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Friday, November 15, 2024

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REWA : आखिर कब भोपाल पहुचेंगी की बंदियों की चीख, कब मिलेगी पीड़ा से मुक्ति

रीवा केंद्रीय जेल बनी बंदियों के लिए यातना गृह, जेल के अंदर होते है, अनगिनत गैरकानूनी काम।किस्से सुन कर कॉप जाती है रूह, जेल मे चल रहा, है उगाही का खेल, एमपी के जेल DG व जेल मंत्री तक पहुँचा मामला। जल्द होगा जांच दल गठित और CCTV के वीडियोज़ से होगा असलियत का पर्दाफाश। जेल के भीतर चल रही गतिविधिया कई सवाल पैदा कर रही है की, आखिर किनके आदेशो पर होती है, बंदियों से हर माह उगाही सरकार, जेल प्रसाशन, या कोई और।

काला पानी से कम नहीं है रीवा केंद्रीय जेल मे सजा काटना, खबरों की माने तो, जेल मे अधिकारियों ने लूट मचा रखी है, सवाल यही है की क्या सरकार के आदेश पर जेल में बंद बंदियों से हर महीने पैसे लिए जा रहे है, और अगर केंद्र की मोदी सरकार ऐसा करा रही है तो आदेश कहा है। केंद्रीय जेल रीवा मे अधिकारियों की संवेदना मानो मर चुकी है,और जेल के भीतर जैसे मानवाधिकार की सीमाएं खत्म हो जाति है, वही मामले मे जेल अधीक्षक सतीश उपाध्याय अपनी सफाई देने से पीछे नही हट रहे, साथ ही जेल डीजी एवं जेल मंत्री पर उठ रहे सवाल उठ रहे की, आख़िर अभी तक कार्यवाही क्यो नही हुई।कई लोग बताते है कि काला पानी की सजा बीते जमाने की एक ऐसी सजा थी, जिसके नाम से कैदी कांपने लगते थे। दरअसल, यह एक जेल थी, जिसे सेल्यूलर जेल के नाम से जाना जाता था। आज भी लोग इसे इसी नाम से जानते हैं। हालांकि, अंग्रजों ने इसे सेल्यूलर नाम दिया था, जिसके पीछे एक हैरान करने वाली वजह है। सेल्यूलर जेल अंग्रेजों द्वारा भारत के स्वतंत्रता सेनानियों पर किए गए अत्याचारों की मूक गवाह है।लेकिन इं दिनों ऐसा ही हाल वर्तमान समय केंद्रीय जेल रीवा का हो गया है, जहां पर कैदियों को तरह-तरह की कठोर और अमानवीय यातनाएं चंद पैसों के लिए दी जाती हैं । जमानत पर बाहर आए आर्मी रिटायर्ड कमांडो अरुण गौतम एवं अन्य की माने तो केंद्रीय जेल रीवा इस समय काला पानी जैसे जेल बन गया है ।कहने को भारत देश एक स्वतंत्र देश है, लेकिन आज भी केंद्रीय जेल रीवा में पहले जैसे गुलाम देश की तरह कैदियों को तरह-तरह की अमानवीय यातनाएं दी जाती हैं, वर्तमान समय में केंद्रीय जेल यातना शिविर में तब्दील हो गया हैं।
जानवरों से भी बदतर जीवन जीने को विवश है निरूद्ध बंदी

बंदियों के साथ पशुता का व्यवहार होता है। कमांडो अरुण गौतम ने यह भी कहा कि प्रशांत सिंह चौहान के हेलीकॉप्टर शॉट से कैद की चीख पुकार जेल की दीवारों के बेजुबान पत्थरों से टकराकर वापस लौट जाती है।जेल मे अत्याचार एवं अनाचार के खिलाफ मुंह खोलने की हिम्मत कोई नहीं कर सकता, जेल के बारे मे कहा जाता है की कम समय के लिये जेल में निरुद्ध रहते हैं, सजा भुगत रहे कैदी सजा को समाप्ति के पूर्व ही किसी न किसी भयंकर बीमारी से ग्रसित है, उनको उसी हाल मे छोड दिया जाता है। अरुण गौतम आगे बताते है कि जेल का खान-पान एवं जेल अधिकारियों एवं उनके खास कैदियों की मार ,(रोगग्रस्त) बनाकर छोड़ता है। जेल के भीतर क्या हो रहा है, यह बात बाहर तब आती है जब कोई बंदी या कैदी जेल से बाहर आता है, जेल मैनुअल के मुताबिक बंदियों-कैदियों को भोजन नहीं मिलता है। खाने के अभाव में बहुत से कैदी विशेषकर गरीब जिनके घर से पैसा नहीं पहुंचता है, रक्ताल्पता (खून की कमी) से जूझ रहे है, एनेमिक हो गये हैं जेल के अंदर । पैसा है तो जेल के भीतर कुछ भी संभव है’।

जेल मे अगर पैसे तो सब है संभव वही बाहर आए बंदी कमल सिंह बघेल बताते हैं कि, परिवारजनों से मुलाकात, पेशी, बैरक में रहने, खाने-पीने के सामान और अस्पताल में भर्ती होने के लिए रुपये देने का दम हो तो जेल में कुछ भी संभव है।पैसे के दम पर सभी प्रकार की सुविधाएं आसानी से मिल जाती हैं। मुलाकात के लिए बंदीरक्षक को 100 से 500 रुपये तक देने पड़ते हैं, और मुलाकाती पर आए परिजनों को भी 100 से 500 रुपये खर्च करना पड़ता है। अपने बंदी परिजन पर फोन से बात करने के लिए भी पैसे लगते है। वहीं, मनमाफिक बैरक में रहने या शिफ्ट होने के लिए दस हजार रुपये से लेकर बंदी की हैसियत देखकर मांग की जाती है। बंदी को सिगरेट, तंबाकू, गुटका और बीड़ी लेने के लिए बंदियों को बंदीरक्षकों को मनमाफिक रुपए देकर खुश करना पड़ता है। बंदीरक्षक भी निर्धारित कीमत से तीन से चार गुना अधिक पैसे लेकर नशे के सामान बंदियों-कैदियों को मुहैया कराते हैं।

केंद्रीय जेल रीवा में मर गई संवेदना, दफन हुआ मानवाधिकार कमांडो अरुण गौतम कहते है की सेण्ट्रल जेल रीवा में अधिकारियों की मानवीय संवेदनाएं मर गई है, मानवाधिकार को दफन कर दिया गया है। जेल के भीतर कैदियों की मौतों के राज भी मानवधिकार के साथ दफना दिये जाते हैं। शासन-प्रशासन का कोई नुमाइंदा या फिर मानवाधिकार आयोग अथवा अन्य कोई सक्षम अधिकारी जेल के अंदर सीधे प्रवेश कर नहीं पाते है। जब तक जेल का मुख्यद्वार खोला जाता है, तब तक जेल अधिक्षक के इसारे पर अंदर सब कुछ व्यस्थित कर दिया जाता है। कामांडो अरुण गौतम का कहना है कि, भारतीयों पर जुल्म ढाने वाले अंग्रेज चले गए लेकिन उनकी औलादे अभी भी यहां है जिन्होंने अंग्रेजों को भी पीछे छोड़ दिया है। बताया जाता है कि जेल पहुंचने वाले प्रत्येक बंदी को हेलीकॉप्टर बनाकर इतने पट्टे मार कर स्वागत किया जाता है कि वह जब तक जेल में रहता है तब तक खौफ में जीये और जेल अधीक्षक के कहने पर समय-समय पर पैसा मंगवा ले बदियों से उनके घर व्हाट्सअप कॉलिंग कराकर पैसा मंगवाया जाता है। बंदियों के हिस्से का दूध एवं अंडा भी बाजार पहुंचा दिया जाता है ।
जेल अधीक्षक सतीश उपाध्याय अपनी सफाई देने से पीछे नही हट रहे

आपको बता दें कि कमांडो अरुण गौतम के द्वारा लगातार मीडिया के सामने जेल के अंदर अपने ऊपर बीती विपत्ति एवं अन्य बंदियों के ऊपर किए जा रहे अत्याचार के मुद्दे को उठाया है, तो वहीं इस मुद्दे को जेल अधीक्षक सतीष उपाध्याय द्वारा बताया गया कि, यह सब बेबुनियाद है जेल के अंदर सभी प्रकार की व्यवस्थाएं दुरुस्त चल रही है। कमांडो अरुण गौतम जेल के अंदर भी मुझे देख लेने की धमकी दिए थे, और बाहर जाकर जेल को बदनाम कर रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि जब जेल के अंदर कमांडो रूम गौतम ने जेल अधीक्षक को धमकी दिए थे, तो फिर जेल अधीक्षक सतीश उपाध्याय के द्वारा खुद ही कमांडो अरुण गौतम को प्रशस्ति पत्र किस चीज का दिया गया, कहीं न कही कामांडो को उदण्ड बताकर और एक तरफ उन्हें प्रशस्ति पत्र देकर, खुद ही अपने बातों में जेल अधीक्षक ने नजर आ रहे हैं। अभी खबर चलने के बाद जेल अधीक्षक जरूर कुछ मीडिया कर्मियों से जेल की वाहवाही की खबर को चलवा कर अपने आप को एवं जेल विभाग को बचाते नजर आए थे। लगातार कई लोग जेल के अंदर हुए बर्ताव का भंडाफोड़, मीडिया के समक्ष कर रहे है ।

जेल डीजी एवं जेल मंत्री पर उठ रहे सवाल आख़िर क्यो नही हुई कार्यवाही क्या केंद्र की सरकार ऐसा करा रही अगर नही तो अब तक क्यो नही हटे जेल के भ्र्ष्ट अधिकारी, आखिर अब तक क्यों नहीं जागा प्रशासन, क्यों जेल के मुद्दे को नहीं लिया गया संज्ञान। क्या वजह है कि प्रशासन ने बांध रखी है आंख में पट्टी आपको बता दें कि रीवा केंद्रीय जेल में जमकर अत्याचार एवं भ्रष्टाचार चल रहा है, जिसकी कई परतें मीडिया के द्वारा खोली जा चुकी है, मगर अब तक जेल मंत्री के द्वारा जेल के भ्र्ष्ट अधिकारियों पर कार्यवाही नहीं की गई है। अभी तक जेल के भ्रष्ट अधिकारियों को जेल से नहीं हटाया गया है। कहीं ना कहीं ऊपर से लेकर नीचे तक की सांठगांठ का संदेह जाहिर हो रहा है, क्योंकि मध्य प्रदेश जेल डीजे अरविंद कुमार को फोन के माध्यम से रीवा जेल में चल रहे हैं। अत्याचार एवं भ्रष्टाचार की जानकारी दी जा चुकी है, तो जेल डीजे अरविंद कुमार के द्वारा मीडिया से कहा गया कि अभी ऑफिस में है शाम को 6:30 बजे के बाद बात करिए। ऐसे बात करने के लिए तो साफ-साफ जाहिर होता है कि, ऊपर से लेकर के नीचे तक की सांठ गांठ जेल में चल रही है, जिसके चलते जेल में पदस्थ अधिकारियों के हौसले बुलंद हो चुके हैं, और कार्रवाई का खौफ नहीं रहा। क्योंकि लगातार मीडिया की सुर्खियां इस समय रीवा का केंद्रीय जेल बना हुआ है, उसके बाद भी जेल डीजी एवं मध्यप्रदेश के जेल मंत्री ने इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया है। आखिर कब रीवा के केंद्रीय जेल को मिलेंगे सोलंकी जैसे जेलर।

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