भारत की आज़ादी के लिए किए गए संघर्ष में सैकड़ों क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहुति दी, लेकिन इस लड़ाई का इतिहास लाला लाजपत राय के बिना अधूरा है। उन्हें “पंजाब केसरी” के नाम से जाना जाता है। 28 जनवरी 1865 को पंजाब के मोगा जिले में जन्मे लाला लाजपत राय ने अपने विचारों और कार्यों से स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी। उनकी प्रारंभिक शिक्षा मोगा में हुई और आगे की पढ़ाई लाहौर के फॉरमैन क्रिश्चियन कॉलेज में पूरी की। बचपन से ही राष्ट्रहित में कुछ करने की उनकी इच्छा ने उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जोड़ा, जहाँ उन्होंने 1880 के दशक में अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की। अपने विचारों और अदम्य साहस के बल पर वह कांग्रेस के प्रमुख नेता बने और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई।
ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लड़ते हुए लाला लाजपत राय ने कई आंदोलनों का नेतृत्व किया, जिनमें 1907 का पंजाब आंदोलन सबसे प्रमुख था। 1928 में जब साइमन कमीशन भारत आया, तो इसके खिलाफ देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए, क्योंकि इसमें भारतीयों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं था। 30 अक्टूबर 1928 को लाहौर में लाला लाजपत राय के नेतृत्व में एक बड़े प्रदर्शन का आयोजन किया गया। इस प्रदर्शन को कुचलने के लिए ब्रिटिश पुलिस ने बर्बर लाठीचार्ज किया, जिसमें लाला जी गंभीर रूप से घायल हो गए। उन्होंने कहा था, “मेरे शरीर पर पड़ी हर लाठी ब्रिटिश शासन के ताबूत में कील साबित होगी।” उनकी चोटों के चलते 17 नवंबर 1928 को उनका निधन हो गया। उनकी शहादत ने भगत सिंह और उनके साथियों को ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ निर्णायक संघर्ष के लिए प्रेरित किया।
लाला लाजपत राय न केवल एक क्रांतिकारी थे, बल्कि एक दूरदर्शी समाज सुधारक भी थे। उन्होंने 1894 में भारत का पहला स्वदेशी बैंक, पंजाब नेशनल बैंक स्थापित किया, जो आज भी भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ बना हुआ है। इसके साथ ही उन्होंने लक्ष्मी इंश्योरेंस नामक कंपनी की स्थापना की और पंजाब में आर्य समाज के प्रचार-प्रसार में अहम भूमिका निभाई। उनका योगदान हर क्षेत्र में प्रेरणादायक था, जिसने भारत को स्वतंत्रता के पथ पर आगे बढ़ाया। उनकी शहादत और योगदान को आज भी हर भारतीय श्रद्धा और गर्व से याद करता है।