क्या लोकतंत्र की सबसे पवित्र प्रक्रिया – वोटिंग – कभी इतनी खौफनाक हो सकती है कि उसके बाद गांव में लाठी, आंसू गैस, गोलियां और आग का तांडव मच जाए? क्या मतदान केंद्र एक ऐसा युद्धक्षेत्र बन सकता है, जहां नागरिक अपने अधिकार के लिए खड़े हों और शासन उनके सामने बल प्रयोग करे? ये सवाल उठे थे राजस्थान के टोंक जिले के समरावता गांव में, जहां 13 नवंबर 2024 को देवली-उनियारा विधानसभा उपचुनाव के दिन ऐसा ही कुछ हुआ। अब—लगभग पांच महीने बाद—राज्य सरकार ने इस हिंसा में पीड़ित लोगों के लिए मुआवजे की घोषणा कर दी है। लेकिन क्या ये मुआवजा इंसाफ का पहला कदम है या महज़ एक ‘लिप-सर्विस’? आइए, इस घटना की तह तक चलते हैं…
13 नवंबर को समरावता गांव उपचुनाव के मतदान में शामिल हो रहा था, तभी एक अप्रत्याशित दृश्य ने सबको झकझोर दिया। नरेश मीणा नामक युवक ने आरोप लगाया कि एसडीएम अमित चौधरी जबरन वोटिंग करवा रहे हैं। इस बात पर बहस इतनी बढ़ गई कि नरेश मीणा ने कथित रूप से एसडीएम को थप्पड़ जड़ दिया। इसके बाद हालात बेकाबू हो गए। पुलिस ने नरेश मीणा को हिरासत में लिया, लेकिन स्थानीय ग्रामीणों ने उन्हें छुड़वा लिया। पुलिस ने लाठीचार्ज किया और ग्रामीणों पर पथराव का आरोप लगाया। इसी दौरान कई गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया गया। पूरे गांव में खौफ का माहौल बन गया।
घटना की गंभीरता को देखते हुए राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने मामले की जांच के लिए एक कमेटी गठित की, जिसकी अध्यक्षता निरूपम चमका कर रही थीं। 2 अप्रैल 2025 को आयोग ने राज्य सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट में पुलिस की कार्रवाई को लेकर गंभीर सवाल उठाए गए। आयोग ने न केवल प्रशासन और पुलिस के एक्शन पर आपत्ति जताई, बल्कि यह भी सिफारिश की कि 30 दिन के अंदर दोषी अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। इसके अलावा आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि ग्रामीणों को बिना कारण निशाना बनाया गया, और यह संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन है।
अब, राज्य सरकार ने इस मामले में पहली बार आर्थिक सहायता की घोषणा की है। हिंसा में घायल हुए ग्रामीणों—संजय मीणा, राजंती मीणा, बलराम, फूलचंद, कजोड़, दिलहाग और मीठालाल—को एक-एक लाख रुपए की मदद दी जाएगी। इसके अलावा, जिनके दुपहिया वाहन जलकर खाक हो गए, उन्हें 30-30 हजार की सहायता राशि दी गई है। चौपहिया वाहनों के लिए एक-एक लाख और चल-अचल संपत्तियों को हुए नुकसान के लिए 50 हजार और 25 हजार रुपए की मुआवजा राशि स्वीकृत की गई है। सरकार का यह कदम पीड़ितों के जख्मों पर मरहम लगाने की कोशिश तो है, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह पर्याप्त है?






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