क्या आप जानते हैं कि आपके पड़ोस की वो मुस्कुराती महिला, जिसके हाथों में चूड़ियों की खनक सुनाई देती है, शायद वो हर रात दर्द की सिसकियों में डूबती हो? नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) की ताज़ा रिपोर्ट दिल दहला देने वाली है—मध्य प्रदेश की हर पांच में से एक महिला घरेलू हिंसा की शिकार है। आंकड़े सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि हज़ारों ज़िंदगियों की चुप चीख़ हैं। सवाल है—क्या समाज देख भी रहा है या फिर सब कुछ ‘नॉर्मल’ मान लिया गया है?
घरेलू हिंसा से उबर पाना सिर्फ शारीरिक नहीं, मानसिक और सामाजिक स्तर पर भी एक जंग है। इसी दर्द को पहचानते हुए मध्य प्रदेश सरकार ने एक विशेष योजना शुरू की है: ‘घरेलू हिंसा पीड़ित सहायता योजना’। इस योजना के तहत महिलाओं और बालिकाओं को आर्थिक सहायता दी जाती है, ताकि वे अपने इलाज, पुनर्वास और आत्मनिर्भरता की ओर एक कदम बढ़ा सकें। यह योजना समाज के सबसे अंधेरे कोनों में रोशनी लाने की एक कोशिश है—लेकिन क्या ये पर्याप्त है?
अगर आपके इर्द-गिर्द कोई महिला या बच्ची घरेलू हिंसा की शिकार है, तो यह जानना जरूरी है कि मदद मिल सकती है—पर शर्त ये है कि आवाज़ उठानी होगी। पीड़ित महिला जिला महिला एवं बाल विकास कार्यालय, वन स्टॉप सेंटर, या लोक सेवा केंद्र जाकर आवेदन कर सकती है। आवेदन के साथ घरेलू हिंसा की पुष्टि करने वाले दस्तावेज और अगर कानूनी कार्रवाई हुई हो तो उसकी कॉपी भी देनी होती है। इसके बाद जिला अधिकारी जांच करते हैं और पात्रता तय करते हैं। यह प्रक्रिया जितनी सरल लगती है, ज़मीनी हकीकत में उतनी ही चुनौतीपूर्ण भी हो सकती है।
सरकार की तरफ से दी जाने वाली सहायता राशि पीड़िता की शारीरिक क्षति पर निर्भर करती है।
यदि महिला को 40% से अधिक दिव्यांगता हुई है, तो ₹4 लाख की सहायता राशि मिलती है।
अगर दिव्यांगता 40% से कम है, तो ₹2 लाख की आर्थिक मदद दी जाती है।
इस सहायता का उद्देश्य सिर्फ इलाज ही नहीं, बल्कि उस महिला को एक नया जीवन जीने की ताकत देना है।
घरेलू हिंसा सिर्फ एक महिला का मसला नहीं, बल्कि पूरे समाज का आइना है। जब हम चुप रहते हैं, तो हम उस हिंसा का हिस्सा बन जाते हैं। अगर आप वाकई बदलाव चाहते हैं, तो आज ही किसी पीड़िता की आवाज़ बनिए। उसे बताइए कि वो अकेली नहीं है। उसे उसके अधिकारों की जानकारी दीजिए। और सबसे ज़रूरी—उसे भरोसा दीजिए।