घने जंगलों और बर्फीली हवाओं से लिपटे पहलगाम की वादियों में उस दिन सन्नाटा चीख रहा था। पर्यटकों से भरी घाटी अचानक गोलियों की गूंज से थर्रा उठी। कुछ पल पहले तक जो सफर छुट्टियों की खूबसूरत यादों के लिए था, वह एक खौफनाक हादसे में बदल गया। 20 से 30 लोगों का काफिला एक टूरिस्ट स्पॉट की ओर बढ़ रहा था, जब अचानक दो आतंकी सामने आ खड़े हुए। किसी को संभलने का मौका नहीं मिला। तभी एक मासूम की आवाज सुनाई देती है – “उन्होंने कहा, मुसलमान अलग हो जाओ, और हिंदू पुरुषों पर गोलियां चला दीं…” इस दिल दहला देने वाली गवाही ने न सिर्फ सूरत के कठोर गांव, बल्कि पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है।
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम इलाके में हुआ यह आतंकी हमला महज हिंसा की वारदात नहीं, बल्कि इंसानियत के नाम पर एक शर्मनाक तमाचा है। शैलेश भाई कड़थिया, सूरत के कठोर गांव निवासी, अपने परिवार के साथ छुट्टियों पर पहलगाम गए थे। लेकिन यह यात्रा कभी खत्म नहीं हुई — कम से कम उनके लिए। उनके बेटे ने बताया, “हम घोड़े पर ऊपर जा रहे थे, तभी आतंकी आ गए। हमने छिपने की कोशिश की, पर वो हमें ढूंढ लाए।” मासूम ने अपनी मां और बहन को पैदल नीचे भेजा और खुद घोड़े पर बैठा। लेकिन जो देख और सह चुका था, वह किसी बुरे सपने से कम नहीं।
हमले में एक साफ-साफ धार्मिक टारगेटिंग नजर आई। मासूम के अनुसार, आतंकियों ने “कलमा-कलमा” कहते हुए मुस्लिमों को छोड़ दिया और सिर्फ हिंदू पुरुषों को गोली मारी। यह सिर्फ आतंक नहीं, एक सोच थी – जो धर्म के नाम पर इंसानों को बांटती है और नफरत को बढ़ावा देती है। बच्चा बताता है कि जब गोलीबारी रुकी, तब बच गए लोग चिल्लाए, “नीचे भागो!” और सभी ने अपनी जान बचाने की कोशिश की। यह हमला न केवल एक इंसान की जान ले गया, बल्कि एक मासूम की मासूमियत भी छीन ले गया।
बच्चा पूछता है – “इतना बड़ा हमला हुआ, लेकिन नीचे सेना के बेस को खबर तक नहीं लगी? पहलगाम के ऊपरी हिस्से में जवान क्यों नहीं तैनात थे?” यह सवाल सिर्फ एक मासूम का नहीं, पूरे देश का है। क्या पर्यटकों की सुरक्षा को लेकर हमारा सिस्टम इतना लापरवाह है? जिस घाटी में देशभर से लोग सुकून पाने आते हैं, वहां अचानक गोलियों की बरसात हो जाए, और कोई जवाबदेही न हो — ये चुप्पी किसकी है?





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