कल्पना कीजिए — आप अपने किसी प्रियजन को दिल की बीमारी के इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती करते हैं। डॉक्टर सफेद कोट में आता है, आत्मविश्वास से भरी बातें करता है, और कहता है कि सर्जरी सफल होगी। लेकिन कुछ ही घंटों में आपकी दुनिया उजड़ जाती है। मरीज की मौत हो जाती है… और बाद में पता चलता है — डॉक्टर असली नहीं, एक फर्जीवाड़ा था! दमोह के ‘मिशन अस्पताल’ में घटा ये भयानक सच, हमारे पूरे स्वास्थ्य तंत्र पर सबसे बड़ा सवाल बनकर उभरा है।
दमोह के मिशन अस्पताल में कथित कार्डियोलॉजिस्ट नरेंद्र यादव द्वारा की गई ‘सर्जरी’ के बाद 7 मरीजों की मौत हो गई। जांच में सामने आया कि नरेंद्र यादव न तो भारत में रजिस्टर्ड डॉक्टर है और न ही उसकी मेडिकल डिग्रियां वैध हैं। उसने कबूल किया कि मकाऊ में उसके फर्जीवाड़े का खुलासा पहले ही हो चुका था और वहां उसकी मेडिकल डिग्री भी 5 साल के लिए जब्त कर दी गई थी। इतना ही नहीं, वह भारत के अन्य शहरों में भी कार्डियोलॉजिस्ट बनकर लोगों की जान से खेलता रहा। यह केवल एक फर्जी डॉक्टर की कहानी नहीं है, यह उन संस्थानों की भी कहानी है जो ऐसी घटनाओं को बढ़ावा देते हैं — या आंख मूंदकर देखते हैं। इस पूरे फर्जीवाड़े की जड़ें अस्पताल के प्रशासन से लेकर विभागीय अधिकारियों तक फैली हुई हैं।
कैथलैब, जो मरीजों के हृदय परीक्षण के लिए बनाई गई थी, उसे जबलपुर के डॉ. अखिलेश दुबे के नाम से ऑनलाइन रजिस्टर्ड किया गया — वो भी फर्जी हस्ताक्षर के जरिए। सवाल यह है कि इस प्रक्रिया में कई सत्यापन चरण होते हैं, फिर फर्जी रजिस्ट्रेशन कैसे हो गया? क्या विभागीय मिलीभगत थी या फिर सिर्फ लापरवाही? अस्पताल संचालक डॉ. अजय लाल, उनकी पत्नी इंदुलाल और अन्य 7 लोगों — अशीम न्यूटन, फ्रेंक हैरिसन, जीवन मैसी, रोशन प्रसाद, कदीर यूसुफ, संजीव लैम्बार्ड और विजय लैम्बार्ड — को फर्जी दस्तावेज बनाने और उन्हें मान्य करवाने में दोषी पाया गया है। इस पूरे घोटाले से साफ है कि प्रशासनिक जिम्मेदारियां निभाने में स्वास्थ्य विभाग पूरी तरह फेल रहा। जब फर्जी दस्तावेजों पर रजिस्ट्रेशन स्वीकार किया गया, तब क्यों नहीं की गई क्रॉस वेरिफिकेशन? सीएमएचओ तक को कैथलैब के सील होने से दो दिन पहले इसकी जानकारी मिली — लेकिन उस समय भी कोई कड़ी कार्रवाई नहीं हुई।
सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि अस्पताल के संचालक डॉ. अजय लाल और उनकी पत्नी इस समय अमेरिका में हैं। वे पहले से ही एक धर्मांतरण केस में जमानत लेकर भारत से बाहर जा चुके हैं, जिससे उनकी गिरफ्तारी अब पुलिस के लिए बड़ी चुनौती बन गई है। एएसपी संदीप मिश्रा ने बताया कि अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन सवाल यह भी है — क्या तब तक और निर्दोष जानें जोखिम में रहेंगी? स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख डॉ. मुकेश जैन का कहना है कि अस्पताल का लाइसेंस रद्द करने पर विचार किया जा रहा है, लेकिन अब तक की शिथिलता ने पूरे सिस्टम की विश्वसनीयता को कठघरे में खड़ा कर दिया है। यह केवल 7 मौतों की गिनती नहीं, यह उन सभी लोगों की उम्मीदों और विश्वास की मौत है, जो इलाज के लिए अस्पतालों में भरोसा लेकर जाते हैं।






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