दीपावली पर महालक्ष्मी पूजा के लिए चांदी के सिक्के खरीदने जा रहे हैं… तो अलर्ट हो जाएं। कहीं आप भी 550 रुपए देकर 18 रुपए वाला चांदी का खोटा सिक्का तो नहीं खरीद रहे।
आपका ये डर 100% सही हो सकता है… क्योंकि बाजार में चांदी के सिक्कों के हूबहू नकली सिक्के बन और बिक रहे हैं। महज 400 रुपए किलो वाली गिलट धातु और एक हजार रुपए किलो वाले जर्मन सिल्वर से फैक्ट्रियों में इन्हें तैयार कर मार्केट में बेचा जा रहा है, लेकिन कीमत 55 हजार रुपए किलो वाली चांदी की वसूली जा रही है।
चांदी में मिलावट कर नकली सिक्के बनाने और बेचने का ये खेल जयपुर, अजमेर, कोटा और जोधपुर जैसे बड़े शहरों में धड़ल्ले से हो रहा है। कई सीक्रेट फैक्ट्रियों में सिक्के ढालने की बड़ी-बड़ी मशीनों पर दिन-रात सैकड़ों किलो नकली चांदी के सिक्के ऑर्डर पर तैयार हो रहे हैं। यहां से बने सिक्के ज्वेलर्स शोरूम और छोटे व्यापारियों के जरिये आपके घर में पूजा की थाली तक पहुंच रहे हैं।
जयपुर के पास सीतापुरा इंडस्ट्रियल एरिया में सद्दाम और साहिल बनकर पहुंचे। यहां हमने कुछ लोगों से चांदी के सिक्कों के बड़े मेन्युफेक्चरर के बारे में जानकारी जुटाई। इसके बाद एक हम एक फैक्ट्री में पहुंचे। यहां घुसने से पहले सिक्योरिटी गार्ड ने बाहर ही हमारे मोबाइल रखवा लिए। बताया कि यहां अन्दर मोबाइल या कोई भी गैजेट ले जाना सख्त मना है। अगर आप गलती से ले भी गए तो आगे डिटेक्टर मशीन में डिटेक्ट हो जाएगा।
इसके बाद हम मेन्युफेक्चरर से मिले और खुद को अजमेर के ज्वेलरी कारोबारी बताया। हमने उसके आगे इस दीवाली 5 हजार सिक्के खरीदने की डील की, लेकिन उसे ये भी बताया, हमें ये सिक्के 99 परसेंट मिलावट के साथ गिलट या जर्मन सिल्वर के ही चाहिए। इन पर सिल्वर कोटिंग होनी चाहिए। भरोसा दिलाया कि अगर मार्केट से बढ़िया रिस्पांस मिला तो कुछ दिनों बाद बड़ा ऑर्डर देंगे।
पहले तो उसने इधर-उधर देखा, फिर बोला- आप जो भी मेटल देंगे, वो उसके सिक्के बना देगा। मेकिंग चार्ज 900 रुपए किलो के हिसाब से लगेगा। इसके साथ ही सिल्वर कोटिंग का खर्चा एक्स्ट्रा लगेगा। उसने यह दावा किया कि वो सिक्कों की 99% शुद्धता का सर्टिफिकेट भी देगा।
बातों ही बातों में हमने खुद की तसल्ली के लिए उसे सिक्कों की मैन्युफैक्चरिंग और टेस्टिंग प्रोसेस दिखाने को कहा, लेकिन उसने हमें ये करने से साफ मना कर दिया। बोला- आप प्रोसेस छोड़िए, यहां अन्दर आने दिया वो ही बहुत बड़ी बात है। बिना रेफरेंस के वो किसी भी ग्राहक से डायरेक्ट डील नहीं करते। काफी देर तक कन्विंस करने और बड़े ऑर्डर का लालच देने के बाद वह तैयार हो गया। इसके बाद यकीन होने पर उसने मोबाइल भी लौटा दिए।
हमने यहां हाई रेजोल्यूशन वाले हिडन कैमरे से सिक्कों के बनाने की पूरी प्रोसेस को कैद किया….
अन्दर जाकर हमने देखा कि एक मशीन के जरिए काम करने वाला कारीगर सिक्के तैयार कर रहा था। यहां सबसे पहले मेटल को मशीन से रोल कर पतली शीट तैयार की जा रही थी। फिर कटर से अलग-अलग लेयर में काटा जा रहा था। इसके बाद एक दूसरी मशीन से लेयर के कॉइन साइज के टुकड़े कट हो रहे थे।
ये पूरा प्रोसेस एक सेमी ऑटोमेटिक टाइप मशीन से हो रहा था। एक कारीगर शेप में आने के बाद टुकड़ों पर चमकदार सिल्वर पोलिश के काम में ही लगा था। पॉलिश होने के बाद इन सभी टुकड़ों को फिक्स साइज और मेजरमेंट में लेकर प्रेशर मशीन के जरिए डाई से सिक्के छापे जा रहे थे।
नकली सर्टिफिकेट तक देने को तैयार
भास्कर रिपोर्टर ने फैक्ट्री ऑनर से तैयार सिक्कों के सैंपल मांगे, लेकिन ऑर्डर कंफर्म होने तक वह सैंपल देने को तैयार नहीं हुआ। उसने यह भी क्लियर कर दिया कि इन्हें अगर लैब में टेस्ट करवाया जाए तो ये सैंपल फेल ही होंगे, लेकिन कस्टमर को यकीन दिलाने के लिए वह चांदी की शुद्धता वाला सर्टिफिकेट दे देगा।
उसने बताया कि कस्टमर को कन्वेंस करने के लिए उसके पास चांदी की क्वालिटी जांचने की मशीन है। जिससे तैयार सर्टिफिकेट, हूबहू हॉलमार्क की तरह लगता है। इसे दिखाकर कस्टमर को भी आसानी से भरोसे में लिया जा सकता है।
सर्राफा ट्रेडर्स कमेटी, जयपुर के उपाध्यक्ष मनीष खूंटेटा सहित कुछ व्यापारियों ने बताया कि मिलावट की चांदी ज्यादातर कस्बाई और ग्रामीण क्षेत्रों में बेची जा रही है। अधिकतर लोग लक्ष्मी पूजन के लिए सिक्के लेते हैं और फिर अंदर पैक करके अच्छे से रख देते हैं। तीन-चार साल बाद उस सिक्के का जब रंग कुछ गड़बड़ लगता है, तब लोगों को शक महसूस होता है, लेकिन तब तक देर हो चुकी होती है।
दो तरह से होती है मिलावट
पहली : सिल्वर में 30 से 40% तक गिलट या जर्मन सिल्वर मिक्स कर सिक्के तैयार किए जाते है। ऐसे सिक्कों में 40 फीसदी तक की मिलवाट वाली गिलट और जर्मन सिल्वर के असल चांदी के बराबर 55 हजार से 57 हजार रुपए के भाव लिए जाते हैं। इससे मोटा मुनाफा होता है।
दूसरी : 99.99% सिक्के गिलट या जर्मन सिल्वर से तैयार किए जाते हैं, लेकिन चमकदार दिखाने के लिए इन पर चांदी की पॉलिश कर दी जाती है। 800-900 रुपए किलों की मैन्युफैक्चरिंग लागत के बाद तैयार नकली सिक्कों को बाज़ार में असल चांदी के सिक्कों के बीच मिक्स कर आसानी से 55 हजार से 57 हजार रुपए के भाव से बेचा जाता है।
जर्मन सिल्वर क्या है?
जर्मन सिल्वर या निकल सिल्वर, तांबे का एक मिक्सचर मेटल है जिसमें निकल और जस्ता मिला होता है। इसमें 60 फीसदी तांबा, 20 फीसदी निकल और 20 फीसदी जस्ता होता है। इसे ‘जर्मन सिल्वर’, नई चांदी, निकल, पीतल और इलेक्ट्रम नामों से भी जाना जाता है। दिखने में ‘जर्मन सिल्वर’ चांदी जैसा होता है, लेकिन इसमें चांदी नाम मात्र की भी नहीं होती है। इसके नाम में ‘जर्मन’ इसलिए आया क्योंकि इसका विकास जर्मनी के धातु कर्मियों ने किया था।
ज्वेलरी का बिजनेस हमेशा से ही विश्वास पर होता आया है, लेकिन शहर में कई ज्वेलर सोने-चांदी की खरीद में घालमेल कर रहे हैं। इस ठगी को जांचने और रोकने का कोई तरीका नहीं है। हालत ये है कि 65, 70 व 80% शुद्धता की चांदी आती है और दुकानदार कीमत 100% की लेते हैं। उसके ऊपर से मेकिंग चार्ज अलग से लिया जा रहा है।
ज्वेलर्स विशेषज्ञों ने चांदी के सिक्कों की प्योरिटी चेक करने के कुछ तरीके बताए हैं, जिन्हें आजमा कर कोई भी चांदी के सिक्के की जांच कर सकता हैं।
सिक्के की खनक से पहचानें : चांदी के सिक्के की क्वालिटी और प्योरिटी उसकी ‘खनक’ सुनकर भी चेक की जा सकती है। सिक्के को लोहे के टुकड़े पर टकराने से यदि खनक की आवाज ज्यादा आए, तो माना जाता हैं कि इसमें मिलावट है।
मैग्नेट टेस्ट : घर में सामान्य तौर पर चुंबक मिल जाती हैं। चांदी में मिलावट होगी, तो वह चुंबक से आकर्षित होगी। भले ही बहुत ही कम चिपके, लेकिन असली चांदी चुंबक से बिलकुल भी आकर्षित नहीं होती।
आइस टेस्ट : बर्फ के टुकड़े से भी चांदी की परख हो सकती है। चांदी को बर्फ पर रखा जाए, तो वह तेजी से पिघलेगी। चांदी में थर्मल कंडक्टिविटी होती है, जो बर्फ को पिघलाने की रफ्तार को बढ़ा देती है।
पत्थर पर घिसकर या रगड़कर : चांदी के सिक्के को पत्थर पर रगड़ने यानी घिसने से जो लकीर बनती है, वो सफेद रंग की हो तो वो चांदी सही मानी जा सकती है। यही लकीर पीलेपन या ताम्बे के रंग जैसी दिखाई दे तो ये मिलावटी हो सकता है।
एसिड टेस्ट : सिल्वर कॉइन पर ज्वेलरी शॉप में हर समय उपलब्ध रहने वाले नाइट्रिक एसिड की एक बूंद डालने पर यदि उस जगह पर हरा या नीला रंग दिखे तो उसमें मिलावट तय है। यदि रंग सफेद या हल्का काला नजर आए तो वो सिक्का ओरिजिनल है।
अब सबसे बड़ा सवाल : क्या चांदी में गोल्ड की तरह हॉलमार्क नहीं होता?
एक्सपर्ट बताते हैं कि गोल्ड की तरह चांदी पर भी हॉलमार्किंग होती है, लेकिन इस धातु की वैल्यू कम होने के कारण सिक्कों पर हॉलमार्क जैसा ज्यादा प्रचलन नहीं है। क्योंकि उसकी फीस लगती है। एक-एक सिक्के पर फीस चुकाने से सिक्के की लागत बढ़ती है। यही वजह है कि कस्टमर भी सिक्कों में हॉलमार्क वाली चांदी की डिमांड नहीं करते।
सर्राफा बाजार से जुड़े सूत्रों के अनुसार सरकारी मशीनरी के पास चांदी में मिलावट को पकड़ने का कोई मैकेनिज्म नहीं है। सरकार का नाप-तौल विभाग केवल तौल सही है या नहीं, इसकी जांच तक ही सीमित है। चांदी के सैंपल कलेक्शन भी नहीं होता है।