यह कहानी सिर्फ एक लड़की की नहीं है… ये कहानी उस भरोसे की है, जो सोशल मीडिया के हंसते-खेलते इमोजी से शुरू होकर एक भयावह हकीकत में बदल जाती है। भोपाल की एक होनहार एमबीए छात्रा ने, जिसे जीवन की दौड़ में आगे बढ़ना था, अपने जीवन के सबसे डरावने अध्याय को जीया — प्यार के नाम पर छल, और फिर जाति के नाम पर ठुकराया गया सम्मान। पांच साल तक एक युवक ने उसके साथ ऐसा खेल खेला जिसे सुनकर समाज के हर उस व्यक्ति को झकझोर जाना चाहिए जो रिश्तों में सच्चाई और समानता की बात करता है।
भोपाल के कोलार इलाके में रहने वाली 24 वर्षीय एमबीए छात्रा ने सोशल मीडिया पर दीपांशु चौरसिया नाम के युवक से दोस्ती की थी। पहली नजर में सब कुछ सामान्य था—चैटिंग, मीठी बातें, मुलाकातें और फिर धीरे-धीरे एक प्रेम संबंध। लेकिन जहां लड़की इस रिश्ते को सच्चे दिल से जी रही थी, वहीं लड़का उसे झूठे वादों और शादी के नाम पर बहलाता रहा। समाज में तकनीक के सहारे जुड़ते रिश्ते आज किस हद तक असुरक्षित हो चुके हैं, यह घटना उसका खतरनाक उदाहरण है।
करीब पांच साल तक आरोपी युवक छात्रा को शादी का झांसा देता रहा। इस दौरान उसने कई बार शारीरिक संबंध बनाए, भावनात्मक रूप से उसे अपने जाल में फंसाया। युवती को यह भरोसा था कि यह रिश्ता विवाह तक जाएगा, लेकिन पिछले कुछ दिनों में जब उसने शादी की बात कही, तो दीपांशु का असली चेहरा सामने आया। उसने न केवल शादी से इनकार किया, बल्कि जातिगत भेदभाव का घिनौना बहाना बनाकर युवती को और भी गहरे मानसिक आघात दिए।
जब भावनाओं और आत्म-सम्मान की सारी सीमाएं पार हो गईं, तो छात्रा ने साहस दिखाया और कोलार थाने में शिकायत दर्ज कराई। पुलिस ने आरोपी दीपांशु चौरसिया के खिलाफ दुष्कर्म सहित अन्य धाराओं में मामला दर्ज कर लिया है। जांच में सामने आया है कि आरोपी जबलपुर जिले का रहने वाला है और फार्मेसी से जुड़ा काम करता है। पुलिस ने आरोपी की तलाश शुरू कर दी है और मामले को गंभीरता से लेते हुए आगे की कार्रवाई कर रही है।
यह केवल एक युवक की आपराधिक मानसिकता की बात नहीं है, यह सवाल है उस समाज पर जो आज भी जाति के नाम पर इंसानियत को कुचल देता है। क्या प्रेम में जाति का कोई स्थान होना चाहिए? क्या लड़कियों के आत्मसम्मान से ऐसे खेल खेलना अपराध नहीं बल्कि ‘सामाजिक मान्यता’ मान लिया गया है? ऐसे मामलों में केवल आरोपी को नहीं, बल्कि उस मानसिकता को कठघरे में खड़ा करना जरूरी है, जो महिलाओं को केवल ‘इस्तेमाल’ करने की वस्तु समझती है।





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