आज के डिजिटल युग में मोबाइल फोन हमारी ज़िंदगी का अभिन्न हिस्सा बन चुका है, लेकिन यह सुविधा अब छोटे बच्चों के मानसिक विकास के लिए गंभीर खतरा बनती जा रही है। स्क्रीन की लत बच्चों को ऑटिज्म और मानसिक विकारों की ओर धकेल रही है। विशेषज्ञों की मानें तो बीते पांच वर्षों में ऐसे मामलों की संख्या दोगुनी हो चुकी है।
बच्चों में बढ़ रहा ऑटिज्म का खतरा
अगर आप अपने बच्चों को घंटों मोबाइल स्क्रीन के सामने रहने देते हैं, तो सावधान हो जाइए। मनोरोग विशेषज्ञों का कहना है कि पांच साल तक के बच्चों में ऑटिज्म (Autism Disorder) के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं। यह एक न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर है, जो मानसिक विकास को प्रभावित करता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, पांच साल तक के बच्चों में इस बीमारी की दर डेढ़ प्रतिशत तक पहुंच चुकी है। ऐसे कई बच्चों को स्पीच थेरेपी और मानसिक विकारों के इलाज के लिए अस्पतालों में भर्ती कराया जा रहा है।
ऑटिज्म के लक्षण
सामाजिक मेलजोल में कमी और खुद को अलग-थलग रखना।
आक्रामक व्यवहार और भावनात्मक असंतुलन।
भूख में कमी और भोजन में रुचि का घटना।
चिड़चिड़ापन और गुस्सा जल्दी आना।
वास्तविकता से दूर होकर अपने ही दिमाग में एक अलग दुनिया बना लेना।
कैसे करें बचाव?
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि माता-पिता सतर्क रहें तो बच्चों को इस गंभीर समस्या से बचाया जा सकता है।
मोबाइल की सीमित पहुंच: बच्चों को मोबाइल केवल सीमित समय के लिए ही दें, ताकि उनकी निर्भरता न बढ़े।
परिवार के साथ समय बिताएं: माता-पिता बच्चों के साथ अधिक समय बिताएं और उन्हें खेल-कूद व अन्य रचनात्मक गतिविधियों में व्यस्त रखें।
खाने के समय स्क्रीन से दूर रहें: बच्चों को खाना खिलाते समय मोबाइल न दें, इससे उनकी आदत बिगड़ सकती है।
स्वयं मोबाइल का प्रयोग सीमित करें: घर पर माता-पिता को भी अपने मोबाइल का उपयोग कम करना चाहिए, ताकि बच्चे उन्हें देखकर मोबाइल की ओर आकर्षित न हों।