भोपाल की दोपहर आज कुछ अलग थी। सड़कों पर चुप्पी थी, पर दिलों में सवालों की गूंज थी—क्या मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता पर कोई अदृश्य खतरा मंडरा रहा है? क्या centuries पुरानी वक्फ़ संपत्तियाँ किसी नए कानून की भेंट चढ़ने वाली हैं? सवाल सिर्फ भोपाल का नहीं, बल्कि पूरे देश के मुस्लिम समाज का है। और इन सवालों को लेकर आज राजधानी के सेंट्रल लाइब्रेरी ग्राउंड में हजारों लोगों की भीड़ जुटी—ना नारे, ना झंडे, सिर्फ खामोश गुस्सा और एक स्पष्ट संदेश: “हमारी आस्था से मत खेलो।”
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) के नेतृत्व में हो रहे इस विरोध प्रदर्शन का कारण है केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित नया वक्फ़ कानून, जिसे मुस्लिम समाज अपनी धार्मिक और सामाजिक पहचान पर ‘सीधा हमला’ मान रहा है। AIMPLB का कहना है कि यह कानून वक्फ़ संपत्तियों पर सरकारी दखल को असंवैधानिक तरीके से बढ़ावा देता है। वक्फ संपत्तियाँ केवल संपत्ति नहीं, बल्कि धार्मिक, शैक्षणिक और सामाजिक हितों की आधारशिला हैं। नए कानून के ज़रिए सरकार, इन संपत्तियों की निगरानी और प्रबंधन में सीधा हस्तक्षेप कर सकती है—जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 26 के खिलाफ माना जा रहा है।
आज के प्रदर्शन का नेतृत्व कांग्रेस विधायक और AIMPLB के सदस्य आरिफ मसूद ने किया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि यह आंदोलन न तो किसी राजनीतिक दल के बैनर तले हो रहा है और न ही इसका उद्देश्य राजनीति है। “यह एक सामाजिक और धार्मिक जिम्मेदारी है, जिसे शांतिपूर्ण ढंग से निभाना हमारा कर्तव्य है,” उन्होंने कहा। बोर्ड की ओर से लोगों से अपील की गई कि वे बिना किसी झंडे, बैनर या भड़काऊ नारों के इस आंदोलन में शामिल हों, ताकि संदेश सरकार तक दृढ़ता और गरिमा के साथ पहुंचे।
भोपाल पुलिस और जिला प्रशासन ने भी प्रदर्शन को देखते हुए पर्याप्त सुरक्षा इंतजाम किए हैं। चप्पे-चप्पे पर पुलिस बल तैनात किया गया है और स्थानीय नागरिकों से शांति बनाए रखने की अपील की गई है। प्रशासन ने AIMPLB और आयोजकों के साथ संवाद स्थापित कर यह सुनिश्चित किया है कि प्रदर्शन शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप हो। एक तरफ सरकार की चुप्पी है, तो दूसरी तरफ समाज की आस्था और पहचान का मुद्दा—यह विरोध सिर्फ कानून के खिलाफ नहीं, बल्कि अपनी संस्कृति और धार्मिक अस्तित्व के लिए है।





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