ज़रा सोचिए, आप एक क्लीनिक में जाते हैं, खूबसूरत त्वचा या बालों के इलाज के लिए… और वहां आपका इलाज कर रहा होता है कोई डेंटिस्ट या होम्योपैथिक डॉक्टर, जिसे उस प्रक्रिया का ज़रा भी अनुभव नहीं! ऐसा कोई हॉरर शो नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश के अस्पतालों की सच्चाई है। दमोह जिले में फर्जी कार्डियोलॉजिस्ट द्वारा सात लोगों की जान जाने के बाद जो स्वास्थ्य विभाग की नींद टूटी है, उसने पूरे प्रदेश के हेल्थ सिस्टम को कटघरे में ला खड़ा किया है। अब खुलासा हुआ है कि मध्य प्रदेश में 174 अस्पताल बिना वैध लाइसेंस के संचालित हो रहे हैं, जिनमें से अकेले भोपाल में 15 और ग्वालियर में 60 अस्पताल शामिल हैं। सवाल उठता है – क्या ये मौत के सौदागर इतने सालों से सरकार की आंखों में धूल झोंकते रहे?
राजधानी भोपाल में जैसे ही जांच शुरू हुई, सच्चाई ने सबको हिला दिया। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) डॉ. प्रभाकर तिवारी के मुताबिक, शहर के चार स्किन और हेयर क्लीनिकों को सील किया गया है, जहां बिना किसी विशेषज्ञ के कॉस्मेटिक सर्जरी और हेयर ट्रांसप्लांट जैसे जटिल कार्य किए जा रहे थे। सबसे हैरानी की बात यह कि इनमें से कई क्लीनिकों के संचालकों के पास महज़ BHMS या BDS की डिग्रियां थीं, और वह भी अधूरी डॉक्यूमेंटेशन के साथ। क्या सरकार की नाक के नीचे स्वास्थ्य के नाम पर जालसाजी का ये कारोबार चलता रहा? जिन क्लीनिकों पर कार्रवाई की गई, उनकी सूची भी डराने वाली है — तथास्तु डेंटल क्लीनिक, स्किन स्माइल क्लीनिक, कॉस्मो डर्मा और एस्थेटिक वर्ल्ड जैसे प्रतिष्ठानों पर ताले लटकाए जा चुके हैं।
ना सिर्फ क्लीनिक, बल्कि राजधानी के बड़े-बड़े अस्पताल भी इस फर्जीवाड़े में शामिल पाए गए। सूर्यांश, मैक्स, पॉलीवाल और कैपिटल जैसे नामी मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल बिना रजिस्ट्रेशन के चल रहे थे। पॉलीवाल सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल तो ISBT जैसे व्यस्त इलाके में था – यानी सरकार की नज़र के सामने ही ये सबकुछ होता रहा! यह न सिर्फ स्वास्थ्य सेवाओं में लापरवाही है, बल्कि जनता के जीवन के साथ धोखा भी। साथ ही, चर्चित रिचा पांडे सुसाइड केस के आरोपी डॉक्टर अभिजीत पांडे के क्लीनिक से भी प्रतिबंधित दवाइयां और अनियमितताएं सामने आई हैं, जिससे स्वास्थ्य तंत्र की नैतिकता पर और भी सवाल खड़े हो गए हैं।
भोपाल के बाद ग्वालियर में भी स्वास्थ्य विभाग की सख्ती देखने को मिली है। यहां 60 निजी अस्पतालों का रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया गया है क्योंकि ये अस्पताल भी नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए चल रहे थे। स्वास्थ्य आयुक्त तरुण राठी ने प्रदेश के सभी सीएमएचओ को स्पष्ट चेतावनी दी है कि यदि भविष्य में उनके जिलों में बिना पंजीयन अस्पताल या क्लीनिक पाए गए तो संबंधित अधिकारी पर सीधी विभागीय कार्रवाई की जाएगी। इससे यह साफ हो गया है कि सरकार अब इस मुद्दे पर ‘ज़ीरो टॉलरेंस’ की नीति अपना रही है — लेकिन सवाल ये है कि इतने वर्षों तक ये सब चलता कैसे रहा?
मध्य प्रदेश उपचर्यागृह एवं रूजोपचार अधिनियम 1973 और नियम 1997 (संशोधित 2021) के तहत राज्य में हर निजी अस्पताल और क्लीनिक का पंजीयन अनिवार्य है, जिसकी वैधता तीन वर्षों तक होती है। तय समय पर नवीनीकरण न करने पर अस्पताल बंद और संचालकों पर आपराधिक मुकदमा चलाया जा सकता है।