बुंदेलखंड की सियासी जन ताकत मध्य प्रदेश के हिस्से में आने वाले बुंदेलखंड में लोकसभा की 5 और विधानसभा की 29 सीटें जबकि उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 4 व विधानसभा की 19 सीटें
मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के 14 जिलों में फैले बुंदेलखंड को अलग राज्य घोषित करने की मांग कई दशकों से की जा रही है। प्रमुख राजनीतिक दलों ने इसका समर्थन तो किया, लेकिन इसे चुनावी मुद्दा नहीं बनाया जबकि, आजादी के बाद लगभग आठ साल तक बुंदेलखंड अलग राज्य रहा, बाद में इसके जिलों को मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में शामिल कर दिया गया। इसके बाद यह अपना पुराना स्वरूप वापस नहीं पा सका।
35 छोटी-बड़ी रियासतों को शामिल कर 12 मार्च 1948 को अलग बुंदेलखंड राज्य बनाया गया था। इसकी राजधानी नौगांव थी। पर, अलग राज्य का यह सफर लंबा नहीं चल पाया। एक नवंबर 1956 को सातवां संविधान संशोधन लागू होने के बाद मध्य प्रदेश अलग राज्य बना और बुंदेलखंड के बड़े हिस्से को उसमें शामिल कर दिया गया, जबकि बाकी हिस्से का उत्तर प्रदेश में विलय हो गया।
हालांकि, तब इसे लेकर खूब आंदोलन हुए और यह सिलसिला अब भी जारी है। चुनावों के दरम्यान समय-समय पर स्थानीय प्रत्याशियों ने इसे अपने निजी एजेंडे में तो जरूर शामिल किया, लेकिन भाजपा, कांग्रेस, सपा व बसपा जैसे दलों के घोषणा पत्रों में यह अपनी जगह कभी नहीं बना पाया।
बुंदेलखंड की सियासी ताकत
बुंदेलखंड क्षेत्र में यूपी के झांसी, बांदा, ललितपुर, हमीरपुर, जालौन, चित्रकूट व महोबा जिले आते हैं, जबकि मध्य प्रदेश के छतरपुर, टीकमगढ़, दमोह, सागर, दतिया, पन्ना व निवाड़ी जिले आते हैं।
इस क्षेत्र में लोकसभा की नौ और विधानसभा की 48 सीटें हैं। उप्र के हिस्से में आने वाले बुंदेलखंड में लोकसभा की चार और विधानसभा की 19 सीटें हैं, जबकि मध्य प्रदेश में लोकसभा की पांच और विधानसभा की 29 सीटें हैं।
अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान के उपाध्यक्ष हरगोविंद कुशवाहा बताते हैं कि बुंदेलखंड राज्य का मुद्दा कभी जन आंदोलन नहीं बन पाया। यह हमेशा चंद लोगों तक ही सिमटा रहा। वहीं, बुंदेलखंड निर्माण मोर्चा के अध्यक्ष भानु सहाय कहते हैं कि चुनावों में नेता बुंदेलखंड राज्य के मुद्दे का सहारा तो खूब लेते हैं, लेकिन चुनाव बाद वे इसे बिसरा देते हैं। बुंदेलखंड क्रांति दल के अध्यक्ष सत्येंद्र पाल सिंह का मानना है कि अलग राज्य नहीं होने का खामियाजा बुंदेलियों को भुगतना पड़ रहा है। लोगों को रोजगार के लिए मजबूरी में दूसरे राज्यों की ओर रुख करना पड़ता है।
Political : लोकसभा चुनाव में राजनैतिक पहलवानो की कसरत कभी हावी नहीं हो पाया बुंदेलखंड राज्य का मुद्दा: बड़े सियासी दलों के घोषणा पत्रों में शामिल होने को तरसा
- Advertisement -
For You
आपका विचार ?
Live
How is my site?
This poll is for your feedback that matter to us
Latest news
Live Scores
More forecasts: 30 का मौसम राजस्थान