उज्जैन की शांत रात, चांदी द्वार पर टिमटिमाती आरती की लौ, और उसी दिव्य आभा में प्रवेश करती हैं एक जानी-मानी शख्सियत—गुजराती गायिका व अभिनेत्री किंजल दवे। आधी रात के अंधेरे में जैसे ही मंदिर के प्रांगण में भस्म आरती की तैयारी शुरू होती है, उस क्षण की आध्यात्मिक ऊर्जा पूरे परिसर में गूंज उठती है। किंजल दवे, जो अक्सर रंगीन मंचों पर अपनी गायिकी से समां बांधती हैं, इस बार न तो फिल्म के सेट पर थीं, न किसी राजनीतिक मंच पर—बल्कि वो थीं बाबा महाकाल की नगरी में, जहां मोह, माया और पहचान सब छूट जाता है।
“जिसे मोह न माया जाल का, वो भक्त है महाकाल का”—किंजल दवे की यह भक्ति पंक्ति उस क्षण जैसे सच होती दिखाई दी, जब उन्होंने महाकाल के दर्शन किए। नंदी हॉल में मौन साधना, भगवान महाकालेश्वर के समक्ष प्रार्थना, और फिर भस्म आरती में आध्यात्मिक संगम… ये सब उनके जीवन के एक नए अध्याय का संकेत थे। मंदिर के पुजारी श्रीराम द्वारा नीले रंग का पटका प्रसाद स्वरूप प्रदान किया गया, जो न सिर्फ सम्मान का प्रतीक था बल्कि आस्था की पराकाष्ठा भी।
महाकालेश्वर मंदिर की भस्म आरती का महत्व जितना दिव्य है, उतना ही रहस्यमय भी। यह आरती चिता की भस्म से होती है, जो जीवन और मृत्यु के मध्य सेतु का प्रतीक है। किंजल ने बताया कि उन्होंने पहली बार इस आरती में भाग लिया और ऐसा अनुभव पहले कभी नहीं हुआ। हालांकि, परंपरा के अनुसार महिलाओं को भस्म आरती को प्रत्यक्ष रूप से देखने की अनुमति नहीं होती। किंजल दवे ने इस नियम को सम्मानपूर्वक स्वीकारा, और सिर ढक कर आरती में अपनी मौजूदगी दर्ज की।
किंजल दवे केवल एक गायिका या अभिनेत्री नहीं हैं। गुजरात के पाटण जिले से ताल्लुक रखने वाली किंजल अब राजनीति में भी सक्रिय हैं और भारतीय जनता पार्टी से जुड़ी हुई हैं। कला, अभिनय, और सार्वजनिक जीवन से जुड़ी किंजल का इस आध्यात्मिक यात्रा में झुकाव दिखाता है कि भारतीय संस्कृति में कलाकारों के लिए भी आत्मिक शांति और भक्ति एक बड़ी प्रेरणा होती है। महाकाल के दर्शन के बाद उन्होंने मध्य प्रदेश सरकार और मंदिर समिति का आभार जताया और कहा, “यह अनुभव मेरे जीवन का सबसे अद्भुत पल है।”





Total Users : 13151
Total views : 31997