भागीरथी नदी के किनारे नावों में सवार कुछ लोग चुपचाप बैठकर किनारे की ओर बढ़ रहे थे। जिन गलियों को कभी उन्होंने अपने सपनों से संवारा था, अब उन्हीं घरों की ओर वे डरे-सहमे लौट रहे हैं—जैसे कोई अनजानी सजा भुगतकर वापस लौटे हों। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद ज़िले के धुलियान इलाके में, वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को लेकर भड़की हिंसा ने न जाने कितनी ज़िंदगियों को उखाड़ फेंका। लेकिन अब, सवाल यह नहीं कि वे लौट रहे हैं—सवाल यह है कि क्या वे फिर से सुरक्षित महसूस करेंगे? और क्या वास्तव में सब कुछ शांत हो गया है या ज़ख्म अब भी ताज़ा हैं?
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस संवेदनशील मुद्दे की जांच के लिए विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया है। पुलिस प्रशासन का दावा है कि उन्होंने अब तक 292 लोगों को गिरफ्तार किया है और 153 केस दर्ज किए हैं। जंगीपुर के पुलिस अधीक्षक आनंद रॉय के अनुसार, “फिलहाल स्थिति शांतिपूर्ण है।” लेकिन इसी के साथ यह भी स्पष्ट है कि 50 लोग अब भी लौटने को तैयार नहीं हैं। क्या यह डर उनकी चेतना में अब भी जीवित है, या वे सरकार की कार्यशैली पर भरोसा नहीं कर पा रहे?
टीएमसी सांसद खलीलुर रहमान और विधायक अमीरुल इस्लाम मौके पर मौजूद रहे और उन्होंने दावा किया कि लोग ‘स्वेच्छा से’ वापस लौट रहे हैं। उनका यह भी कहना था कि “घरों में तोड़फोड़ नहीं हुई,” बल्कि “लोग डर की वजह से भागे थे।” इस बयान ने कई नई बहसों को जन्म दिया है। यदि वास्तव में कोई हिंसा नहीं हुई, तो डर क्यों पैदा हुआ? और यदि डर था, तो क्या सत्ताधारी दल ने समय रहते कार्रवाई की थी? यह स्पष्ट है कि राजनीतिक बयानों और जमीनी सच्चाई के बीच अब भी एक लंबी दूरी है।
पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस ने मालदा के राहत शिविरों का दौरा किया और विस्थापित परिवारों से मुलाकात की। उन्होंने उन्हें भरोसा दिलाया कि “दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।” राज्यपाल की यह सक्रियता एक संवैधानिक जिम्मेदारी का संकेत देती है, परंतु यह भी दर्शाता है कि लोगों को अब भी राज्य सरकार से अपेक्षित राहत और न्याय नहीं मिला है। यदि सब कुछ टीएमसी नेताओं के दावों की तरह ‘सामान्य’ है, तो फिर राज्यपाल को राहत शिविरों में क्या आश्वासन देना पड़ा?






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