वो एक सपना था… जो 2019 में धारा 370 हटने के बाद पनपा था। एक आम इंसान की दिली ख्वाहिश – कश्मीर को देखना, उसकी खूबसूरती को महसूस करना। लेकिन किसे पता था कि यह सपना कश्मीर की बर्फीली वादियों में खून के कतरे में बदल जाएगा।
इंदौर के सुशील नथानिएल पहली बार परिवार के साथ कश्मीर गए थे। जिस धरती को देखने की चाह थी, उसी धरती पर आतंकियों ने ऐसा जख्म दिया कि पूरा परिवार टूट गया। पहलगाम में आतंकवाद ने एक और मासूम जिंदगी निगल ली – लेकिन ये सिर्फ हत्या नहीं थी, ये इंसानियत के खिलाफ एक बर्बर हमला था।
सुशील को आतंकियों ने पहले घुटनों पर बैठाया, फिर धर्म पूछा। जब उन्होंने कलमा पढ़ने से इनकार किया, तो उन्हें गोली मार दी गई। बेटी आकांक्षा भी नहीं बच सकीं – उन्हें भी आतंक की बंदूक ने छेद दिया। मां जेनिफर और बेटा ऑस्टिन कुछ दूर खड़े यह सब देख रहे थे।
जेनिफर की आंखों से टपकते आंसुओं ने एक कहानी कही – “सुशील मुझे बचाने के लिए आगे आए थे, उन्होंने खुद को मेरी ढाल बना लिया।”
ये सिर्फ सुशील की शहादत नहीं थी, ये उस विचार की हत्या थी जो ‘नया कश्मीर’ बनते देखने को उत्साहित था।
रात 9:15 बजे एंबुलेंस जैसे ही वीणानगर पहुंची, भीड़ फूट पड़ी। “पाकिस्तान को सबक सिखाओ”, “आतंकवाद मुर्दाबाद” के नारे आसमान चीरते रहे।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और मंत्री तुलसी सिलावट ने एयरपोर्ट पर सुशील को श्रद्धांजलि दी, लेकिन मोहल्लेवालों की आंखों में गुस्सा साफ था। लोग पूछ रहे थे – “कब तक हमारे लोग यूं ही मारते रहेंगे?”
ये घटना एक चेतावनी थी – आतंक अब टूरिज्म की आड़ में भी वार कर रहा है। सरकार को अब सिर्फ संवेदना नहीं, रणनीति की जरूरत है।
सुशील एलआईसी कार्यालय में कार्यरत थे, जेनिफर सरकारी शिक्षिका हैं। बेटा ऑस्टिन एक उभरता हुआ बैडमिंटन खिलाड़ी है, जबकि बेटी आकांक्षा एक निजी बैंक में काम करती थी।
इस परिवार का हर सदस्य अपने सपनों की उड़ान भर रहा था। लेकिन आतंकवाद ने आकांक्षा की जिंदगी छीन ली और बाकी को जख्म दे दिए जो कभी नहीं भरेंगे।
जेनिफर कहती हैं – “मैं टूट गई हूं, लेकिन झुकी नहीं हूं। सुशील को नहीं भूला सकती, लेकिन उनकी वीरता को हमेशा याद रखूंगी।”






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