क्या आपने कभी सोचा है कि ट्रेन में बीड़ी पीना आपकी ज़िंदगी की आख़िरी भूल बन सकती है? शायद नहीं। लेकिन मध्यप्रदेश के एक मज़दूर के साथ जो हुआ, वह न सिर्फ हैरान करने वाला है बल्कि देश की सुरक्षा व्यवस्था पर गहरे सवाल भी खड़े करता है। एक सामान्य रात थी, जब 50 वर्षीय रामदयाल अहिरवार अपने बेटे के साथ दिल्ली जा रहे थे। लेकिन दिल्ली कभी नहीं पहुंची — पहुंची तो सिर्फ़ उसकी लाश। एक आरपीएफ जवान की पिटाई ने एक बेकसूर मजदूर की सांसें छीन लीं, और रेलवे की सुरक्षा का चौंकाने वाला चेहरा देश के सामने लाकर रख दिया।
यह घटना 22 अप्रैल की गोंडवाना एक्सप्रेस में घटी। टीकमगढ़ के रहने वाले रामदयाल अहिरवार अपने बेटे विशाल के साथ दिल्ली रोज़गार की तलाश में जा रहे थे। रात करीब 2:15 बजे के आसपास जब ट्रेन आगरा और मथुरा के बीच थी, रामदयाल बाथरूम के पास खड़े होकर बीड़ी पीने लगे। तभी स्लीपर कोच से एक आरपीएफ जवान आया, जिसने पहले उन्हें ज़ोर से डांटा, फिर बिना कुछ कहे पीटना शुरू कर दिया। उसे बुरी तरह खींचते हुए स्लीपर कोच में ले जाया गया, जहां कथित तौर पर बेरहमी से पीटा गया। इसके बाद जवान रामदयाल को जनरल कोच तक घसीटते हुए लाया, जहां वह अचानक बेहोश होकर गिर पड़े। बेटे ने पानी के छींटे मारे, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी — रामदयाल की मौत हो चुकी थी।
रामदयाल के बेटे विशाल अहिरवार ने बताया कि पिता के गिरने के बाद आरपीएफ जवान अपनी सफाई में कहने लगे कि उन्होंने सिर्फ एक थप्पड़ मारा था। उन्होंने मौत की वजह हार्ट अटैक बताई, लेकिन बेटे को यक़ीन नहीं था। उसकी आंखों के सामने जो हुआ, वह किसी हार्ट अटैक से कम नहीं था – एक सुनियोजित क्रूरता, जो एक गरीब मज़दूर की जान ले गई। जब विशाल ने मथुरा स्टेशन पर शिकायत दर्ज करानी चाही, तो पुलिस ने शिकायत लेने से इनकार कर दिया। मदद की जगह उसे धमकाया गया और चुप रहने के लिए दबाव डाला गया।
विशाल ने किसी तरह अपने पिता का शव गांव लाकर अंतिम संस्कार किया। लेकिन आज भी वह न्याय के लिए दर-दर भटक रहा है। रामदयाल टीकमगढ़ के पलेरा कस्बे के रहने वाले थे, और परिवार की पूरी जिम्मेदारी उन्हीं पर थी। बेटे ने सरकार से मांग की है कि दोषी आरपीएफ जवान को तत्काल सस्पेंड किया जाए और इस मामले की निष्पक्ष जांच करवाई जाए। यह सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि देश भर के लाखों मज़दूरों की सुरक्षा का सवाल है जो रेल से यात्रा करते हैं। अगर सुरक्षा कर्मी ही हिंसा पर उतर आएं तो आम आदमी कहां जाए?







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