नई दिल्ली, 9 अप्रैल 2025: दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि ट्रेन यात्रा के दौरान अपने सामान की सुरक्षा की जिम्मेदारी खुद यात्री की होती है, न कि रेलवे की। यह फैसला उस याचिका पर सुनवाई करते हुए आया जिसमें एक यात्री ने अपने चोरी हुए बैग को लेकर रेलवे पर मुआवजे की मांग की थी।
इस मामले की शुरुआत उस वक्त हुई जब एक व्यक्ति ने यह दावा किया कि जनवरी 2013 में नई दिल्ली से नागपुर की यात्रा के दौरान उसका बैग चोरी हो गया। उस बैग में कीमती सामान जैसे लैपटॉप, कैमरा, चार्जर, चश्मा और एटीएम कार्ड शामिल थे। व्यक्ति ने रेलवे पर ₹84,000 के सामान की भरपाई और अतिरिक्त ₹1 लाख असुविधा व मानसिक उत्पीड़न के लिए मुआवजे की मांग की थी।
इस मामले को पहले राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) में पेश किया गया, जहाँ से याचिका को खारिज कर दिया गया। आयोग ने यह पाया कि रेलवे अधिकारियों की कोई लापरवाही साबित नहीं हुई है। इसके बाद मामला दिल्ली उच्च न्यायालय पहुंचा, जहाँ न्यायमूर्ति रविन्द्र डुडेजा ने आयोग के फैसले को सही ठहराया।
याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि कोच का सहायक सो रहा था और अशिष्ट व्यवहार कर रहा था, साथ ही ट्रेन टीटी मौजूद नहीं था। लेकिन अदालत ने स्पष्ट किया कि टीटी की गैरमौजूदगी मात्र से सेवा में कमी नहीं मानी जा सकती, जब तक यह साबित न हो कि किसी ज़िम्मेदारी में सीधी लापरवाही हुई हो, जैसे कोच का दरवाजा खुला छोड़ देना आदि।
इस फैसले में उच्च न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने निर्णय का भी हवाला दिया और कहा कि भारतीय रेलवे की जिम्मेदारी तभी बनती है जब उनके कर्मचारियों की सीधी लापरवाही या गलती हो। अन्यथा, यात्री को अपने सामान की सुरक्षा स्वयं करनी होगी। यह निर्णय लाखों यात्रियों को सावधानी बरतने की एक कानूनी चेतावनी है।






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