क्या छिपा है इस भस्म आरती के पीछे? जानिए पूरी कहानी!
उज्जैन के विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर में इस बार की भस्म आरती कुछ अलग ही रहस्यमयी और भव्य रही। चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया की इस विशेष आरती में बाबा महाकाल को चंद्र मुकुट, त्रिपुंड और भव्य पुष्पमालाओं से सजाया गया। लेकिन क्या आपको पता है कि इस आयोजन में कुछ ऐसा भी था जो रहस्यमयी और चौंकाने वाला था?
भस्म आरती में चमत्कार या रहस्य?
मंगलवार तड़के चार बजे जब मंदिर के द्वार खोले गए, तो हजारों भक्तों की भीड़ बाबा महाकाल के दर्शन के लिए उमड़ पड़ी। भस्म आरती की शुरुआत पंचामृत स्नान से हुई, जिसमें दूध, दही, घी, शक्कर और फलों के रस से भगवान का अभिषेक किया गया। लेकिन असली रहस्य तब गहराया जब बाबा को चांदी का मुकुट पहनाया गया और उनकी ज्योतिर्लिंग पर भस्म रमाई गई।
यह श्रृंगार हर साल होता है, लेकिन इस बार भक्तों के बीच एक अजीब सी गूंज और ऊर्जा महसूस की गई। क्या यह सिर्फ भक्ति की शक्ति थी, या फिर महाकाल स्वयं कोई संकेत दे रहे थे?
कौन था रहस्यमयी भक्त जिसने रजत मुकुट भेंट किया?
इस खास दिन पर महाराष्ट्र के नागपुर से आए अमित कुकडे और चेतन खडसे नामक श्रद्धालुओं ने बाबा महाकाल को 1028 ग्राम वजन का एक रजत मुकुट भेंट किया। लेकिन क्या यह सिर्फ भक्ति थी, या इसके पीछे कोई गहरी आध्यात्मिक कथा छिपी थी?
1250 किलो हापुस आम – भोग या कोई गुप्त संकेत?
सबसे चौंकाने वाला पल तब आया जब महाराष्ट्र के पुणे से आए डॉ. सागर और उनके परिवार ने बाबा महाकाल को 1250 किलो रत्नागिरी के हापुस आम का महाभोग अर्पित किया। आमों की यह भारी मात्रा सिर्फ भक्ति का प्रतीक थी, या इसके पीछे कोई अदृश्य संकेत था?
करीब 4 लाख रुपये कीमत के ये आम, स्वर्ण वर्क से जड़ित थे और चांदी की थाली में अर्पित किए गए। यह अर्पण एक विशेष साढ़े तीन मुहूर्त के शुभ अवसर पर किया गया, जिसे लेकर कई तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं। आखिर यह संयोग था या फिर कोई दिव्य संकेत?
क्या बाबा महाकाल दे रहे हैं कोई संकेत?
भक्तों का मानना है कि बाबा महाकाल की इस विशेष आरती में एक अलौकिक शक्ति का अनुभव किया गया। कुछ लोगों ने बताया कि जब भस्म आरती हो रही थी, तब मंदिर परिसर में अद्भुत ऊर्जा महसूस हुई। क्या यह सिर्फ भक्ति की अनुभूति थी, या महाकाल स्वयं अपनी उपस्थिति का आभास करा रहे थे?
यह भस्म आरती केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि रहस्यमयी घटनाओं से भरी एक दिव्य लीला थी। महाकाल के इस विशेष श्रृंगार और भोग की सच्चाई को समझना हर भक्त के लिए एक आध्यात्मिक यात्रा से कम नहीं!






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