क्या आपके बच्चे इस तपती गर्मी में दोपहर तक स्कूल जा रहे हैं? क्या आप जानते हैं कि अप्रैल की शुरुआत में ही मध्यप्रदेश की ज़मीन आग उगल रही है? और अगर अब भी सब कुछ पहले जैसा चलता रहा — तो क्या आपके बच्चे सुरक्षित रहेंगे? भोपाल जिला प्रशासन ने एक बड़ा और अभूतपूर्व कदम उठाया है, जो बच्चों के भविष्य के साथ-साथ उनके स्वास्थ्य की रक्षा का भी दावा करता है। लेकिन ये फैसला क्यों लिया गया? क्या हालात इतने गंभीर हो गए हैं कि पढ़ाई का समय ही बदलना पड़ा?
अभी अप्रैल की शुरुआत ही हुई है, लेकिन मध्यप्रदेश में सूरज जैसे जून की आग बरसा रहा है। राजधानी भोपाल सहित कई ज़िलों में पारा 42 से 43 डिग्री सेल्सियस को पार कर चुका है। भोपाल, गुना, नर्मदापुरम, रतलाम, दमोह, सागर, उज्जैन और नौगांव जैसे जिलों में गर्मी ने पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। मौसम विभाग पहले ही चेतावनी दे चुका है कि आने वाले हफ्तों में तापमान में और इज़ाफा होगा। तेज़ लू और झुलसाने वाली धूप से सबसे ज़्यादा खतरे में हैं स्कूल जाने वाले नन्हे बच्चे, जो अभी इस मौसम की मार को समझ भी नहीं पाते। ऐसे में सवाल उठा — क्या पढ़ाई ज़रूरी है या बच्चों की जान?
इस सवाल का जवाब अब भोपाल के प्रशासन ने दिया है। जिला शिक्षा अधिकारी के आदेश के मुताबिक, अब नर्सरी से आठवीं तक की सभी कक्षाएं दोपहर 12 बजे के बाद नहीं चलेंगी। यानी छोटे बच्चों को अब लू की चपेट में आने से बचाने के लिए स्कूल का समय बदला गया है — और यह फैसला तुरंत प्रभाव से लागू कर दिया गया है। चाहे स्कूल सरकारी हो या निजी, सभी को इसका पालन करना होगा। यह निर्णय भोपाल के कलेक्टर कौशलेन्द्र विक्रम सिंह के स्तर से लिया गया, जिसमें बच्चों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है।
बच्चों की बिगड़ती तबीयत और अभिभावकों की चिंताओं को शिक्षक संगठनों ने गंभीरता से लिया। शासकीय शिक्षक संगठन मध्यप्रदेश ने जिला प्रशासन को चेताया था कि दोपहर की कक्षाएं बच्चों की सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही हैं। संगठन ने कलेक्टर को पत्र लिखकर स्कूलों का समय सुबह से दोपहर 12 बजे तक करने की मांग की थी। इस पहल के बाद प्रशासन हरकत में आया और फैसला लिया गया कि अब गर्मी के इस कहर से बच्चों को राहत दी जाएगी।
अब जब निर्णय आ चुका है, तो ज़रूरी है कि इसका ईमानदारी से पालन हो। शिक्षा विभाग ने सभी स्कूलों को निर्देश जारी किए हैं कि वे समय परिवर्तन को सख्ती से लागू करें। साथ ही छात्रों को गर्मी से बचाने के लिए छायादार बैठने की व्यवस्था, ठंडा पानी और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं सुनिश्चित करने को कहा गया है। अभिभावकों से भी अपील की गई है कि वे बच्चों को धूप में भेजने से बचाएं, हल्के और सूती कपड़े पहनाएं और पर्याप्त पानी पीने की सलाह दें। यह फैसला सिर्फ प्रशासन का नहीं, हर नागरिक की जिम्मेदारी बनता है कि वो इस बदलाव को सफल बनाए।





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