प्रयागराज—जहाँ गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती की त्रिवेणी बहती है, वहाँ इन दिनों सेवा, समर्पण और आस्था की एक और अदृश्य धारा प्रवाहित हो रही है। कुम्भ की पावन भूमि पर लाखों श्रद्धालु उमड़ रहे हैं, और इसके साथ ही यह शहर पिछले एक महीने से लगातार चुनौतियों की परीक्षा भी दे रहा है।
आज प्रयागराज का हर कोना तीर्थयात्रियों से भरा हुआ है। हर गली में देश के कोने-कोने से आए भक्तों की चहल-पहल है। राजस्थान, बंगाल, तमिलनाडु, गुजरात, कश्मीर—हर राज्य के लोग यहाँ किसी न किसी रूप में मौजूद हैं। बसों, ट्रेनों, निजी वाहनों, यहाँ तक कि पैदल चलकर भी लोग आ रहे हैं, लेकिन हर किसी को गंगा में डुबकी लगाने की वही उत्कंठा है, वही विश्वास है कि यहाँ का जल उनके पाप हर लेगा और जीवन को धन्य कर देगा।
लेकिन इस पूरे आयोजन का सबसे अनमोल पक्ष वे लोग हैं, जो निस्वार्थ भाव से श्रद्धालुओं की सेवा में जुटे हुए हैं। पुलिसकर्मी, प्रशासनिक अधिकारी, सफाईकर्मी, स्वास्थ्य सेवाएं, और स्वयंसेवक—हर कोई दिन-रात काम कर रहा है ताकि तीर्थयात्रियों को किसी भी तरह की असुविधा न हो। वे अपनी नींद, आराम और आरामदायक दिनचर्या को त्यागकर पूरी निष्ठा से इस महायज्ञ में योगदान दे रहे हैं।
शहर के असली नायक: वे जिन्होंने निस्वार्थ सेवा को धर्म बना लिया
सबसे पहले, उन पुलिसकर्मियों को धन्यवाद, जो चौबीसों घंटे इस भीड़ को नियंत्रित करने में जुटे हैं। वे अपने परिवारों से दूर रहकर, थकावट और तनाव के बावजूद, इस पवित्र आयोजन को सुचारू रूप से संचालित कर रहे हैं। उनके चेहरों पर थकान साफ झलक रही है, लेकिन उनकी दृढ़ता और कर्तव्यनिष्ठा अडिग बनी हुई है।
उन युवाओं को नमन, जिन्होंने अपनी बाइक को श्रद्धालुओं की सेवा के लिए समर्पित कर दिया है। जब जाम ने लोगों की आवाजाही को मुश्किल बना दिया, तब इन युवाओं ने अपनी दोपहिया गाड़ियों को तीर्थयात्रियों की सेवा में लगा दिया। न कोई किराया, न कोई स्वार्थ—बस एक ही मकसद कि कोई बुजुर्ग, कोई महिला, कोई बीमार व्यक्ति संगम तक पहुँचने से वंचित न रह जाए। यह भावना किसी भी बड़े महायज्ञ से कम नहीं।
उन स्थानीय परिवारों को भी हृदय से धन्यवाद, जिन्होंने अपना घर और दरवाजे तीर्थयात्रियों के लिए खोल दिए। जब होटल और धर्मशालाएँ भर गईं, तब प्रयागराज के कुछ लोगों ने निस्वार्थ भाव से अपने घरों में अजनबियों को शरण दी, उन्हें भोजन कराया, और उन्हें परिवार जैसा अपनापन दिया।
वे भंडारा संचालक और गुरुद्वारों के सेवादार भी प्रशंसा के पात्र हैं, जिन्होंने किसी भी तीर्थयात्री को भूखा नहीं सोने दिया। चाहे दिन हो या रात, हर समय हजारों लोग इन सेवा शिविरों में भोजन प्राप्त कर रहे हैं। किसी ने प्लेट धोने में मदद की, तो किसी ने लाइन में लगे लोगों को पानी पिलाया। यह निस्वार्थ सेवा ही कुम्भ की सच्ची आत्मा है।
त्रासदी में भी बना रहा इंसानियत का उजाला
भीड़ के कारण कुछ अप्रिय घटनाएँ भी हुईं—कहीं भगदड़ मची, तो कहीं धक्का-मुक्की हुई। लेकिन इन कठिन समयों में भी कुछ नायक उभरकर सामने आए। डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ ने बिना रुके घायल श्रद्धालुओं की सेवा की। दवा, पानी, प्राथमिक उपचार—जो भी संभव था, उन्होंने बिना देर किए किया। कुछ स्वयंसेवकों ने अपने साधनों से घायलों को अस्पताल पहुँचाया, तो कुछ ने लावारिस पड़े लोगों की देखभाल की।
प्रयागराज ने साबित कर दिया कि यह सिर्फ संगम का शहर नहीं है, बल्कि यह करुणा, सेवा और समर्पण की जीवंत मिसाल भी है। यह शहर सिर्फ एक तीर्थ नहीं, बल्कि उन लाखों हाथों का संगम भी है, जो एक-दूसरे की मदद के लिए आगे बढ़े।
प्रयागराज को प्रणाम
इस आयोजन के बाद, जब श्रद्धालु अपने-अपने घर लौटेंगे, तो संगम के पवित्र जल के साथ-साथ वे इस शहर के निवासियों के समर्पण को भी याद रखेंगे। वे याद करेंगे उन पुलिसकर्मियों की तपस्या, उन युवाओं की मदद, उन परिवारों का अपनापन, और उन भंडारों की सेवा, जिन्होंने उनके कुम्भ को एक अविस्मरणीय अनुभव बना दिया।
तो, प्रयागराज के हर नागरिक को, हर स्वयंसेवक को, हर सेवाभावी को, और हर उस हाथ को, जिसने किसी न किसी रूप में किसी की मदद की—आपको शत-शत नमन! आप न होते, तो यह अनुभव अधूरा रह जाता।
कुम्भ का यह अमृत आपके जीवन में बरसे—यही एक तीर्थयात्री की ओर से दिया गया आशीर्वाद है। प्रयागराज, तुम महान हो! 🙏🚩