मेरठ के बहुचर्चित सौरभ राजपूत हत्याकांड में नया मोड़ आ गया है। जेल की सलाखों के पीछे बंद मुस्कान अब मां बनने वाली है। हत्या की आरोपित, जिसने अपने प्रेमी के साथ मिलकर पति को बेरहमी से मौत के घाट उतारा था – अब गर्भवती है। सीएमओ डॉक्टर अशोक कटारिया ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि मुस्कान की प्रेग्नेंसी रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। जेल प्रशासन की ओर से भेजे गए पत्र के आधार पर मेडिकल टीम ने यह परीक्षण किया। अब सवाल उठता है – सलाखों के पीछे जन्म लेने वाले इस मासूम का क्या कसूर है? क्या उसे वही जिंदगी मिलेगी जैसी बाहर के बच्चों को मिलती है?
कुछ हफ्ते पहले मुस्कान ने अपने प्रेमी साहिल के साथ मिलकर अपने पति सौरभ की हत्या की थी। इस हत्या को अंजाम देने के बाद, दोनों ने सौरभ के शरीर के कई टुकड़े किए और एक नीले ड्रम में सीमेंट डालकर शव को छुपाने की कोशिश की। यह खौफनाक वारदात देशभर में सुर्खियों में रही। अब जब मुस्कान गर्भवती पाई गई है, तो इस खबर ने इस केस को एक बार फिर चर्चा में ला दिया है – लेकिन इस बार बहस का केंद्र है: जेल में जन्म लेने वाला बच्चा। क्या वह भी अपराध की छाया में पलने को मजबूर होगा?
भारतीय कानून के अनुसार, जेल में जन्मे बच्चे को भी हर वो अधिकार मिलता है, जो किसी भी सामान्य बच्चे को मिलते हैं – चाहे वो शिक्षा हो, स्वास्थ्य हो या सुरक्षा। जेल मैन्युअल के अनुसार, गर्भवती महिला कैदियों को विशेष देखभाल मिलती है। डिलीवरी के बाद मां और नवजात को एक अलग सेल में रखा जाता है ताकि संक्रमण से बचाव हो सके। छह साल की उम्र तक बच्चा अपनी मां के साथ जेल में रह सकता है, और इस दौरान जेल प्रशासन को यह सुनिश्चित करना होता है कि बच्चे का मानसिक और शारीरिक विकास प्रभावित न हो।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की 1330 जेलों में 5.73 लाख से अधिक कैदी बंद हैं, जिनमें 23,772 महिलाएं शामिल हैं। इन महिला कैदियों में 1537 महिलाएं अपने बच्चों के साथ जेल में रह रही हैं। इनमें से आधी से अधिक ने जेल में ही अपने बच्चों को जन्म दिया है। यह आंकड़े केवल संख्या नहीं, बल्कि उन मासूम जिंदगियों की दास्तान हैं, जिन्हें अपराध का चेहरा नहीं देखा, लेकिन उसकी सजा भुगतनी पड़ रही है।
भारतीय संविधान और बाल अधिकारों से जुड़े कानून यह साफ तौर पर कहते हैं कि माता-पिता के अपराधों की सजा बच्चों को नहीं मिलनी चाहिए। जेल में जन्म लेने वाले बच्चों को हर वो अधिकार मिलना चाहिए, जिससे वे एक स्वस्थ, सुरक्षित और समुचित जीवन जी सकें। जेल प्रशासन की जिम्मेदारी बनती है कि बच्चों की शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य संबंधी ज़रूरतों की सही व्यवस्था करे। देश की कई जेलों में अब ‘क्रेच’ और बाल विकास केंद्र भी बनाए गए हैं ताकि जेल में पलने वाला बचपन सामान्यता की कुछ झलक पा सके।