ओटीटी की दुनिया में जब किसी हिट सीरीज का दूसरा सीजन आता है, तो सबसे पहला सवाल यही होता है कि आखिर इतना लंबा इंतजार क्यों? अमेज़न प्राइम वीडियो की चर्चित सीरीज ‘पाताल लोक’ का दूसरा सीजन पांच साल बाद दर्शकों के सामने है। इस बार कहानी दिल्ली के अंधेरे गलियारों से निकलकर उत्तर-पूर्व के अनजाने अपराधी लोक में पहुंचती है। लेकिन क्या यह सफर दर्शकों की उम्मीदों पर खरा उतरता है? यही सवाल हर प्रशंसक के मन में है। पहले सीजन की निर्माता अनुष्का शर्मा और उनके भाई कर्णेश शर्मा इस बार प्रोजेक्ट से बाहर हैं। निर्देशक-लेखक सुदीप शर्मा ने अब अपने नए सह-लेखकों अभिषेक बनर्जी, राहुल कनौजिया और तमल सेन के साथ मिलकर कहानी को आगे बढ़ाया है।
नई कहानियों में उलझती पुरानी जोड़ीदूसरे सीजन की कहानी एक लापता मजदूर और नागालैंड के प्रभावशाली नेता की हत्या की दो अलग-अलग तफ्तीशों से शुरू होती है। इन घटनाओं के तार वहीं आकर जुड़ते हैं, जहां एक बार फिर इंस्पेक्टर हाथीराम चौधरी और अब आईपीएस बन चुके इमरान अंसारी की मुलाकात होती है। हाथीराम का वही पुराना जज्बा और बढ़ा हुआ वजन उसके बदले हालात की कहानी कहता है। यह दोस्ताना रिश्ता, पदों में बदलाव के बावजूद, सीरीज का सबसे मजबूत पक्ष है। लेकिन क्या बार-बार एक जैसी जद्दोजहद देखने का आकर्षण बना रहता है? यही इस सीजन की सबसे बड़ी चुनौती है।
कहानी के विस्तार में फंसता तानाबानाइस बार की पटकथा दिल्ली से लेकर नागालैंड तक बिखरी हुई लगती है। एक तरफ ड्रग्स का कारोबार तो दूसरी तरफ उत्तर-पूर्व के विद्रोही संगठनों की फंडिंग और उनकी असलियत को बेनकाब करने की कोशिशों में कहानी उलझ जाती है। एक्सपेरिमेंटल स्टोरीटेलिंग के नाम पर दर्शकों को हिंदी, अंग्रेजी और नागामी (स्थानीय भाषा) के बीच छलांग लगानी पड़ती है, जिससे सामान्य दर्शकों को संवाद समझने में कठिनाई होती है। बेशक, सुदीप शर्मा ने कहानी में नया मोड़ लाने की कोशिश की है, लेकिन वह प्रभावी नहीं हो पाता।
कैरेक्टर परफॉर्मेंस और निर्देशन में खामियांजयदीप अहलावत का हाथीराम चौधरी पहले से ज्यादा थका और भारी लगता है। उनका चढ़ा हुआ पेट और थकी हुई सांसें किरदार की थकान को दर्शाती हैं, लेकिन इस बार वह इसे नए अंदाज में पेश करने में असफल रहे हैं। इमरान अंसारी बने इश्वाक सिंह का सादापन धीरे-धीरे फीका पड़ता दिखता है। तिलोत्तमा शोम अपनी भूमिका में पहचान में आती हैं, लेकिन गुल पनाग के किरदार में कोई नयापन नहीं है। सीरीज में उत्तर-पूर्व के कलाकारों की भरमार है, लेकिन प्रशांत तमांग को छोड़कर कोई खास असर नहीं छोड़ता।
इंतजार के बाद निराशा‘पाताल लोक 2’ को देखना दर्शकों के धैर्य की परीक्षा लेना जैसा है। अगर आप बिंज वॉच के शौकीन हैं, तो निराशा तय है। लेकिन अगर आप जयदीप अहलावत के जबरदस्त फैन हैं, तो इसे एक-एक एपिसोड करके धीरे-धीरे देख सकते हैं। बैकग्राउंड म्यूजिक पहले जैसा ही है, जो कुछ खास नया अनुभव नहीं देता। अमेज़न प्राइम ने इसे नेटफ्लिक्स की ‘ब्लैक वारंट’ से मुकाबला करने के लिए उतारा है, लेकिन कमजोर कहानी और ढीली पटकथा इसे पीछे छोड़ देती है।





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