ये किसी फिल्म का दृश्य नहीं, मध्यप्रदेश के हकीकत की कहानी है। नर्मदापुरम जिले के धामनी गांव में जब हमने पूछा – स्कूल कहां है? जवाब मिला – मंदिर में। और वाकई, उसी मंदिर में चल रहा है स्कूल। ये दृश्य अकेले धामनी का नहीं, पूरे मध्यप्रदेश के 211 ऐसे स्कूलों का है, जिनके पास खुद की बिल्डिंग तक नहीं है। बच्चे या तो पेड़ के नीचे पढ़ते हैं या किसी सामुदायिक भवन में, और प्रवेशोत्सव – वो भी ईश्वर के आंगन में या मिट्टी पर बैठे होकर। क्या यही है हमारा नया भारत?
धामनी गांव के मंदिर में चलने वाला यह स्कूल साल 2021 में शिफ्ट हुआ, जब पुरानी स्कूल बिल्डिंग की छत गिरने से एक बच्चा घायल हो गया। टीचर आशा उइके ने बताया, “पहले 12 बच्चे थे, अब सिर्फ 4 रह गए हैं। बाकी के माता-पिता बच्चों को प्राइवेट स्कूल में भेज चुके हैं।” भवन स्वीकृत तो हुआ है, मगर बजट नहीं आया। दिनभर मंदिर में पूजा-पाठ, घंटी और मंत्रोच्चार चलते रहते हैं – ऐसे में पढ़ाई का वातावरण कैसे बनेगा? स्थानीय ग्रामीणों ने कई बार प्रशासन से गुहार लगाई, लेकिन नतीजा वही – “फाइल चल रही है”।
सिवनी मालवा से 14 किलोमीटर दूर बटकी गांव का प्राइमरी स्कूल भी कागज़ों में ही है। असल में बच्चे रोजाना दो किलोमीटर दूर इकलानी गांव के मंगल भवन में पढ़ने जाते हैं। स्कूल की टीचर प्रेमलता कैथवास बताती हैं, “स्कूल की बिल्डिंग इतनी जर्जर हो गई थी कि यहां पढ़ाई मुमकिन नहीं थी। बच्चों को कभी सड़क किनारे पढ़ाना पड़ा, तो कभी पंचायत से लड़कर मंगल भवन में जगह मांगी।” बच्चों की संख्या कम है, संसाधन और भी कम। ब्लैकबोर्ड नहीं है, तो फर्श पर ही पहाड़ा और गिनती लिख दी जाती है।
छात्रा अंकिता कलमे रोज 2 किमी पैदल चलती है ताकि वह पढ़ सके। प्रेमलता जैसे शिक्षक घर-घर जाकर बच्चों को समझाते हैं कि शिक्षा ही रास्ता है – नहीं तो महुआ चुनने भेज दिए जाएंगे। उन्होंने बताया कि कई बार BRC को पत्र लिखे, पंचायत में बात रखी, सब जगह से मंजूरी मिली – मगर निर्माण शुरू नहीं हुआ। “अब तो हालात से समझौता कर लिया है,” वे थके स्वर में कहती हैं। ये थकान सिर्फ एक शिक्षक की नहीं, बल्कि व्यवस्था की निष्क्रियता की पहचान बन चुकी है।
सतना जिले के उचेहरा ब्लॉक का मुंगहनी कला स्कूल पिछले 11 सालों से पेड़ के नीचे चल रहा है। बारिश आती है, तो कभी किसी के मकान में शरण, तो कभी किराये पर कमरा। शिक्षा केंद्र प्रभारी प्रदीप श्रीवास्तव ने कहा – “हमने कलेक्टर को 6.5 लाख का प्रस्ताव भेजा है, विधायक ने भी लिखा है।” लेकिन परिणाम – शून्य। मैहर जिले के कोल्हा कोलान स्कूल की पुरानी बिल्डिंग डूब क्षेत्र में चली गई, और अब हर साल बच्चे पेड़ के नीचे बैठकर प्रवेशोत्सव मनाते हैं। ऐसी सच्चाई है, जिसे शायद अखबारों के पन्नों और नेताओं की भाषणों में जगह नहीं मिलती।
मध्यप्रदेश में 83 हजार 249 सरकारी स्कूल हैं, लेकिन इनमें से 211 आज भी भवनविहीन हैं। 59 हजार कक्षाएं मरम्मत के इंतज़ार में हैं। 10,900 स्कूलों में बिजली नहीं, 35 हजार में बाउंड्री वॉल तक नहीं। राज्य शिक्षा केंद्र के अधिकारी राकेश पांडे कहते हैं, “भवन स्वीकृति की प्रक्रिया शुरू है, विद्यार्थी संख्या के आधार पर फंड मिलेगा।” लेकिन सवाल ये है कि तब तक इन बच्चों का क्या होगा? क्या पेड़, मंदिर और मंगल भवन ही रहेंगे उनके सपनों के आधार?






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