संगम तट पर भक्तों की कतार,
हर तरफ है गूंजता जयकार।
धूप में तपते संत-संन्यासी,
हर कंठ में भक्ति की भाषा प्यासी।
गंगा-जमुना सरस्वती का मेल,
हर मन में श्रद्धा का खेल।
पुण्य की धारा संग बहे,
हर पाप का अंत यहीं रहे।
देवों का आशीष है मिला,
यह है पावन महाकुंभ मेला।
नागा साधु लगे अद्भुत,
शिव की महिमा के हैं अनुपम पथ।
हाथ में डमरू, जटा में गंग,
भक्ति में डूबे उनके रंग।
गूंज रहे हर ओर मंत्र,
धूल में खेलें संतो के तंत्र।
अलख निरंजन, जय महाकाल,
ध्वनि से गूंजे हर एक ताल।
अद्भुत दृश्य, अद्भुत झमेला,
ऐसा होता महाकुंभ मेला।
कल-कल करती गंगा बहती,
हर जन को यह शुद्ध कर देती।
पुण्य सलिला का निर्मल जल,
करता आत्मा को निर्मल।
स्नान करे जो सच्चे मन से,
मुक्ति पाए जन्म-मरण से।
हरिद्वार, प्रयाग, उज्जयिनी,
नासिक में लगती यह निधि।
हर बार सजे भव्य अकेला,
श्रद्धा का महाकुंभ मेला।
दिगंबर, अवधूत, महान तपस्वी,
आते संग संन्यासी, योगी।
गंगाजल की धारा पावन,
हर मन करता है नमन।
घंटे, शंख, शास्त्रों की बात,
हर दिशा में भक्ति बरसात।
मालाओं से श्रंगारित तन,
कपिल मुनि की याद में मन।
हर युग में लगेगा अनमोल झमेला,
शाश्वत रहेगा महाकुंभ मेला।
पुण्य की बेला आई रे,
गंगा में हर लहर समाई रे।
मन में प्रेम, हृदय में श्रद्धा,
जीवन का सार यही है सच्चा।
हर पाप से मुक्ति मिलेगी,
हर मन में भक्ति जलेगी।
आओ संग करें स्नान,
मिलकर करें गंगा गुणगान।
हर बार का अनुपम हवेला,
यही है महाकुंभ मेला।
हर हर गंगे की गूंज उठी,
मन में आस्था, भाव सजी।
चारों ओर संतों की टोली,
हर जगह बस भक्ति बोली।
ज्योतिर्मय है यह महोत्सव,
हर मन में श्रद्धा का उत्सव।
बहे जहां निर्मल गंगा जल,
लगे वहां पुण्य का पल।
जग में अनोखा, अद्भुत अकेला,
यही है महाकुंभ मेला।
योगी, तपी, ऋषि-मुनि आए,
संगम तट पर धूनी रमाए।
सत्य, अहिंसा का यह संगम,
पुण्य सलिला का अभिनंदन।
हर आहट में वेदों की ध्वनि,
हर पल में आस्था बनी।
मन से जो भी मांगे फल,
गंगा देती है शीतल जल।
स्वर्ग का भू पर फैला उजियाला,
यही है महाकुंभ मेला।
मन में हर भक्त लेता संकल्प,
गंगा किनारे करे अभिषेक।
द्वेष मिटे, बंधन कटे,
नया जीवन राह गढ़े।
मंत्रों की होती है झंकार,
हृदय में उठता आत्मसंसार।
गूंज रही जय-जयकार,
संतो का यह अनमोल संसार।
युगों-युगों से चलता यह मेला,
अमर रहेगा महाकुंभ मेला।
जो भी इसमें डुबकी लगाए,
पापों से मुक्ति वह पाए।
राम-नाम का जाप करे,
मन की हर बाधा को हरे।
गंगा माता करे उद्धार,
संतों का इसमें संगम अपार।
हर कोई करता इसमें व्रत,
छूटे हर जन्म का संकट।
जीवन का सबसे पावन मेला,
यही है महाकुंभ मेला।
सभी दिशाओं में बजे शंख,
हर कोने में फैले भक्ति का अंक।
गंगा किनारे भजन संध्या,
हर कोई गाए कृष्ण-गाथा।
संतों की टोली करे निवास,
सत्संग से मिटे हर उलझाव।
प्रेम से छलके श्रद्धा का प्याला,
ध्यान में डूबे काशी, उजियाला।
धर्म का सबसे पावन झमेला,
यही है महाकुंभ मेला।