रीवा। रीवा जिले के पुलिस अधीक्षक (एसपी) विवेक सिंह का तबादला हाल ही में हुआ है। सामान्यत: ऐसे मौकों पर अधिकारियों को शुभकामनाएं दी जाती हैं, लेकिन इस बार विदाई के साथ विवाद जुड़ गया। सोशल मीडिया पर एक खुला पत्र वायरल हो गया है, जिसमें एक नागरिक ने एसपी के कार्यकाल पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं। इस पत्र ने स्थानीय ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश में कानून-व्यवस्था की कार्यप्रणाली पर बहस छेड़ दी है।
‘बधाई नहीं, बद्दुआ’—नागरिक का खुला पत्र
खुले पत्र को रावेन्द्र निकिता सिंह नामक व्यक्ति ने लिखा है। आमतौर पर अफसरों को विदाई पर सम्मान और शुभकामनाएं मिलती हैं, लेकिन इस पत्र में उलटा एसपी को ‘बधाई’ की बजाय ‘बद्दुआ’ दी गई। लेखक ने आरोप लगाया कि एसपी विवेक सिंह के कार्यकाल में गरीबों और शोषितों की फरियाद कभी सुनी ही नहीं गई।
पत्र में लिखा गया कि पीड़ितों के लिए एसपी ऑफिस के दरवाजे बंद थे। यदि कोई किसी तरह अंदर पहुंच भी जाता, तो उसकी सुनवाई नहीं होती थी। आरोप यह भी है कि एसपी का मोबाइल नंबर आम जनता के लिए कभी उपलब्ध नहीं रहा, जिससे सीधे संवाद की गुंजाइश खत्म हो गई।
‘त्योंथर कांड’ से उठी नई लहर
इस विवाद को और हवा तब मिली जब त्योंथर कांड की एक पीड़िता का वीडियो पूरे प्रदेश में वायरल हो गया। पीड़िता का आरोप है कि उसकी निजी तस्वीरें खींचकर उसके चरित्र पर झूठी कहानियां गढ़ी गईं और उसे आत्महत्या के लिए मजबूर करने की कोशिश की गई।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि सोहागी थाने में उसकी एफआईआर एक साल तक दर्ज नहीं की गई। पीड़िता का कहना है कि उसने कई बार एसपी विवेक सिंह से मिलने और मदद मांगने की कोशिश की, लेकिन हर बार जानबूझकर विवेक सिंह नें उसे टाल दिया। उसने यहां तक आरोप लगाया कि एसपी ने मामले में पूरी तरह पक्षपात किया और प्रभावशाली लोगों को बचाने की कोशिश की।
पुलिस पर लापरवाही और संरक्षण देने के आरोप
खुले पत्र में एक और गंभीर पहलू उजागर किया गया है—पुलिस अधिकारियों और रसूखदार आरोपियों की सांठगांठ। शिकायतकर्ता ने दावा किया कि उसने जवा थाने के थाना प्रभारी, सब-इंस्पेक्टर और तत्कालीन एसडीओपी डभौरा के खिलाफ कई शिकायतें एसपी को व्हाट्सएप पर भेजीं, लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।
आरोप है कि एसपी के संरक्षण में अपराधियों के खिलाफ पुख्ता सबूत होने के बावजूद एफआईआर दर्ज नहीं हुई। दूसरी ओर, बड़े रसूखदारों और सफेदपोशों की शिकायतें तुरंत सुनी गईं।
पत्र में यहां तक लिखा गया कि हत्या के आरोपियों को बचाने के लिए पुलिस ने फर्जी जांच रिपोर्ट बनाई। शिकायत करने के बाद भी दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई नहीं की गई।
प्रशासनिक तबादलों पर बड़ा सवाल
मध्यप्रदेश में पुलिस अधिकारियों के तबादले सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा हैं। लेकिन अक्सर यह सवाल उठता है कि क्या तबादले प्रदर्शन के आधार पर होते हैं या राजनीतिक दबाव और रसूख के चलते? कई बार तबादलों को लेकर यह भी कहा जाता है कि स्थानीय स्तर पर नेताओं और अपराधियों की शिकायतें ही अधिकारियों की कुर्सी हिला देती हैं।
रीवा के इस प्रकरण ने यह बहस फिर से छेड़ दी है कि क्या आम जनता की आवाज वाकई पुलिस व्यवस्था तक पहुंच पाती है? या फिर सिर्फ बड़े नेताओं और रसूखदारों की ही सुनवाई होती है।
सोशल मीडिया पर गरमा-गरम चर्चा
यह पत्र और पीड़िता का वीडियो फेसबुक व अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लगातार शेयर किया जा रहा है। कई लोग इस पर अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। कुछ लोग आरोपों को गंभीर मानते हुए जांच की मांग कर रहे हैं, तो कुछ का कहना है कि तबादले के बाद ऐसे आरोप लगाना ‘पुरानी नाराजगी निकालने’ जैसा है।
आगे क्या?
रीवा का यह मामला सिर्फ एक अधिकारी की विदाई का किस्सा नहीं है। यह सवाल है पूरे तंत्र की कार्यप्रणाली का—क्या न्याय वास्तव में सबके लिए है या सिर्फ चुनिंदा लोगों तक सीमित है? खुले पत्र और वायरल वीडियो ने एक बार फिर यही सवाल सामने ला खड़ा किया है कि जनता और पुलिस के बीच भरोसे की खाई आखिर कब और कैसे पाटी जाएगी।





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