकियों की सोच से जोड़ते हुए एक तीखा सवाल खड़ा किया — क्या धर्म के नाम पर देश को बांटा जा रहा है?
वाड्रा ने साफ कहा कि भारत में धर्म और राजनीति का मेल समाज को बांट रहा है। उन्होंने कहा, “जब आप बाबर और औरंगजेब की बात करके राजनीति करते हैं, तो अल्पसंख्यकों को ठेस पहुंचती है। जब मस्जिदों में मूर्तियों की खोज होती है, जब नमाज रोक दी जाती है, तो डर और अलगाव की भावना गहराती है।” उनका मानना है कि अगर इस सोच को नहीं रोका गया तो आतंकी हमले इसी तरह होते रहेंगे। उनका इशारा सिर्फ आतंकी संगठनों की रणनीति की ओर नहीं था, बल्कि एक गहरे सामाजिक संकेत की ओर था — यह कि जब तक हम सभी नागरिकों को समान रूप से सुरक्षित महसूस नहीं कराते, तब तक बाहरी खतरे भी हमारे भीतर की कमजोरी का फायदा उठाते रहेंगे।
वाड्रा के बयान को कोई केवल एक राजनेता की विवादास्पद टिप्पणी मान सकता है, लेकिन अगर गहराई से देखा जाए, तो यह एक चेतावनी है। उन्होंने कहा, “जब एक समुदाय को खुले में त्योहार मनाने, प्रार्थना करने और प्रचार की छूट दी जाती है, और दूसरे को रोका जाता है — तो दुनिया देखती है, और नाराज़ होती है। यही सोच उन संगठनों को जन्म देती है जो पहचान देखकर हत्या करते हैं।” उनका यह तर्क प्रधानमंत्री और सरकार के लिए भी एक सीधा संदेश था — कि अब समय है जब सबसे ऊंचे स्तर से यह विश्वास दिलाया जाए कि भारत का हर नागरिक, चाहे वह किसी भी धर्म का हो, इस देश में सुरक्षित और समान है।





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