बुरहानपुर: गर्मी के दस्तक देते ही मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले में मटका बाजार की रौनक बढ़ गई है, लेकिन इस बार यहां कुछ अनोखा नज़ारा देखने को मिल रहा है—यहां मटके ‘बोलते’ हैं! जी हां, गणपति थाने के पास सजने वाले इस पारंपरिक बाजार में दुकानदार अपने मटकों को हल्के से थपथपाते हैं, और उनसे निकलने वाली मधुर ध्वनि ग्राहकों को आकर्षित करती है। यह सिर्फ एक ख़रीदारी नहीं, बल्कि एक परंपरा का अनुभव है, जहां हर मटके की अपनी एक अलग पहचान है। इस अनोखी विशेषता के चलते ग्राहक बड़ी संख्या में इन मटकों की खरीदारी करने पहुंच रहे हैं।
मटकों की यह ध्वनि उनकी गुणवत्ता की गारंटी भी है। जब सही तरीके से पकाया गया मटका हल्की चोट पर ‘ठन-ठन’ की स्पष्ट आवाज़ निकालता है, तो इसका मतलब होता है कि वह मजबूत और टिकाऊ है। ये मटके नर्मदा नदी की खास मिट्टी से बनाए जाते हैं, जिनमें पानी ठंडा रखने की अद्भुत क्षमता होती है। देवास और खातेगांव से आए कुशल कारीगरों की छह महीने की मेहनत से तैयार इन मटकों को पारंपरिक भट्टियों में पकाया जाता है, जिससे उनकी मजबूती और गुणवत्ता बरकरार रहती है। यही कारण है कि यह मटका बाजार न केवल स्थानीय लोगों के लिए, बल्कि दूर-दराज़ से आने वाले ग्राहकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
बाजार में आने वाले लोग मटके खरीदने के साथ-साथ उनकी अनोखी ध्वनि का भी लुत्फ उठाते हैं। बुजुर्ग कहते हैं कि सही मटका चुनने का यह तरीका वर्षों पुराना है, वहीं महिलाएं इसे केवल बर्तन नहीं, बल्कि परंपरा और शुद्धता की पहचान मानती हैं। बच्चे इसे बजाकर खुश होते हैं, मानो कोई देसी संगीत सुन रहे हों। इस बार इन सुरमयी मटकों की कीमत ₹50 से ₹500 तक पहुंच गई है और मांग इतनी बढ़ गई है कि लोग मटके की आवाज़ सुनकर ही अपनी पसंद तय कर रहे हैं। अगर आप भी इस अद्भुत अनुभव का हिस्सा बनना चाहते हैं, तो बुरहानपुर का यह अनोखा मटका बाजार आपका इंतजार कर रहा है!