शादी की खुशियों में रंग जमा था, स्टेज पर फिल्मी गानों पर नृत्य हो रहा था, और मेहमान तालियों के साथ झूम रहे थे। लेकिन अचानक—एक तेज धमाका! संगीत थमा, भीड़ सहम गई, और कुछ पल के लिए सन्नाटा छा गया। ये कोई पटाखा नहीं था, बल्कि एक गोली चली थी। मध्यप्रदेश के खंडवा जिले में भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के जिला अध्यक्ष के बेटे की सगाई में इस अकल्पनीय घटना ने हर किसी को हिला दिया। यह गोली उस समय चली जब समारोह में डांसर स्टेज पर नृत्य कर रही थी और मेहमान झूमते हुए मस्ती में डूबे थे।
यह गोली इंदौर निवासी गिरीश उर्फ टिंकू ठक्कर की कमर में रखी लाइसेंसी पिस्टल से अचानक चल गई। टिंकू खुद और उनके साथ डांस कर रहा एक स्थानीय युवक फिरोज खान गोली लगने से घायल हो गए। फिरोज को पहले सरकारी अस्पताल फिर निजी अस्पताल ले जाया गया, जहां ऑपरेशन कर उसके पैर से गोली निकाली गई। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस हादसे के बाद घायल पक्ष ने पुलिस को कोई आधिकारिक शिकायत नहीं दी, जिसके चलते पुलिस ने स्वतः संज्ञान लेते हुए मामला दर्ज किया।
पुलिस ने दो दिन की देरी के बाद आरोपी गिरीश के खिलाफ लापरवाहीपूर्वक हथियार रखने के तहत मामला दर्ज किया है। डीएसपी अनिल चौहान के मुताबिक, 14 अप्रैल को आयोजित समारोह में यह हादसा हुआ, जिसमें टिंकू की बंदूक से चली गोली फिरोज को लगी। गनीमत रही कि कोई बड़ी जानलेवा घटना नहीं हुई। पुलिस ने स्पष्ट किया है कि यह गोली जानबूझकर नहीं चलाई गई, लेकिन यह लापरवाही गंभीर है। सवाल यह भी उठता है कि समारोहों में हथियार लेकर जाना कितना उचित है?
गिरीश उर्फ टिंकू पेशे से व्यापारी हैं और उनकी करीबी दोस्ती भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के नेता से है। इसी संबंध के चलते वे इस पारिवारिक समारोह में शामिल हुए थे। यह मामला केवल एक लाइसेंसी हथियार से चली गोली का नहीं, बल्कि सत्ता से जुड़े समारोहों में कानून की अनदेखी का भी है। क्या ऐसे मामलों में भी पुलिस की कार्रवाई ‘पहुंच’ के आधार पर होती है? द खबर्दार न्यूज़ इस घटना को मात्र एक हादसे के तौर पर नहीं, बल्कि प्रशासनिक जवाबदेही के दृष्टिकोण से देखता है।
इस घटना ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है—क्या आम समारोहों में हथियार लेकर जाना सामान्य हो चुका है? जब जिम्मेदार और सशक्त तबके के लोग ही लापरवाह बन जाएं, तो आम जनता की सुरक्षा की गारंटी कौन देगा? द खबर्दार न्यूज़ मानता है कि ऐसे मामलों में केवल एफआईआर ही काफी नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना भी ज़रूरी है। अगर इस घटना में कोई मासूम या बच्चा घायल होता, तो क्या तब भी इसे ‘मज़ाक में हुई गलती’ कहकर टाल दिया जाता? इस मामले की निष्पक्ष जांच और कड़ी कार्रवाई समय की मांग है।






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