- धूप गगन में, श्रद्धा के फूल,
हर दिशा में भक्तों की धूल।
संगम की लहरों में जीवन झलके,
आस्था का दीप हर मन में दमके।
महाकाल के मंत्रों की गूंज,
शिव की त्रिपुंड, गंगा की पूंज।
पावन भूमि, जहां भक्ति हिलोर,
साधु-संतों की टोली में शोर।
सुनो वो डुबकी की शपथ अनमोल,
तट पर थम जाती सबकी डोर।
2. कुंभ का मेला, अटूट विश्वास,
जहां धर्म का होता प्रवाह।
संतों के चरण, जहां भूमि सजती,
कलश में गंगा जल की ज्योति।
मन का मैल, हर डुबकी धोए,
हरि के नाम, जीवन संजोए।
हठी योगी, साधु महंत,
जहां गंगा-स्नान में सब अंत।
पर पथिक का मन, फिर भी खाली,
अंतर की आस्था सदा ज्वाली।
3. धूप छांव के पथ पर चले,
संतों की जयकार संग संग ढले।
भजन के सुर, मंत्रों का आह्वान,
जप-तप की महिमा का सम्मान।
लंगर, प्रसाद और ध्वनि,
मेला भरता दिलों में रवि।
जल की लहरों से जीवन नया,
आस्था के कण, सपनों के दिया।
किंतु समय की गति थम जाए,
डुबकी के संग हर पाप बह जाए।
4. गंगा के तट पर जनसैलाब,
धर्म की नगरी, पुण्य का ख्वाब।
साधुओं की टोली, अखाड़ों का रंग,
भक्तों का मन, आरती की धुन।
डूबते सुरज का श्रृंगार देख,
जल में प्रतिबिंबित संसार देख।
धूप-धुआँ और दीपों की माला,
संघर्षों की कथा सुनाती हवाओं की डाली।
सात्विकता में डूबा हर मन,
महाकुंभ में हर दिन सिंधु में समर्पण।
5. तपस्वी की साधना का केंद्र,
कुंभ का पर्व, पुन्य का केंद्र।
दिव्यता से भरती यह भूमि,
जहाँ रामायण, गीता की गूंज।
भक्तों का नाता आत्मा से जुड़ा,
ध्यान की गंगा में मन पड़ा।
हर कुंभ में एक नव-शक्ति का स्वर,
सिंहासन पर विराजे सनातन का सर।
तृष्णा, तप, और तात्पर्य की ज्योति,
समर्पण की नाव डूबती हर रात की ओट।
6. जहाँ संगम के जल में धर्म पले,
जहाँ पवित्रता के दीप जले।
वह मेला जो त्रिवेणी के संग,
लेता है हर भक्त का अंतर्नाद।
जहाँ अंधेरा और रोशनी मिलते,
वहां आत्मा और परमात्मा खेलते।
तीर्थों की रेत पर कर्मों का लेखा,
हर लहर में मोक्ष का अटूट लेखा।
गहराई में गोते लगाता विश्वास,
महाकुंभ में समाप्ति में शुरू हर सांस।
7. संगम में गंगा-यमुना की धार,
जहां त्रिवेणी संग बहाए प्यार।
संतों का सजीव प्रवाह,
धर्म-आत्मा का मिलता है पाठ।
डुबकी लगाएं मोक्ष की आस,
हर मस्तक झुके बाबा के पास।
पुकारें पवित्रता का नाम,
भीड़ में मिलता सच्चा संग्राम।
आस्था की गूंज, नाद अपरंपार —
महाकुंभ का अद्भुत संसार।
8. हर दिल में विश्वास की बात,
पुनः पुनः आती महाकुंभ की याद।
गंगा किनारे साधुओं का हर्ष,
संन्यासियों का दर्शन, जीवन का तर्क।
फीकी दुनिया को करें उज्जवल,
हर पुण्य डुबकी करे सफल।
पताका फहराए धर्म की राह,
हर जनमानस में भर दे आशा।
मोक्ष है यहां हर डुबकी का सार —
महाकुंभ है जीवन का त्योहार।
9. शंख की ध्वनि और मंत्रों की गूंज,
साधु-संतों का पवित्र मेल-जोल।
धर्म का दरिया उमड़े विशाल,
जहां आस्था से मिलती है मिसाल।
चिलम साधु, वैराग्य की बात,
हर चेहरा भरे आत्मा का स्वाद।
दर्शन से भरे युगों की कहानी,
कहते हर संत की जुबानी।
अमरत्व के जल में जीवन का सार —
महाकुंभ है ऋषियों का सत्कार।
10. प्रयागराज का अद्भुत संगम,
जहां साकार होती हर धर्म की लहर।
पदचिन्ह जहां देवताओं के,
ध्वज जहां फहराएं सत्य और धैर्य।
संतों का तप, भक्तों की आह,
धूप-दीप से सजती हर राह।
अग्नि का प्रज्वलित पथ,
शक्ति का सजीव चित्रपट।
आस्था की मूरत का हर शृंगार —
महाकुंभ का अटूट त्योहार।